कोरोना राहत पैकेज: क्या वित्तमंत्री ने मनरेगा मज़दूरों के साथ धोखा किया है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले हफ्ते कोरोना राहत पैकेज की घोषणा करते हुए मनरेगा मज़दूरी में वृद्धि की बात कही. हालांकि यह एक रूटीन वार्षिक कवायद थी, जिसे पहले ही ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था.

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निर्मला सीतारमण. (फोटो: पीटीआई)

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले हफ्ते कोरोना राहत पैकेज की घोषणा करते हुए मनरेगा मज़दूरी में वृद्धि की बात कही. हालांकि यह एक रूटीन वार्षिक कवायद थी, जिसे पहले ही ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था.

निर्मला सीतारमण. (फोटो: पीटीआई)
निर्मला सीतारमण. (फोटो: पीटीआई)

26 मार्च को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित राहत पैकेज में, जहां तक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के कामगारों का सवाल है, यह पूरी तरह से भ्रमित करने वाला है.

एक पंक्ति में कहा जाए तो इस पैकेज में मनरेगा के कामगारों के लिए कुछ नहीं है, लेकिन फिर भी इसके ब्यौरों की तफ्तीश करना उपयोगी होगा.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) में मनरेगा कामगारों की राहत के लिए निम्नलिखित उपायों को आधिकारिक तौर पर शामिल किया गया हैः

‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के आधिकारिक दस्तावेज के मुताबिक ‘मनरेगा मजदूरी को 1 अप्रैल 2020 से 20 रुपया बढ़ाया जाएगा. मनरेगा के तहत मजदूरी में इस वृद्धि से एक कामगार को सालाना 2,000 रुपये का फायदा होगा.’

संयोग की बात है कि मजदूरी में 20 रुपये की वृद्धि से ‘मजदूर को प्रतिवर्ष 2,000 रुपये का फायदा’ होने के दावे के पीछे यह मान्यता छिपी है कि उस कामगार को मनरेगा के तहत पूरे 100 दिन का रोजगार मिलेगा.

लेकिन हकीकत यह है कि पूरे 100 दिन रोजगार पा सकने वाले मनरेगा कामगारों की संख्या काफी कम है.

इस बात को अभी छोड़ भी दें, तो पीएमजीकेपी का यह प्रावधान 26 मार्च को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री द्वारा दिए गए इस बयान के अनुरूप है कि मनरेगा कामगारों की मजदूरी को 1 अप्रैल, 2020 से 182 रुपये प्रति दिन से बढ़ाकर 202 रुपये प्रतिदिन कर दिया जाएगा.

लेकिन यहां एक पेंच हैः ग्रामीण विकास मंत्रालय 23 मार्च को ही 1 अप्रैल, 2020 से एक अधिसूचना निकाल कर मनरेगा मजदूरी को बढ़ाने की घोषणा कर चुका है.

यह एक सामान्य वार्षिक कवायद है, जिसके तहत हर राज्य में (मनरेगा मजदूरी राज्य के हिसाब से तय होती है) उपभोक्ता मूल्यों के हिसाब से मजदूरी में वृद्धि की जाती है. इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है.

दिलचस्प तरीके से, इस अधिसूचना के मुताबिक 2020-21 के लिए निर्धारित मनरेगा मजदूरी ज्यादातर राज्यों में 202 रुपये प्रतिदिन से ज्यादा है.

बड़े राज्यों के लिए इसका अनिर्धारित औसत 226 रुपये प्रतिदिन है और निर्धारित औसत (2019-20 के मनरेगा रोजगार के व्यक्ति-दिवस को पैमाने के तौर पर इस्तेमाल करने पर) 221 रुपये प्रतिदिन है.

दूसरे शब्दों में वित्त मंत्री द्वारा घोषित की गई, 202 रुपये रोजाना की मजदूरी पहले से ही अधिसूचित की जा चुकी मजदूरी दरों से काफी कम है.

ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि 26 मार्च को सीतारमण ने जिस मजदूरी दर की घोषणा की उसका स्रोत है क्या?

सबसे पहले इस तथ्य पर ध्यान दीजिए कि 2020-21 के लिए एक राष्ट्रीय मनरेगा मजदूरी का कोई मतलब नहीं है- यह हद से हद एक अनुमान है.

इसका कारण यह है कि राज्यों की मजदूरी दर से सटीक तरीके से राष्ट्रीय औसत की गणना राज्यवार रोजगार के स्तर को जाने बगैर नहीं की जा सकती है.

और यह कोई नहीं जानता है कि 2020-21 में मनरेगा रोजगार का स्तर क्या रहने वाला है? फिर भी चलिए हम 202 के आंकड़े को समझने की कोशिश करते हैं.

ऐसा लगता है कि वित्तमंत्री ने बस पीएमजीकेपी की आधिकारिक घोषणा के आधार पर 182 रुपये के 2019-20 के बेसलाइन आंकड़े के ऊपर 20 रुपये जोड़ दिया है.

और यह 182 का आंकड़ा आया कहां से है? यह मनरेगा की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है, जहां इसे 2019-20 में प्रति व्यक्ति, प्रति दिन की औसत मजदूरी बताया गया है.

यह 2019 में मजदूरी के तौर पर दिये गए कुल धन को कुल व्यक्ति-दिवस से भाग करने से मिला आंकड़ा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो यह दरअसल मिली मजदूरी का औसत मात्र है, न कि कोई अधिसूचित मजदूरी.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

सवाल यह है कि यह इतना कम क्यों है (2019-20 के लिए अधिसूचित राज्यवार मजदूरी दरों का निर्धारित औसत 200 रुपये रोजाना है)?

इसके दो संभावित कारण हो सकते हैं. एक कारण यह हो सकता है कि मनरेगा मजदूर को अक्सर अलग-अलग कामों के हिसाब से मजदूरी मिलती है और व्यवहार में वह अधिसूचित मजदूरी दर से भी कम कमा सकता है.

दूसरा संभावित कारण यह हो सकता है कि मजदूरी के भुगतान में होनेवाली देरी ने 2019-20 में ‘प्रति दिन प्रति व्यक्ति औसत मजदूरी दर’ को नीचे ला दिया.

मामला चाहे जो हो, इस निचले बेसलाइन के इस्तेमाल के कारण वित्तमंत्री ने 202 रुपये प्रतिदिन की बढ़ी हुई मजदूरी का ऐलान किया, जो वास्तव में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा पहले ही अधिसूचित मजदूरी दर से भी कम है.

और यह बात याद रखिए कि ग्रामीण विकास मंत्रालय की अधिसूचना कीमतों में वृद्धि पर आधारित एक सामान्य वार्षिक कवायद थी.

क्या एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि वित्तमंत्री (और पीएमजीकेपी की घोषणा) के कहने का मतलब यह था कि मजदूरी में 20 रुपये की यह वृद्धि उस मजदूरी दर के ऊपर होगी, जिसे ग्रामीण विकास मंत्रालय पहले ही अधिसूचित कर चुका है.

लेकिन साफतौर पर ऐसा पर नहीं है. अन्यथा उन्होंने 2019-20 की आधार रेखा (बेसलाइन) का इस्तेमाल मजदूरी की वृद्धि का हिसाब लगाने (182+20= 202) के लिए नहीं किया होता.

20 रुपये का यह बोनस 23 मार्च, 2020 को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्यवार हिसाब से अधिसूचित मजदूरी दरों के अनुमानित औसत के अलावा और कुछ नहीं है.

संक्षेप में कहें, तो वित्त मंत्री ने पहले से ही ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित वृद्धि को (जो कि एक रूटीन कवायद थी) को अपने राहत पैकेज में शामिल करके उसे बड़े कदम के तौर पर पेश करने की कोशिश की.

इसके साथ ही उन्होंने 20 रुपये प्रतिदिन के बोनस को 100 दिन के रोजगार के साहस भरे अनुमान के साथ जोड़कर यह दावा किया कि मजदूरी में बढ़ोतरी से ‘श्रमिक को सालाना 2,000 रुपये का फायदा मिलेगा.’

यह मीडिया के लिए एक बड़ी सुर्खी लायक मसाला है, लेकिन सच्चाई यह है कि इस राहत पैकेज में मनरेगा मजदूर के लिए वास्तव में कुछ भी ठोस नहीं है.

(लेखक रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विज़िटिंग प्रोफेसर हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)