विपक्ष के सदन से वॉक आउट करने को क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अनुचित क़रार दिया. पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई पिछले साल नवंबर में रिटायर हुए थे. उन्होंने अक्टूबर 2018 में देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला था.
नई दिल्ली: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने गुरुवार को राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था.
हालांकि रंजन गोगोई को राज्यसभा सांसद बनाए जाने को लेकर मोदी सरकार चौतरफा आलोचना का सामना कर रही है. कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के कई नेता पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा दिए गए फैसलों से मोदी सरकार को फायदा पहुंचने के एवज में पद पाने का आरोप लगा रहे हैं.
आज जब गोगोई शपथ ग्रहण कर रहे थे उस समय विपक्ष के सदस्यों ने सदन से वॉक आउट किया.
Union Min Ravi Shankar Prasad: RS has a great tradition of many eminent persons coming from diverse fields, including former CJIs. Gogoi who has taken oath today will surely contribute his best. It was grossly unfair to do like that (oppn walk out during his oath-taking ceremony) https://t.co/u3o2plxbod pic.twitter.com/ZLkzPfsEfL
— ANI (@ANI) March 19, 2020
इस पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आपत्ति जाहिर की और कहा कि ऐसा करना बिल्कुल गलत है. उन्होंने कहा, ‘राज्यसभा की एक महान परंपरा रही है कि यहां पर विभिन्न क्षेत्रों से कई प्रतिष्ठित व्यक्ति आए हैं, जिनमें पूर्व सीजेआई भी शामिल हैं. गोगोई, जिन्होंने आज शपथ ली है, वह निश्चित रूप से अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देंगे. ऐसा करना (सदन से वॉक आउट) घोर अनुचित था.’
पूर्व सीजेआई गोगोई पिछले साल नवंबर में रिटायर हुए थे. जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में देश के 46वें मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभाला था. वह पूर्वोत्तर से न्यायपालिका के इस शीर्ष पद पर पहुंचने वाली पहली हस्ती थे.
बता दें कि रिटायर होने से कुछ दिनों पहले रंजन गोगोई ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाया था. गोगोई ने अयोध्या मामले पर बनी पांच न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व किया था, जिसने पिछले साल नौ नवंबर को फैसला सुनाया था.
अयोध्या मामले के अलावा गोगोई ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), रफाल विमान सौदा, सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने, सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों में सुप्रीम कोर्ट का नेतृत्व कर चुके हैं.
पूर्व सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप भी लग चुके हैं. हालांकि जांच समिति उन्हें इस मामले में क्लीनचिट दे चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था.
Delhi: Former Chief Justice of India Ranjan Gogoi takes oath as Rajya Sabha MP. President Ram Nath Kovind nominated him to the Rajya Sabha. pic.twitter.com/pnQ2uTWVfH
— ANI (@ANI) March 19, 2020
जस्टिस गोगोई तब सुर्ख़ियों में आए थे जब निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली को लेकर 12 जनवरी 2018 को जस्टिस जे. चेलमेश्वर के नेतृत्व में चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इन न्यायाधीशों में जस्टिस गोगोई भी शामिल थे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में न्यायाधीशों ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पर कई आरोप लगाए थे.
भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में संभवत: यह ऐसी पहली घटना थी.
18 नवंबर, 1954 को जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई ने डिब्रूगढ़ के डॉन बॉस्को स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में उच्च शिक्षा हासिल की.
असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के बेटे जस्टिस रंजन गोगोई ने 1978 में वकालत के लिए पंजीकरण कराया था. उन्होंने संवैधानिक, कराधान और कंपनी मामलों में गौहाटी उच्च न्यायालय में वकालत की.
उन्हें 28 फरवरी, 2001 को गौहाटी उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
गोगोई को नौ सितंबर, 2010 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में तबादला किया गया. उन्हें 12 फरवरी, 2011 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.
वह 23 अप्रैल, 2012 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे.
बहरहाल सरकार के इस कदम की आलोचना की जा रही है. वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘यह पूरी तरह से घृणित है. यह स्पष्ट तौर पर उनके (रंजन गोगोई) किए के एवज में सरकार की ओर उन्हें दिया गया इनाम है. न्यायपालिका की स्वतंत्रता पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है.’