दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान जान-माल के नुकसान के अलावा बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाएं हुई हैं, लेकिन ये ख़ौफ़ज़दा पीड़ित पुलिस में शिकायत दर्ज कराना तो दूर इसके बारे में बात करने से भी कतरा रही हैं.
दिल्ली के उत्तरपूर्वी इलाकों में हुई हिंसा के दौरान लूटपाट, जान और माल के नुकसान की खबरें शुरुआत से ही सुर्खियों में रहीं लेकिन हिंसा के दौरान महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और यौन शोषण की घटनाएं बमुश्किल ही बाहर निकल पाई हैं.
इस दौरान न सिर्फ महिलाओं को देखकर आपत्तिजनक इशारे किए गए बल्कि उन्हें गलत तरीके से छुआ गया और उनके साथ शारीरिक हिंसा भी हुई. दंगों के दौरान चांदबाग में जब लोग दंगाइयों की भीड़ से खुद की जान बचा रहे थे, तब ये महिलाएं अपनी जान के साथ-साथ अपनी आबरू बचाने की कोशिश में थीं.
दंगा प्रभावित इलाकों से गुजरते हुए द वायर जब चांदबाग पहुंचा तो वहां कुछ स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि दंगाइयों ने किस तरह हिंसा के बीच महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया. ये महिलाएं समाज और पुलिस के डर से सामने नहीं आईं और न ही आना चाहती हैं.
दंगाइयों की हैवानियत का शिकार हुईं इन पीड़ित महिलाओं में से कोई मां है, जिसकी दो बेटियों की शादी इसी साल होनी है, कोई अधेड़ उम्र की विधवा है, तो कोई नवविवाहिता. इन महिलाओं में इस कदर खौफ़ है कि अपने साथ हुई इस ज्यादती की शिकायत ये थाने में दर्ज नहीं कराना चाहतीं.
इन्हीं में से एक 26 साल की आफरीन है, जो अपने शौहर के साथ चांदबाग में रहती हैं. इनकी शादी को डेढ़ साल हुए हैं. जब उनसे बात करने उनके शौहर के साथ उनके घर पहुंचे, तो पहले वह हमें देखकर हिचकिचाईं.
बुर्का ओढ़े कमरे के एक कोने में बैठी आफरीन परेशान थीं कि कहीं हम उनकी बुर्के में ही तस्वीर न खींच लें या उनसे हो रही बातचीत रिकॉर्ड न कर लें. आफरीन के शौहर ने उन्हें समझाया कि हमारे पास न कोई कैमरा है और न ही माइक, इसलिए उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है.
बुर्के में ढकी हुई आफरीन की सिर्फ आंखें दिख रही थीं, जिनमें उनकी पीड़ा साफ दिखाई दे रही थी. शौहर के समझाने पर आफरीन ने धीरे-धीरे अपनी आपबीती बताना शुरू की.
उन्होंने बताया, ’24 फरवरी की रात अचानक से कुछ लोग छत से कूदकर हमारे घर में घुसे. हमारे घर के बाजू में एक खाली प्लॉट है, वहीं से भीड़ घर में घुसी और सामान तोड़ने लगी. मैं और मेरे शौहर मेन गेट की तरफ भागे लेकिन भीड़ में से कुछ लोगों ने मुझे पकड़ लिया. मुझे गालियां दी गईं और मेरा बुर्का खींचकर फाड़ दिया गया. मेरे शौहर मुझे बचाने दौड़े तो दंगाइयों ने उन्हें पकड़ लिया और पीटने लगे.’
उन्होंने आगे बताया, ‘दो लोग लगातार मुझे अपशब्द बोलते हुए मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे. इस बीच शोर-शराबा सुनकर पड़ोस के कुछ लोग आए और हमें बचाया. इसके बाद तो सबको पता है कि दंगाइयों की एक बड़ी भीड़ टूट पड़ी. हम लोग इतना डर गए थे कि रात में अपने घर भी नहीं गए, एक पड़ोसी के घर में हमने रात गुजारी.’
यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में विस्तार से पूछने पर वह भावुक हो जाती हैं. बुर्के के बीच से देख रही आफरीन की आंखें भर आती हैं. धीमे से वे कहती हैं, ‘मेरे पैर में चप्पल भी नहीं थी, बिना बुर्के के मैं बाहर भागी. उस दिन कुछ भी हो सकता था, वो लोग रेप भी कर सकते थे. मुझे बुरी तरह नोचा जा रहा था, स्तन खींचे जा रहे थे. उस दिन खुदा की मेहरबानी से बच निकले, लेकिन उन्होंने हमारा पूरा घर बर्बाद कर दिया. सारा सामान तोड़ दिया.’
आफरीन कहती हैं, ‘पंद्रह से बीस लोग घर में घुसे थे और हर कोई मेरे स्तन छूने की कोशिश कर रहा था. मुझे समझ ही नहीं आया कि जान बचाऊं या इज्जत.’
आफरीन के घर से चंद मकानों की दूरी पर रेशमा का घर है. रेशमा तलाकशुदा है और अपने माता-पिता और दो बच्चों के साथ रहती हैं. वे बातचीत शुरू होने से पहले कहती हैं कि वह नहीं चाहती कि उनकी तस्वीर, ऑडियो या वीडियो सार्वजनिक हों.
हमारे आश्वासन पर रेशमा बताती हैं, ’24 फरवरी की रात हमारे मोहल्ले में हमला हुआ था. सुबह से ही खबरें मिल रही थी कि दंगे हो रहे हैं इसलिए डर का मौहाल था. रात के समय अचानक पड़ोस से चीखें सुनाई देने लगीं, जो बढ़ती गईं. हमने घर अंदर से बंद कर लिया था लेकिन दंगाई बाहर से ही घर में पेट्रोल बम फेंक रहे थे, जिससे हमारे घर का एक हिस्सा ढह गया. घर में धुंआ भरने और घर के पूरा ढहने के डर से हम दरवाजे खोलकर बाहर भागने लगे.’
रेशमा ने झिझकते हुए आगे बताया, ‘रास्ते में दंगाइयों की भीड़ ने मुझे दबोच लिया, वे मेरे कपड़े फाड़ने लगे. एक आदमी ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया. मैं हिल भी नहीं पा रही थी. वो मेरे शरीर को टटोलने लगा, जैसे कुछ ढूंढ रहे हैं. मैं बहुत डर गई थी. वो आदमी मेरे शरीर पर हर जगह अपने हाथ फेर रहा था. उसने कसकर मेरी योनि पकड़ ली थी, मैं चीख रही थी लेकिन वो आदमी लगातार हंस रहा था और गालियां दे रहा था.’
रेशमा अपनी गर्दन दिखाते हुए कहती हैं, ‘मेरे गले पर अभी भी उस वहशी के दांत के निशान है. मेरे कपड़े आधे फट चुके थे, योनि से खून बह रहा था. क्या ये सब रेप से कम है क्या? मर्दों के लिए हम औरतें खिलौना होती हैं. जिस तरह से वह शख्स मुझे पकड़े हुआ था, मैं छटपटा रही थी लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.’
रेशमा के घर से निकलकर हम तरन्नुम के घर पहुंचे. तरन्नुम एक अधेड़ उम्र की महिला हैं. घर में शौहर और दो जवान बेटियां हैं. दूसरी मंजिल पर तरन्नुम के घर पहुंचे, तो मलबे के ढेर के बीच चारपाई पर लेटी तरन्नुम हमें देखकर रोने लगीं.
उनके शौहर मूढ़े पर बैठने का इशारा करते हैं. रोती हुई तरन्नुम कहती हैं, ‘अब क्या करेंगे जीकर? कुछ नहीं बचा, न पैसा, न घर, न इज्जत.’
आवाज रिकॉर्ड करने के आग्रह पर तरन्नुम के शौहर कहते हैं, ‘आप ऐसे ही बात कर लीजिए, कुछ रिकॉर्ड मत कीजिए. सुना है आजकल टेक्नोलॉजी बहुत फास्ट हो गई है, आवाज से पहचान हो जाती है. मेरी दो बेटियां हैं, जिनका इसी साल निकाह होना है. इन्हीं की खातिर चुप हैं कि कहीं इनके निकाह में कुछ रुकावट न आ जाए.’
तरन्नुम के शौहर की एक चिंता यह भी थी कि कहीं हमारे पास कोई छिपा कैमरा या रिकॉर्डर तो नहीं है. काफी समझाने के बाद तरन्नुम बात करने को तैयार होती हैं.
तरन्नुम कहती हैं, ‘बलात्कार किसे कहते हैं? मेरा शरीर पूरा नोच डाला उन लोगों (दंगाइयों) ने. उम्र तक का लिहाज नहीं किया. उनके आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती रही. वे 20-21 साल के लड़के थे.’
वे आगे कहती हैं, ‘हमारे मुसलमान होने पर इतनी नफरत कि बाल पकड़कर अंदर के कमरे से घसीटकर मुझे बाहर लेकर आए. मेरे हाथ से सोने की अंगूठी निकालकर ले गए. जहां से मन किया, वहां से मुझे पकड़कर घसीट रहे थे. अभी भी मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा है, कमर से नीचे के हिस्से में नीले निशान पड़ गए हैं. अल्लाह की शुक्रगुजार हूं कि हमले के वक्त मेरी बेटियां घर पर नहीं थीं वरना ये दरिंदे उन्हें खा ही जाते.’
बेटियों के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि यहां कुछ दिन पहले से ही लग रहा था कि कुछ होने वाला है, इसी डर से बेटियों को अपने रिश्तेदार के यहां छोड़ आए थे. वहां से निकलते हुए तरन्नुम और उनके शौहर हमसे हाथ जोड़कर फिर कहते हैं कि नाम-पता मत लिखिएगा, वरना बेटियों के निकाह में दिक्कत आ सकती है.
तरन्नुम के घर से निकलकर मेन चौक तक पहुंचे, वहां हमें अब्दुल्ला (परिवर्तित नाम) मिले और सवाल किया कि क्या हम उन औरतों से बात कर रहे हैं, जिनके साथ दंगाइयों ने गलत हरकत की है. हमारे हामी भरने पर उन्होंने बताया कि चांदबाग में रहने वाली एक विधवा के साथ 25 फरवरी को दंगाइयों ने ज्यादती की है.
अब्दुल्ला हमें बिना कैमरा के उनसे मिलने की बात कहते हैं. वे हमें उस महिला के घर तक ले जाते हैं. यह एक कमरे का मकान है, जिसे देखकर लगता है मानो यहां कोई भूचाल आया है.
टूटे-फूटे सामान के बीच जमीन पर पड़े एक बिस्तर पर शबाना लेटी हुई थीं. शबाना के शौहर का पांच साल पहले इंतकाल हो चुका हैं, कोई संतान नहीं है. वह पांच साल से इसी एक कमरे के किराये के मकान में अकेले रह रही हैं.
वे बताती हैं, ‘मैं सिलाई-बुनाई करके अपना घर चलाती हूं. शौहर पांच साल पहले गुजर गए, तब से खुद ही कमाकर खा रही हूं. 25 फरवरी को जब दंगाई मोहल्ले में पहुंचे तो ऐसा लगा मानो हम किसी और देश हैं और हम पर किसी ने हमला कर दिया है. भीड़ गेट तोड़कर अंदर घुसी है और सारा सामान तोड़ दिया.’
शबाना आगे बताती हैं, ‘इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती भीड़ ने मुझ पर हमला कर दिया. मुझे कुछ समझने या संभलने का मौका ही नहीं दिया. भीड़ चिल्ला रही थी कि मुल्ली है मारो, तो मुझे मारने लगे. मुझे आधा नंगा कर दिया गया. दंगाई मुझे नंगा करके सड़क पर घुमाने की बात कर रहे थे. इस एक कमरे के मकान में कम से कम 30 लोग थे जो कह रहे थे कि इन मुल्लियों को नंगा करके सड़क पर घुमाओ, तभी इनमें खौफ पैदा होगा.’
सिसकते हुए वे कहती हैं, ‘उन्होंने मेरे कपड़े फाड़ दिए, मुझे ऐसे लात मारी कि मैं गेट पर आकर गिरी. मैं दर्द से रो रही थी और ये लोग मुझे उठाकर सड़क की तरफ ले जाना चाह रहे थे. जब मैं नहीं उठ पाई और इन्हें लगा कि कहीं मैं मर न गई हूं, तो मुझे ऐसी ही हालत में छोड़कर चले गए. मुझे होश नहीं था, सुबह तक ऐसे ही पड़ी रही, सुबह आस-पड़ोस के लोगों ने मुझे ढका और अंदर ले गए. तब से मैं उठ नहीं पा रही हूं.’
इससे पहले द वायर से बात करते हुए दंगा प्रभावित क्षेत्र शिव विहार की महिलाओं ने बताया था कि उनके साथ यौन उत्पीड़न हुआ था. शिव विहार में हिंसा के बाद ढेरों महिलाओं ने मुस्ताफाबाद में शरण ली थी और बताया था कि दिल्ली दंगों के दौरान उनके साथ बदसलूकी और यौन उत्पीड़न की घटनाएं भी हुई थीं.
महिलाओं ने यह भी बताया था कि चांद बाग में सीएए-एनआरसी के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन स्थल पर भी बदतमीजी हुई थी. एक महिला ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, ‘मैं चांदबाग के प्रदर्शन स्थल पर कड़ी थी जब हमारे दो प्रदर्शनकारी साथियों को पुलिस ने हिरासत में लिया था. तब प्रदर्शन कर रही महिलाएं सामने आईं और पूछा कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. तभी ‘जय श्री राम’ के नारे लगता हुआ एक समूह वहां आया और छार आदमियों ने अपनी पैंट नीचे की और हमारी तरफ लिंग से इशारा करके चिल्लाने लगे कि ये लो आजादी.’
एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में मुस्तफाबाद में बने रिलीफ कैंप में रह रही महिलाओं ने अपने साथ ज्यादती और बलात्कार की कोशिश की बात स्वीकारी है.
इससे पहले रिलीफ कैंप का दौरा करने के बाद दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी कहा था कि उन्होंने दंगों के दौरान महिलाओं और लड़कियों के साथ बदसलूकी होने की शिकायतें सुनी थीं और उन्होंने पुलिस से इस बारे में जानकारी देने को कहा है.
(महिलाओं की सुरक्षा के उद्देश्य से सभी नाम परिवर्तित किए गए हैं.)