मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 114 विधायकों में से सिंधिया के खेमे में करीब 30 प्रतिशत विधायक माने जाते हैं जिनकी संख्या 30 से 40 के बीच है. इसलिए कांग्रेस सरकार का गिरना तय माना जा रहा है.
मध्य प्रदेश की राजनीति में पिछले मंगलवार से शुरू हुए सियासी उठापटक के खेल ने अब नया रंग ले लिया है. प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा है, ’18 सालों से कांग्रेस का सदस्य रहने के बाद यह समय आगे बढ़ने का है. कांग्रेस के अंदर रहकर मैं जनता की सेवा करने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रहा था.’ सिंधिया ने अपना इस्तीफा ट्विटर पर डाला है. जो कि 9 मार्च को उनके द्वारा दिया गया है.
सिंधिया द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद बेंगलुरु में रह रहे छह राज्य मंत्रियों समेत कांग्रेस के 19 विधायकों ने भी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है. वहीं, कांग्रेस ने भी सिंधिया को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते कांग्रेस से निकाले जाने का आदेश जारी किया है.
KC Venugopal, Congress: The Congress President has approved the expulsion of Jyotiraditya Scindia from the Indian National Congress with immediate effect for anti-party activities. https://t.co/NpsGIvfmJR pic.twitter.com/AF10ZyqtJE
— ANI (@ANI) March 10, 2020
गौरतलब है कि पिछले मंगलवार को प्रदेश की कांग्रेस सरकार के करीब दस विधायक, जिनमें सपा, बसपा, निर्दलीय सहित कुछ कांग्रेस के विधायक भी शामिल थे, लापता हो गये थे. बाद में खबरें आईं कि वे भाजपा के संपर्क में हैं और भाजपा उनकी सहायता से प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराना चाहती है.
इस खबर के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के अनेक मंत्री एवं बड़े नेता सक्रिय हुए और एक-एक करके सभी विधायकों को कांग्रेसी खेमे में वापस लेकर आए. केवल दो विधायकों, हरदीप सिंह डंग और रघुराज सिंह कंषाना, को वे वापस लाने में सफल नहीं हो पाए थे. इस बीच हरदीप सिंह ने विधानसभा सदस्यता से अपना इस्तीफा सौंप दिया जबकि रघुराज सिंह कंषाना को खोजने के प्रयास जारी रहे.
इस पूरे घटनाक्रम में प्रदेश में कांग्रेस के एक बड़े क्षत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुप्पी सवाल खड़े कर रही थी. हालांकि, गायब होने वाले विधायक सिंधिया खेमे के नहीं थे, तब भी माना यह गया कि सरकार में उथल-पुथल की इस कवायद पर सिंधिया इसलिए चुप हैं क्योंकि प्रदेश की राजनीति में लगातार उनकी अनदेखी हो रही है.
रविवार आते-आते हालात ऐसे बन गये कि कांग्रेस सरकार सुरक्षित नजर आने लगी थी. बगावत करने वाले विधायक वापस आ गये थे. साथ में भाजपा के दो विधायक भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो गये थे. कांग्रेसी नेता दावा करते नजर आए कि अभी और भी कई भाजपा विधायक कांग्रेस का दामन थामेंगे.
19 Congress MLAs including six state ministers from Madhya Pradesh who are in Bengaluru, tender their resignation from the assembly after Jyotiraditya Scindia resigned from the party. pic.twitter.com/ljTF7p90BV
— ANI (@ANI) March 10, 2020
लेकिन सोमवार शाम को हालात फिर से सरकार के खिलाफ तब हो गये, जब चुप्पी साधे बैठे सिंधिया खेमे के 18 से 20 विधायक और 6 मंत्री लापता हो गये. उनके फोन बंद पाए जा रहे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें बैंगलोर के एक होटल में ठहराया गया है.
छह मंत्रियों में प्रद्युमन सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, तुलसी सिलावट, इमरती देवी, गोविंद सिंह राजपूत और प्रभु चौधरी के नाम शामिल हैं. विधायकों में जो नाम सामने आए हैं, उनमें राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव, मुन्नालाल गोयल, ओपीएस भदौरिया, रणवीर जाटव, गिर्राज दंडौतिया, कमलेश जाटव, रक्षा संतराम सिरौनिया, जसवंत जाटव, सुरेश धाकड़, जजपाल सिंह जज्जी, बृजेंद्र सिंह यादव और रघुराज सिंह कंषाना प्रमुख हैं.
सरकार पर संकट आते देख सोमवार देर रात मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कैबिनेट की मीटिंग ली जिसमें उनके 28 में से 22 मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इसमें सिंधिया खेमे मंत्री शामिल नहीं हैं. इस्तीफे की बात पर कमलनाथ के मंत्रियों का कहना था कि मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया जाएगा और उन चेहरों को इसमें जगह मिलेगी जो कि सरकार में कोई बड़ा दायित्व न मिलने के चलते लंबे समय से नाराज चल रहे हैं.
इस्तीफे के बाद अधिकांश मंत्रियों ने आश्वासन दिया था कि सरकार सुरक्षित है और पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी. कमलनाथ ने भी इसके बाद जनता के नाम एक पत्र जारी किया था जिसमें उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम के पीछे भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने लिखा था कि भाजपा प्रदेश में माफियाओं के सहयोग से सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है.
पूरे घटनाक्रम के केंद्र में सिंधिया की प्रदेश की सत्ता और कांग्रेस संगठन से नाराजगी है. विधानसभा चुनावों के बाद से ही प्रदेश की राजनीति में उन्हें किनारे कर दिया गया था. कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी ने प्रदेश की राजनीति में अपनी धाक जमा ली थी. कई मौकों पर सिंधिया नाराजगी भी जता चुके थे और सरकार को चुनौती भी दे चुके थे. साथ ही सिंधिया के समर्थक विधायक और मंत्री भी लंबे समय से मांग कर रहे थे कि प्रदेश में सिंधिया को अहम पद दिया जाए. उन्हें लगातार प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठाई जा रही थी. इस संबंध में कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी को भी कई बार पत्र लिखा जा चुका था.
Delhi: Jyotiraditya Scindia arrives at his residence after meeting PM Narendra Modi and HM Amit Shah. Scindia has tendered his resignation to Congress President Sonia Gandhi pic.twitter.com/o9Fscq1wNm
— ANI (@ANI) March 10, 2020
पिछले दिनों भी तब सिंधिया और कमलनाथ में टकराव के हालात बन गये थे जब सिंधिया ने ‘वचन-पत्र’ के वादे पूरे न होने पर कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की घोषणा कर दी थी, जिस पर कमलनाथ ने यह प्रतिक्रिया दी थी, ‘सड़क पर उतरते हैं तो उतर जाएं.’
ताजा घटनाक्रम में प्रदेश में खाली हुईं राज्यसभा की तीन सीटें भी हैं. जिन पर दिग्विजय सिंह और सिंधिया दोनों की ही नजर थी. कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी की चालों के चलते राज्यसभा सीट भी मिलती न देख सिंधिया ने पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने का फैसला लिया. सिंधिया को मनाने के लिए कांग्रेस ने राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी जिम्मेदारी सौंपी थी. वे भी सिंधिया को मना नहीं सके.
कांग्रेस ने इस बीच मंगलवार को शाम 5 बजे सरकार पर आए इस संकट को दूर करने के लिए विधायक दल की बैठक बुलाई थी लेकिन उससे पहले ही सिंधिया की प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से मुलाकात हो गई और उन्होंने 9 मार्च को दिया अपना इस्तीफा ट्विटर पर डाल दिया.
वहीं, सोमवार को ही मुख्य विपक्षी दल भाजपा भी सक्रिय हो गई थी. सोमवार को ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा और गृहमंत्री अमित शाह से मिले. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश के वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्रा भी सक्रिय नजर आए.
हालांकि अभी सिंधिया ने भाजपा की सदस्यता नहीं ली है लेकिन इसे सिर्फ औपचारिकता माना जा रहा है. जिसके एवज में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया जाएगा, साथ ही केंद्र में मंत्री पद भी दिया जाएगा. इससे पहले सिंधिया, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के बीच करीब घंटे भर की बैठक चली.
भाजपा के दिल्ली कार्यालय में भी भाजपा नेताओं की बैठक जारी है जिसमें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं.
वहीं, भाजपा ने मंगलवार शाम को विधायक दल की बैठक बुलाई है. आज ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की जन्मतिथि भी है, इसलिए उम्मीद पूरी उम्मीद थी कि सिंधिया अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आज ही कोई फैसला लेंगे.
बहरहाल, मध्य प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को समझें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में दो सीटों के खाली होने के चलते फिलहाल 228 सीटें हैं जिनमें कांग्रेस विधायकों की संख्या 114 है जबकि भाजपा के 107 विधायक हैं.
चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा के विधायक के सहयोग से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. इन 114 विधायकों में से सिंधिया के खेमे में करीब 30 प्रतिशत विधायक माने जाते हैं जिनकी संख्या 30 से 40 के बीच है.
इसलिए यह माना जा रहा है कि सिंधिया के पक्ष में होने वाले विधायकों की संख्या में अभी और बढ़ोत्तरी हो सकती है. अगर सिंधिया पाला बदलते हैं या अपना दल गठित करते हैं तो कांग्रेस की सरकार का गिरना भी तय माना जा रहा है.
Adhir Ranjan Chaudhary, Congress leader in Lok Sabha: So yes it will indeed be a loss to our party and I don't think our Govt in Madhya Pradesh will survive. This is the present-day politics of BJP, always tries to topple and destabilize opposition govts https://t.co/XkiPiEwIjO pic.twitter.com/kM7RSbZihn
— ANI (@ANI) March 10, 2020
वहीं, अब कांग्रेस के नेता भी सिंधिया पर हमलावर हो गये हैं. पूर्व मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने सिंधिया की तुलना मीर जाफर और जयचंद से करते हुए उन्हें और उनके सिंधिया खानदान पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि सिंधिया का जाना बड़ा नुकसान है. मध्य प्रदेश में सरकार नहीं बचेगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)