वीरेंद्र सहवाग अभी चढ़ाई पर हैं क्योंकि उनकी फूहड़ता को ऑडियंस मिल रही है. उनको जितनी ऑडियंस मिलेगी वो और फूहड़ होते जाएंगे. आगे चल कर आपको बीवी-देवर वाले जोक्स भी देखने को मिल सकते हैं.
वीरेंद्र सहवाग ने फिर कुछ कहा. क्या कहा? कहा कि पोता हार गया है, बाप-बेटे का मुकाबला है और बाप फिर बेटे को हरा देगा.
सहवाग नज़फगढ़ से आते हैं और एक जाट हैं. मैं भी एक जाट परिवार से आता हूं. सहवाग की तरह मेरा संबंध भी हरियाणा से है.
सहवाग जैसे बेहुदे चुटकुले बनाने वाले लोग मेरे गांव में आपको हर नुक्कड़ पर मिल जाएंगे. गांव में नुक्कड़ नहीं होते. चौन्त्रियां और बैठक होती हैं.
एक चौन्त्री दरवाजे के बाहर बैठने की एक छोटी सी जगह होती है जहां हर रोज सुबह होते ही सहवाग जैसे मोनू-सोनू अखबार और चाय लेकर बैठ जाते हैं और आते-जाते लोगों पर टिप्पणियां करते हैं. क्यों करते हैं?
इसका जवाब मिल सकता था पर आजकल हरियाणा के वैज्ञानिक सरस्वती नदी का पानी ढूंढ रहे हैं तो इस पर शोध करने का उनके पास समय नहीं है.
क्यों का कोई खास जवाब नहीं है पर करते हैं. उनसे पहले उनके बड़े करते थे और उनके बड़ों से पहले उनके बड़े.
हंसमुख और मजाकिया दिखने की कोशिश इनको दिनोंदिन फूहड़ बना देती है और चूंकि हर रोज पिछले दिन से ज़्यादा मजाकिया होना होता है तो फूहड़ता की डिग्री बस बढ़ती रहती है.
मेरे घर में पांच सहवाग हैं और सब के सब सहवाग से अच्छा मजाक कर लेते हैं. जब मुझे अंदाज़ा नहीं था कि उनके भाभी-देवर वाले और उसकी बहु-इसकी बहु वाले चुटकुले घटिया स्तर के हैं तब तक मैं भी ठहाके लगा कर हंसता था.
इस सोच और लहजे का प्रमाण आपको कपिल शर्मा के शो में भी दिख जाएगा. कपिल शर्मा भी वर्षों से वही बेच रहे हैं. सहवाग को आप क्रिकेट का कपिल शर्मा कह सकते हैं.
सहवाग के आधे से ज़्यादा ट्वीट वाट्सऐप से उठाये होते हैं. सहवाग के सारे बीवी वाले जोक्स भी वहीं से आते हैं. उन चौन्त्रियों पर बैठे टिप्पणीकारों का सारा कटेंट भी इधर-उधर से सुनी-सुनाई बातों से आता है.
इनको बढ़ावा उनके आसपास सुबह-सुबह झुंड बना कर बैठ जाने वाले मोहल्ले के लड़कों से मिलता है. चूंकि मोहल्ले के लड़कों को डर होता है कि कहीं टिप्पणीकार अथवा हास्यरस में डूबा परफॉर्मर उनका मजाक ना उड़ाना शुरू कर दे इसलिए सब चुप रहते हैं और हंसते रहते हैं.
उनकी फूहड़ता मोहल्लों की औरतों और जो पलट कर जवाब ना दे सिर्फ उन तक सीमित नहीं रहती. ऐसे लोग घोर जातिवादी भी होते हैं. गांव की दूसरी जातियों पर इनके पास चुटकुलों की पूरी फेहरिस्त तैयार रहती है.
‘जाट प्राउड’ के झंडे तले एक के बाद एक चुटकुले आते रहते हैं. सुबह की चाय खत्म होती है. सब अपने-अपने काम पर लौट जाते हैं.
फिर शाम को ताश के पत्तों के खेल का जब जमावड़ा लगता है तो फिर से इन टिप्पणीकारों को अपने हुनर का प्रदर्शन करने का मौका मिल जाता है.
सहवाग और इन सब में एक और कॉमन बात यह है कि इनको फेंकने और बात को मिर्च मसाला लगा कर कहने में कोई एतराज नहीं होता बल्कि यह उनके एक्ट का प्रमुख अंग होता है.
यह सब फेंकते रहते हैं और सामने वाले लपेटते रहते हैं. चाहे कटेंट झूठा ही क्यों न हो पर अगर फेंका सही है तो लपेटने वाले मिल ही जाएंगे.
सब दिमाग में वैसे भी गोबर लेकर घूम रहे होते हैं तो न फेंकने वाले को कोई दिक्कत महसूस है और न ही लपेटने वाले को कोई शक होता है.
सहवाग का’बाप-बाप होता है, बेटा बेटा होता है’वाला स्टेटमेंट भी ऐसा ही कुछ है. उस स्टेटमेंट को सुन कर हिन्दुस्तानी ठहाके लगाते हैं क्योंकि पाकिस्तान और अख्तर का मजाक बनते हुए दिख रहा है. पर सहवाग से किसी ने आज तक पूछा नहीं कि वह कौन सा मैच था.
सहवाग अभी चढ़ाई पर हैं क्योंकि उनकी फूहड़ता को ऑडियंस मिल रही है. उनको जितनी ऑडियंस मिलेगी वो और फूहड़ होते जाएंगे. आगे चल कर आपको बीवी-देवर वाले जोक्स भी देखने को मिल सकते हैं.
पाकिस्तानी वाली उनकी बातों में कुछ नया नहीं है पर घर पर बैठे दर्शक को सहवाग को सुन कर लगता है कि कमेंट्री टीम में कोई है जिसकी सोच उसकी तरह ही है और वह उसकी तरह ही बोलता है. कनेक्ट ऐसे स्थापित हुआ है.
अगर कल को वाट्सऐप को 25-50 के बीच की ऑडियंस को टारगेट करने के लिए भारत में कोई कैंपेन चलाना हो तो वो सहवाग से संपर्क कर सकते हैं. थोड़े पैसे मिलने पर सहवाग कुछ भी ट्वीट तो वैसे कर ही देते हैं. आप उन्हें समझदार मानने की गलती ना करें.
सहवाग एक अति-साधारण सोच वाला इंसान है जिसका रिमोट उनकी पीआर टीम के हाथ में है. बचपन से बैट-बॉल के बीच रहने से इनको कुछ और सीखने-समझने का वक़्त भी नहीं मिला.
अब स्थिति यह है कि अगर कल को पीआर टीम सहवाग को कह दे कि चुनाव लड़ने से उनका बिजनेस बढ़ जाएगा तो कल को सहवाग आपको नेतागिरी करते हुए भी नज़र आ जाएंगे.
(अमित श्योकंद इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं और राजनीति शास्त्र में परास्नातक कर रहे हैं.)