अगर जनता के साथ अन्याय हो रहा तो अदालत अपनी आंखें नहीं मूंद सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को आदेश दिया कि लखनऊ में एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के नाम, फोटो और उनके पते के साथ लगाए गए सभी होर्डिंग्स तुरंत हटाए जाएं.

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लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली के लिए लगाई गई होर्डिंग. (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को आदेश दिया कि लखनऊ में एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के नाम, फोटो और उनके पते के साथ लगाए गए सभी होर्डिंग्स तुरंत हटाए जाएं.

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लखनऊ में लगा होर्डिंग. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को करारा झटका देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया कि लखनऊ में एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के नाम, फोटो और उनके पते के साथ लगाए गए सभी होर्डिंग्स तुरंत हटाए जाएं.

कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार द्वारा इस तरह के होर्डिंग्स लगाना लोगों की निजता में दखल और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.

हाईकोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया कि 16 मार्च तक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास इस आदेश के संबंध में अनुपालन रिपोर्ट जमा की जाए.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के महत्वपूर्ण स्थानों पर नागरिकता संशोधन कानून के दौरान कथित रूप हिंसा करने के आरोपियों के नाम और पते के साथ होर्डिंग्स लगाने की खबरों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते रविवार को स्वत: संज्ञान लिया था और मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रख लिया था.

रविवार को ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि राज्य की भावना अच्छी होनी चाहिए और दोपहर तीन बजे से पहले सारे होर्डिंग्स हटाए जाएं और कोर्ट को इसके बारे में बताया जाए. कोर्ट ने कहा था कि राज्य की ये कार्रवाई अत्यधिक अनुचित है.

पहले रविवार को मामले की सुनवाई सुबह 10 बजे होनी थी. हालांकि एडवोकेट जनरल द्वारा सुनवाई के लिए इस समय तक पहुंचने में असमर्थता जताए जाने पर कोर्ट ने दोपहर तीन बजे इसकी सुनवाई की.

एडवोकेट जनरल ने सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर ही सवाल उठा दिया और कहा कि चूंकि लखनऊ में ये होर्डिंग्स लगाए गए हैं इसलिए इलाहाबाद स्थित मुख्य पीठ इस पर संज्ञान नहीं ले सकता है.

उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का बचाव करने के लिए जनहित याचिका नहीं दायर की जानी चाहिए, जो कानून तोड़ते हैं.

हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि राज्य द्वारा उठाया गया कदम लोगों की निजता में दखल देना है और इस तरह यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘ऐसे मामलो में कोर्ट को इंतजार करने की जरूरत नहीं है कि कोई व्यक्ति आए और न्याय की घंटी बजाए, तब संज्ञान लिया जाएगा. अदालतें न्याय देने के लिए होती हैं और अगर जनता के साथ अन्याय हो रहा तो कोई अदालत अपनी आंखें नहीं मूंद सकता है.’

कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून या नियम नहीं जो आरोपियों के नाम, पता और फोटो के साथ होर्डिंग्स लगाने को सही ठहरा सकें.

मालूम हो कि लखनऊ प्रशासन ने शहर के प्रमुख और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर विवादित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले करीब 60 लोगों के नाम और पते के साथ होर्डिंग्स लगा रखा है.

इन पर आरोप है कि पिछले साल 19 दिसंबर को हुए प्रदर्शन के दौरान इन्होंने हिंसा की और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है. 

इसमें जानी-मानी कार्यकर्ता और नेता सदफ जाफर, मानवाधिकार वकील मोहम्मद शोएब, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी जैसे लोगों के भी नाम शामिल हैं.

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