कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिला के मौलिक अधिकारों का हनन: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की जिसमें यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद एक महिला बैंक कर्मचारी का ट्रांसफर कर दिया गया था. महिला ने इसे कोर्ट में चुनौती दी थी.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की जिसमें यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद एक महिला बैंक कर्मचारी का ट्रांसफर कर दिया गया था. महिला ने इसे कोर्ट में चुनौती दी थी.

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नई दिल्लीः कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिला के मौलिक अधिकारों का हनन है. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के एक फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की और एक महिला बैंक कर्मचारी के ट्रांसफर को रद्द कर दिया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद इंदौर में पंजाब और सिंध बैंक की एक महिला कर्मचारी का जबलपुर जिले की सरसावा ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था.

महिला ने ट्रांसफर को अदालत में चुनौती देते हुए आरोप लगाया गया था कि इंदौर स्थित उनकी ब्रांच में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के बारे में उनकी रिपोर्ट और एक अधिकारी के खिलाफ उनकी यौन उत्पीड़न की शिकायत के कारण उनका ट्रांसफर किया गया.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रिट याचिकी को अनुमति दी थी और ट्रांसफर आदेश को रद्द कर दिया.

हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ बैंक की अपील पर विचार करते समय जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने ट्रांसफर आदेश की वैधता की जांच करते हुए कहा कि एक कर्मचारी के पास पोस्टिंग का विकल्प नहीं हो सकता.

अदालत ने कहा कि महिला कर्मचारी ने अधिकारियों को बार-बार पत्र लिखा और शराब ठेकेदारों के खातों में गंभीर अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाया और इस संदर्भ में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. पीठ ने यह भी कहा कि कर्मचारी ने विशेष रूप से जोनल मैनेजर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.

इस संदर्भ में पीठ ने कार्यस्थल (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर टिप्पणियां कीं.

पीठ ने कहा, ‘कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के साथ-साथ यौन उत्पीड़न की शिकायतों की रोकथाम और निवारण के लिए सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिनियम बनाया गया था. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अनुच्छेद 14 और 15 के तहत एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन है और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और साथ ही उन्हें किसी भी पेशे का अभ्यास करने या किसी भी व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार है.’

इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और इंदौर शाखा में महिला की दोबारा नियुक्ति का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि उन्हें 50,000 रुपये का मुआवजा भी दिया जाए.

पीठ ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि इसकी वजह से महिला का उत्पीड़न हुआ है. शाखा में अनियमितता उजागर करने को लेकर उनसे प्रतिशोध लिया गया. उनका ट्रांसफर कर उन्हें उस ब्रांच में भेजा गया, जहां स्केल-1 के अधिकारी को नियुक्त किया जाता है.’

पीठ ने कहा कि ऐसा करके एक महिला की गरिमा को कम करने की कोशिश की गई. कानून इसकी मंजूरी नहीं दे सकता. ट्रांसफर का आदेश गलत है, जो पूरी तरह से प्रतिशोध से लिया गया था.

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