जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने पर न्याय की हत्या होगी. नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने में लैंगिक भेदभाव नहीं किया जा सकता.
नई दिल्ली: नौसेना में पुरुष और महिला अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किए जाने की बात पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बल में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन को मंजूरी दे दी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने कहा कि देश की सेवा करने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करने पर न्याय की हत्या होगी.
पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा वैधानिक अवरोध हटा कर महिलाओं की भर्ती की अनुमति देने के बाद नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने में लैंगिक भेदभाव नहीं किया जा सकता.
अदालत ने कहा, ‘जब एक बार महिला अधिकारियों की भर्ती के लिए वैधानिक अवरोध हटा दिया गया तो स्थायी कमीशन देने में पुरुष और महिलाओं के साथ समान व्यवहार होना चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एक स्थायी कमीशन एक अधिकारी को नौसेना में तब तक सेवा करने का अधिकार देता है, जब तक कि वह शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के विपरीत सेवानिवृत्त नहीं हो जाता, जो वर्तमान में 10 साल के लिए है और इसे चार साल या कुल 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है.
पीठ ने केंद्र के इस रुख को खारिज कर दिया कि नौसेना में महिला अधिकारियों को समुद्री कर्तव्य नहीं दिए जा सकते क्योंकि उनके रूसी जहाजों में महिलाओं के लिए वॉशरूम नहीं हैं. नेवी में महिला अधिकारियों को बुलाने के लिए पर्याप्त दस्तावेजी सबूत हैं.
यह फैसला नौसेना में उन महिला अधिकारियों को पेंशन लाभ भी देता है जो सेवानिवृत्त हो चुकी हैं और उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया गया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)