लॉकडाउन के चलते कई राज्यों से सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर पैदल लौट रहे प्रवासी मज़दूर

निर्माण कार्यों में लगे मज़दूर, रेहड़ी-पटरी और खोमचे वाले और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग है जो रोज़ कमाता है और रोज़ परिवार का पेट भरता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मज़दूरों के समक्ष रोज़ीरोटी का संकट खड़ा हो गया है.

(फोटो: रॉयटर्स)

निर्माण कार्यों में लगे मज़दूर, रेहड़ी-पटरी और खोमचे वाले और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग है जो रोज़ कमाता है और रोज़ परिवार का पेट भरता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मज़दूरों के समक्ष रोज़ीरोटी का संकट खड़ा हो गया है.

New Delhi: A group of migrant workers walk to their villages amid the nationwide complete lockdown, on the GT Road at Dilshan Garden in New Delhi, Thursday, March 26, 2020. The migrants, reportedly, started to foot it to their villages in Uttar Pradesh after they were left with no other option following the announcement of a 21-day lockdown across the country to contain the Covid-19, caused by the novel coronavirus. (PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI26-03-2020 000032B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना वायरस फैलने के खतरे को देखते हुए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन के बीच गुजरात में काम करने वाले राजस्थान के हजारों प्रवासी मजदूर परिवहन सेवा उपलब्ध न होने के कारण पैदल ही अपने घर को लौट रहे हैं.

अहमदाबाद के एक कांग्रेस नेता ने राजस्थान सरकार से अनुरोध किया है कि गुजरात-राजस्थान सीमा के पास स्थित अरवल्ली जिले के शामलजी उपनगर में ऐसे मजदूरों के पहुंचने पर उनके लिए परिवहन का इंतजाम किया जाए.

राजस्थान के डूंगरपुर जिले के निवासी और अहमदाबाद में काम करने वाले राधेश्याम पटेल ने कहा कि बिना किसी कमाई के यहां रहने का कोई औचित्य नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हम लोग यहां चाय की दुकानों या खानपान की रेहड़ी पर काम करते हैं. चूंकि सब कुछ बंद है इसलिए हमारे मालिकों ने हमसे कह दिया है कि हालात ठीक हो जाएं तब आना, क्योंकि उनके पास हमें देने के लिए पैसे नहीं हैं. बस और अन्य माध्यम उपलब्ध नहीं हैं इसलिए हमने पैदल ही घर जाने का निश्चय किया है.’

पटेल उस 50 सदस्यीय समूह का हिस्सा हैं, जिसने मंगलवार की रात पैदल यात्रा शुरू की थी.

राजस्थान के उदयपुर जिले के रहने वाले मांगी लाल ने कहा, ‘मुझे वायरस के खतरे के बारे में पता है लेकिन हम असहाय हैं. बिना कमाई के हम तीन हफ्ते तक कैसे जिंदा रहेंगे? हमारे पास मकान मालिक को देने के लिए पैसे नहीं हैं. इससे अच्छा है कि हम अपने घर चले जाएं.’

गांधीनगर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक मयंक सिंह चावड़ा ने कहा कि पुलिस मजदूरों को मानवीयता के नाते खाने के पैकेट और पानी उपलब्ध करवा रही है.

उन्होंने कहा, ‘हम इन प्रवासी मजदूरों को राजस्थान वापस जाने से रोकने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं. इनके जाने से लॉकडाउन का उद्देश्य सफल नहीं होगा.’

गुजरात प्रवासी मजदूर कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक पंजाबी ने दावा किया कि केवल अहमदाबाद से पचास हजार से अधिक मजदूर पैदल ही राजस्थान स्थित अपने घर की ओर रवाना हो चुके हैं.

देश के अन्य राज्यों से भी ऐसी खबरें सामने आ रही हैं. एनडीटीवी की एक खबर के मुताबिक दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बंटी अपने छोटे भाई, पत्नी और चार बच्चों समेत दिल्ली छोड़कर अपने गांव अलीगढ़ पैदल जा रहे हैं. इनके साथ एक 10 महीने का बच्चा और तीन छोटे बच्चे हैं.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से भी ऐसी खबरें आई हैं जहां के मजदूर अपने कार्यस्थल को छोड़कर मजबूरी में अपने गांव की ओर लौट रहे हैं.

बंद के कारण दिहाड़ी मजदूरों के लिए कठिन संघर्ष के दिन

निर्माण कार्यों में लगे मजदूर, रेहड़ी-पटरी और खोमचे वाले और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग है जो रोज कमाता है और रोज परिवार का पेट भरता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मजदूरों के समक्ष रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है.

कोविड-19 महामारी को और फैलने से रोकने की कोशिश में देश में तीन सप्ताह का बंद जारी है और पूरे देश की रफ्तार थम गयी है.

लोग घरों में ही बंद हैं और उच्च तथा मध्यम वर्गीय परिवारों के सामने रोजीरोटी को लेकर आर्थिक मोर्चे पर इतना बड़ा संकट भी नहीं है लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला श्रमिक वर्ग इस बंदी से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश में असंगठित क्षेत्र में करीब 42 करोड़ लोग काम करते हैं. इनमें खेतिहर मजदूर भी शामिल हैं.

परिवार की रोजी-रोटी जुटाने के लिए एक बड़ा वर्ग गांव से दूर अपना घर बसाता है लेकिन ऐसे कई सारे लोग अब सड़क और रेलगाड़ी बंद होने के चलते जहां तहां फंस गये हैं. उन्हें अपने साथ ही गांव में रह रहे परिजनों की भी चिंता सता रही है.

संकट के इन दिनों की गिनती कितनी होगी, कोई नहीं जानता. किसी को हालात से उबरने का सही वक्त नहीं पता. ऐसे में कई कहानियां हैं जो आंखें नम कर देती हैं.

Ahmedabad: Migrant workers and their families board a truck to return to their villages after government imposed a 21-day nationwide lockdown in wake of coronavirus pandemic, in Ahmedabad, Wednesday, March 25, 2020. (PTI Photo)(PTI25-03-2020 000312B)
अहमदाबाद से अपने गांव-घरों को लौटते मजदूर. (फोटो: पीटीआई)

बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले 22 साल के भूपेश कुमार दिल्ली जैसे बड़े शहर में कमाई की आस में आए थे, लेकिन अब वे बेहाल हैं. न तो गांव में परिवार के पास जाना मुमकिन और न ही कुछ कमाना ही संभव है.

बकौल भूपेश, ‘मैं स्नातक की पढ़ाई कर रहा था लेकिन करीब पांच महीने पहले दिल्ली आना पड़ा क्योंकि परिवार की माली हालत बहुत खराब है. मैं घरों में प्लास्टर लगाने का काम करना सीख रहा था. इतने दिनों में मुश्किल से ही कुछ कमा पाया हूं.’

घरों की रंगाई-पुताई का काम कराने वाले ठेकेदार अंजनि मिश्रा ने उनके लिए काम करने वाले पांच लोगों से घर वापस जाने को कहा है.

कोलकाता में निर्माण क्षेत्र के श्रमिक मनोज बरीक का काम-धंधा इसी हफ्ते चला गया, जब उनकी कंपनी ने सारा कामकाज ही रोक दिया. वह 300 रुपये की दिहाड़ी से जैसे-तैसे तीन बच्चों समेत पांच सदस्यों के अपने परिवार का खर्च चला रहे थे लेकिन अब आगे क्या, सूझ नहीं रहा.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते मंगलवार शाम असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों के लिए एक हजार रुपये की एकमुश्त सहायता की घोषणा की.

मनोज बरीक और उनके जैसे अन्य मजदूरों के लिए यह मदद काफी तो नहीं है लेकिन वक्त पर उन तक पहुंच गयी तो थोड़ी राहत जरूर दे सकती है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सबसे पहले राज्य में करीब 35 लाख श्रमिकों के लिए एक-एक हजार रुपये की मदद का ऐलान किया था. वहीं 1.65 करोड़ निर्माण क्षेत्र के मजदूरों को एक महीने तक मुफ्त राशन दिये जाने की भी घोषणा की गयी.

हरियाणा सरकार ने इसी सप्ताह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की मदद के लिए 1200 करोड़ रुपये प्रति माह के पैकेज का ऐलान किया था.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने राशन कार्ड धारकों, हॉकरों और ऑटो-रिक्शा चालकों के लिए 3000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है.

अन्य कई राज्य भी इस तरह की पहल कर रहे हैं. कुछ एनजीओ और निजी क्षेत्र के लोग भी संकटग्रस्त दैनिक वेतनभोगियों की मदद के लिए आगे आये हैं.

सोशल मीडिया पर लोग एक दूसरे से अपने आसपास रहने वाले ऐसे गरीबों, वंचितों की भोजन आदि में मदद के लिए आग्रह कर रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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