भारत में हिंदी भाषा के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबार और विशाल मीडिया समूह दैनिक जागरण ने उत्तर प्रदेश चुनाव में आचार संहिता का उल्लंघन किया है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद जागरण ने एक एग्जिट पोल प्रकाशित किया था. एग्जिट पोल में जागरण ने 11 फरवरी को हुए पहले चरण के मतदान में 73 सीटों में भाजपा को नंबर एक की पार्टी तो दूसरे पर बसपा तीसरे पर सपा-कांग्रेस गठबंधन को बताया है.
चुनाव आयोग ने पहले से ही चुनाव के बीच किसी भी प्रकार का एग्जिट पोल पर रोक लगाई है. जागरण के अनुसार प्रकाशित एग्जिट पोल रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल (आरडीआई) की तरफ से आया है. हालांकि इस संगठन के बारे में जानकारी नहीं दी गई है और न ही यह बताया गया है कि किसके द्वारा यह सर्वे किया गया है.
इस सर्वे को ‘वोटर्स फीडबैक’ का नाम दिया गया है लेकिन इसमें एग्जिट पोल के सभी मानको का प्रयोग तो किया है.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग द्वारा अंतिम चरण के मतदान तक किसी भी सर्वे या पोल पर प्रतिबंध है.
जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 धारा 126 के तहत चुनाव आयोग ने 4 फरवरी से लेकर 8 मार्च तक किसी भी तरह एक्जिट पोल और उसके परिणाम पर रोक लगा रखी है.’
गोवा स्थित मीडिया समूह ने इस महीने प्रतिबंध को चुनौती भी दी थी लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मामले को बरकरार रखा हुआ है.
दैनिक जागरण ने ये दावा दिया है, कि उन्होंने 5700 लोगों के सैम्पल्स 38 विधानसभाओं से हासिल किया है. पश्चिम उत्तर प्रदेश के पहले चरण में 11 फरवरी को हुए मतदान में एक विधानसभा क्षेत्र में 10 बूथ पर लोगों से बातचीत की गयी. परिणाम का आकलन संभावना विधि के अनुसार हुआ है.
विरोधी पक्षों द्वारा जागरण के इस एग्जिट पोल को न सिर्फ आचार संहिता का उल्लंघन बताया गया है, बल्कि इसे अगले 6 चरण के मतदाताओं को प्रभावित करने का भी प्रयास भी बताया गया है.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनकी पार्टी पहले चरण में 50 सीटों पर जीतेगी. नेताओं द्वारा अपनी पार्टी के लिए इस तरह के बयान बेहद स्वाभाविक है. लेकिन जागरण ने चुनाव आयोग के प्रतिबंध का उल्लंघन करके मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया है.
पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णामूर्ति ने द वायर से बात करते हुए कहा ‘मुझे यकीन है चुनाव आयोग इस मामले की जांच करेगा. चुनाव आयोग को किसी भी प्रकार की दंडात्मक अधिकार नहीं है. यदि इस घटना को सही पाया जाता है, तो देखना है कि क्या यह भविष्य में क्या कर सकते हैं. यह फिर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश भी दे सकते है.
पूर्व चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने इस पर चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है ‘एग्जिट पोल पर प्रतिबंध है और यह बेहद गंभीर बात है. चुनाव आयोग को आरोपी पर मामला दर्ज कर गिरफ्तार करना चाहिए.’
चुनाव आयोग द्वारा द वायर को दिए अपने जवाब में सूचना अधिकारी ने कहा ‘ बहुत महत्वपूर्ण है … चुनाव रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल और धारा 126 ए और जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत बी और निर्वाचन आयोग के निर्देशों के स्पष्ट उल्लंघन में दैनिक जागरण द्वारा परिणामों का प्रकाशन और प्रचार-प्रसार से एग्जिट पोल के आचरण के बारे में रिपोर्ट का संज्ञान ले लिया है. भारतीय दंड संहिता की धारा 188 तहत जागरण समूह के उत्तर प्रदेश के सीईओ से तत्काल जवाब की मांग की गई है.’
चुनाव आयोग ने एग्जिट पोल के प्रकाशन पर प्रतिबंध 1998 में लगाया था. 1999 में इस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसके बाद आयोग ने अपने दिशा निर्देशों को वापस ले लिया. हालांकि 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों से सहमति बनाकर एक निर्देश जारी किया कि निर्वाचन आयोग के पास दिशा-निर्देश जारी करने की स्वतंत्रता है, जब तक इस मामले से जुड़े लंबित विधेयक पारित नहीं कर दिया जाता.
2009 में चुनाव आयोग के दिशा निर्देश.
किसी भी समय में किए गए किसी भी जनमत सर्वेक्षण या एक्जिट पोल का कोई परिणाम नहीं प्रकाशित किया जायेगा. प्रसार-प्रचार किसी भी तरीके से नहीं किया जाएगा चाहे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी अन्य मीडिया द्वारा.
(a) एक ही चरण में समाप्त हो रहे चुनाव में मतदान के निर्धारित समय के 48 घंटे के भीतर कोई भी पोल प्रकाशित नहीं किया जायेगा.
(b) विभिन्न चरणों में हो रहे चुनाव में अंतिम चरण के मतदान के लिए निर्धारित समय सीमा के 48 घंटे के भीतर कोई भी पोल प्रकाशित नहीं किया जायेगा.