याचिका में कहा गया है कि भारत में कम बजट के आवंटन की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य का क्षेत्र हमेशा ही खस्ताहाल रहा है. याचिका में दावा किया गया है कि दुनिया भर में इस महामारी पर अंकुश लगने तक स्वास्थ सुविधाओं का राष्ट्रीयकरण किया जा चुका है.
नई दिल्ली: देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी पर अंकुश लगने तक देश में सारी स्वास्थ्य सुविधाओं और उनसे संबंधित इकाइयों का राष्ट्रीकरण करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है.
यह याचिका अधिवक्ता अमित द्विवेदी ने दायर की है. याचिका में दावा किया गया है कि भारत में इस महामारी से निपटने के लिए जन स्वास्थ सेवाओं की समुचित व्यवस्था का अभाव है.
याचिका में केंद्र और सभी राज्य सरकारों को सारी स्वास्थ्य सुविधाओं का राष्ट्रीयकरण करने और सारी स्वास्थ्य सेवाओं, संस्थाओं, कंपनियों और उनसे संबद्ध इकाइयों को महामारी से संबंधित जांच और उपचार मुफ्त में करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
याचिका में कहा गया है कि भारत में कम बजट के आवंटन की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य का क्षेत्र हमेशा ही खस्ताहाल रहा है लेकिन इसी दौरान निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का जबर्दस्त विकास हुआ है.
याचिका के अनुसार, कोविड-19 जैसी महामारी से निपटने के लिए भारत के पास पर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ सुविधाएं नहीं है और अंतत: भारत को इस मामले में निजी क्षेत्र की मदद लेने की आवश्यकता होगी.
याचिका में दावा किया गया है कि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी पर अंकुश लगने तक स्वास्थ सुविधाओं का राष्ट्रीयकरण किया जा चुका है.
याचिका में दावा किया गया है कि वर्ष 2020-21 के बजट में भारत में सिर्फ 1.6 प्रतिशत अर्थात 67,489 करोड़ रुपये ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च करने का प्रावधान किया गया है, जो दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले औसत खर्च की तुलना में ही काफी कम नहीं है, बल्कि कम आमदनी वाले देशों के खर्च की तुलना में भी न्यूनतम है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ही सभी निजी प्रयोगशालाओं को कोविड-19 संक्रमण की जांच नि:शुल्क करने का निर्देश देते हुए टिप्पणी की थी कि राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में उन्हें उदार होने की जरूरत है.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक परामर्श के तहत निजी अस्पतालों और निजी प्रयोगशालाओं ने कोविड-19 की जांच के लिए 4,500 रुपये कीमत रखी थी.
अदालत ने कहा कि इस महामारी के समय देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या कोरोना की जांच के लिए 4500 रुपये देने में सक्षम नहीं है. इसलिए 4,500 रुपये का भुगतान न कर पाने वाले देश के किसी भी शख्स को कोरोना जांच से वंचित नहीं रखा जा सकता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)