2014 में पुणे में 24 वर्षीय मोहसिन शेख़ की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. इस हत्या का आरोप हिंदू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं पर लगा था. मोहसिन के पिता सादिक़ कहते हैं, ‘भीड़ द्वारा आस्था का झंडा उठाकर यह जो हत्या करने का काम है, उस पर लगाम लगना ज़रूरी है.’
2 जून, 2014 में महाराष्ट्र के पुणे में 24 वर्षीय मोहसिन शेख़ की हत्या के मामले में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पब्लिक प्रॉसिक्यूटर उज्ज्वल निकम ने पिछले दिनों अपना नाम वापस ले लिया है. मोहसिन शेख़ को कुछ लोगों ने पीटकर मार दिया था.
इस हत्या का आरोप एक भगवा संगठन के कार्यकर्ताओं पर लगा था. पीड़ित परिवार की गैर-जानकारी और बिना सलाह किए निकम ने यह फैसला लिया, जिसके बाद परिवार ने सरकार को पत्र लिख कर रोहिणी सालियान को वकील नियुक्त करने की मांग की है.
उज्ज्वल निकम के अचानक केस छोड़ने पर मोहसिन के 63 वर्षीय पिता सादिक़ शेख बहुत दुखी हैं. महाराष्ट्र के सोलापुर में फोटोकॉपी और डीटीपी की छोटी सी दुकान चलाने वाले सादिक़ अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि सुनवाई शुरू होने से पहले निकम ने क्यों इस मामले से अपना वकालतनामा वापस ले लिया है.
वो बताते हैं, ‘हमने बहुत उम्मीद से यह मामला उनके हाथों में दिया था, लेकिन अब उन्होंने केस लड़ने से मना कर दिया है. यह हमारे पूरे परिवार के लिए बड़े ही दुःख की बात है.’
मोहसिन के पिता सादिक़ ने जब निकम से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया, लेकिन जब उन्होंने उन्हें मैसेज किया तो निकम ने जवाब में कहा, ‘आप बहुत अच्छे आदमी हैं इसलिए मैंने केस लिया था, भगवान बहुत बड़ा है और आपको न्याय ज़रूर मिलेगा.’
द वायर से बात करते हुए मोहसिन के पिता सादिक़ का कहना है, ‘जब मोहसिन की हत्या हुई तो प्रशासन के ऊपर बहुत दबाव था और मेरे पूरे परिवार ने कभी भी दंगा भड़कने नहीं दिया, क्योंकि उस समय ऐसी स्थिति हो चुकी थी कि दोनों तरफ़ के लोग मार काट करना चाहते थे. मेरे बेटे से साथ जो हुआ उसके लिए मैं उन्हें माफ़ नहीं कर सकता, पर हां, उनको सज़ा देने का अधिकार सिर्फ़ क़ानून को है.’
‘मैंने हमेशा अपने बच्चों को दीन के साथ दुनियावी तालीम भी दी. मैं हमेशा से अब्दुल कलाम को मानने वाला हूं और मेरे बच्चे भी इसी तरह देश के लिए इतना बड़ा योगदान करने वालों को आदर्श मानते हैं. धर्म और दीन के नाम पर अराजकता और हीनभावना फ़ैलाने वाले दोनों तरफ़ हैं. मैं चाहता हूं कि इस तरह हिंदू धर्म और इस्लाम धर्म का नाम लेकर जो लोग युवाओं को बहका रहे हैं और वे लोग भीड़ का हिस्सा बनकर किसी की भी हत्या कर रहे हैं, उन्हें सरकार को रोकना चाहिए और समाज को इस पर गंभीर विचार करना चाहिए कि हम अपने समाज को फिर 100 साल पीछे ले जा रहे हैं.’
निकम से पूरे मामले और उनके काम से प्रभावित होकर मामला उनके हाथों में दिया गया था. सादिक़ बताते हैं, ‘हमने निकम साहब का नाम बहुत सुना था, क्योंकि उन्होंने कसाब जैसे आतंकवादी को फांसी दिलवाई थी. मैंने यह देखा है कि देश के बाहर से आतंकी जो हमारे भारत को बर्बाद करने की मंशा से आते हैं, उन्हें निकम ने सज़ा दिलवाई और मुझे लगा था कि यही वो व्यक्ति है जो अंदरूनी आतंक फ़ैलाने वालों को सज़ा दिलवा सकता है.’
सादिक़ आगे बताते हैं, ‘जब भी आरोपी ज़मानत के लिए अर्जी करते थे, तब निकम साहब के प्रयत्न से काफ़ी बार उन लोगों की ज़मानत रद्द हुई है. लेकिन अब 5 आरोपी छोड़ कर सभी को जमानत मिल चुकी है. एक बार सुनवाई के दौरान जस्टिस मृदुला भटकर ने अदालत में कहा था कि आरोपी की मोहसिन से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी, इसमें सिर्फ़ ग़लती मोहसिन के मज़हब की थी, अलग धर्म के होने के चलते ऐसी घटना हुई थी. अब सोचिए कि जब एक जज की यह सोच है तो कभी कभी न्याय मिलना मुश्किल लगता है.’
मुक़दमे से वकालतनामा पीछे लेने पर सादिक़ कहते हैं, ‘निकम साहब ने नाम वापस लेने के लिए कोई ठोस कारण तो नहीं बताया, पर उन्होंने बस कहा कि भगवान बड़ा है और आपको न्याय मिलेगा. जहां तक मैंने सुना है और सोशल मीडिया पर चर्चा है कि निकम साहब पर अभियुक्त की तरफ़ के लोगों का दबाव है.’
सादिक़ आगे कहते हैं, ‘मुझे एक व्यक्ति ने कहा था कि निकम की नज़दीकी आरएसएस से है, जब यह मामला निकम साहब ने अपने हाथ में लिया था. लेकिन मैंने उस व्यक्ति पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया था. मामले के मुख्य आरोपी धनंजय देसाई हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष हैं. हर जगह से तो यही कहा जा रहा है कि उन पर दबाव था, पर सच क्या है वह तो निकम साहब को ही मालूम होगा जो बताने को तैयार नहीं हैं.’
राज्य सरकार के नेता और सूबे के मुख्यमंत्री ने सादिक़ से कहा था कि उनके बेटे को न्याय मिलेगा और सरकार की तरफ़ से पूरी मदद की जाएगी. नेताओं को लेकर वे बताते हैं, ‘जब मेरे बेटे की हत्या हुई, तब बहुत सारे नेता मुझसे मिलने आए थे. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण और उस समय के गृह मंत्री स्वर्गीय आरआर पाटिल साहब ने मुझे आश्वासन दिया था कि मुझे न्याय मिलेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. दरअसल उस समय की कांग्रेस सरकार ने मुझे धोखा दिया है.’
वे कहते हैं, हमारे उस समय के सांसद व पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और उनकी बेटी ने हम लोगों को बहुत बेवकूफ़ बनाया और जब चुनाव के बाद मिलने गए तो उन्होंने पहचानने से भी इंकार कर दिया और कहा कि मैं बहुत लोगों से मिलता हूं और हर किसी को याद नहीं रख सकता.
सादिक़ के अनुसार, राज्य सरकार की तरफ़ से महज़ 5 लाख रुपये मुआवज़े के रूप में दिया गया, लेकिन सरकारी नौकरी का जो वादा था वो आज भी नहीं मिली और जब दफ्तरों के चक्कर काट-काट कर थक गए तो उन्होंने कहा कि आपका बेटा सरकारी नौकरी में नहीं था इसलिए सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती है.’
केंद्र सरकार की ओर से आई जांच समिति से पुणे में सादिक़ की बात हुई थी. दिल्ली से आए लोगों ने 3 लाख रुपये केंद्र सरकार की तरफ़ से मुआवज़ा की बात कही थी.
सादिक़ बताते हैं, ‘केंद्र सरकार ने मोहसिन की हत्या के बाद कहा था कि 3 लाख रुपये मुआवज़ा दिया जाएगा, जो अभी तक हमें मिला नहीं और जब ज़िला अधिकारी के दफ्तर में पूछताछ की तो पता चला है कि यह राशि मिलनी है पर इसको लेकर केंद्र सरकार से अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है. हमने इसको लेकर केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी को पत्र भी लिखा, पर किसी भी प्रकार का कोई जवाब नहीं मिला.’
सादिक़ के पूरे परिवार की जीविका मोहसिन पर आधारित थी. वह पुणे की एक कंपनी के आईटी विभाग में काम करता था. हत्या के बाद परिवार की आर्थिक हालत और भी नाज़ुक हो गई है.
सादिक़ कहते हैं, ‘मोहसिन हमारे परिवार में आय का एकमात्र स्रोत था, हत्या के कारण और सरकार के गैरज़िम्मेदाराना रवैये ने हमारे परिवार को आर्थिक तंगी के अंधेरे में धकेल दिया है. सरकार और नेताओं का जो रवैया था, उससे हम ज़्यादा दुखी हुए हैं. हमारे मौजूदा सांसद सुभाष बंसोडे ने ही सिर्फ़ घर आकर 50 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद की थी, उसके अलावा कोई और मदद करने को आगे नहीं आया.
मोहसिन की हत्या के मामले में अब निकम ने अपना वकालतनामा पीछे ले लिया है. सादिक़ ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर मांग की है कि अब इस मामले का वकील रोहिणी सालियान को नियुक्त किया जाए.
अपनी मांग पर सादिक़ कहते हैं, ‘निकम साहब के पीछे हटने के बाद हम बहुत मायूस हो गए थे. मोहसिन की अम्मी आज भी सदमे में है और उसके लिए यह और भी बड़ा सदमा था. हमने रोहिणी जी के बारे में एक अख़बार में पढ़ा था कि जब वे मालेगांव ब्लास्ट मामले में सरकारी वकील थीं, तब एनआईए ने उनपर दबाव बनाया था कि मामले में नरमी बरतें. हमें लगा कि रोहिणी जी ईमानदार हैं और यह मुक़दमा उनसे अच्छा और कोई नहीं लड़ पाएगा.’
सादिक़ ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को रोहिणी की नियुक्ति किए जाने की मांग को लेकर पत्र लिखा है. उन्होंने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी पत्र लिखा है. सादिक़ बताते हैं कि उन्हें अभी तक किसी भी जगह से कोई भी जवाब या आश्वासन नहीं मिला है.
सादिक़ को आज भी न्याय की उम्मीद है. मामले की सुनवाई 4 जुलाई से शुरू होनी है और उससे पहले उन्हें वकील की नियुक्ति करवानी होगी.
उन्होंने संविधान और न्यायपालिका पर विश्वास जताते हुए कहा, मुझे उम्मीद है कि मेरे बच्चे को इसांफ़ मिलेगा, मुझे इस देश की न्यायपालिका और संविधान पर पूरा विश्वास है. हमने कोई ग़लत काम नहीं किया और मेरे बेटा बहुत ही अच्छा इंसान था. मेरा अल्लाह और मेरे देश का क़ानून मेरे साथ है तो मुझे किसी का डर नहीं. जब तक इंसाफ़ नहीं मिलता हम कोशिश करते रहेंगे.
धार्मिक उन्माद में जो भीड़ मज़हब और आस्था के नाम पर सड़कों पर हत्या कर रही है, उस पर सादिक़ कहते हैं, ‘मैं सिर्फ़ ये नहीं कहूंगा कि यह एक तरफ़ की बात है. दोनों ही तरफ़ या कहूं हर तरफ़ के लोग मज़हब और धर्म के नाम पर धार्मिक उन्माद फ़ैला रहे हैं. जबकि सभी मज़हब मानवता के आधार पर टिका हुआ है.’
वे कहते हैं, आज किसी भीड़ ने मेरे बेटे का फ़ैसला कर दिया, हो सकता है कल किसी और के साथ हो. मुझे लगता है ये भीड़ द्वारा आस्था का झंडा उठाकर हत्या करने का जो काम है, उस पर लगाम लगना ज़रूरी है.’
पूरा मामला
सोलापुर का रहने वाला मोहसिन शेख की 2 जून 2014 को पुणे में कथित तौर पर हिंदू राष्ट्र सेना के कार्यकर्ताओं द्वारा हत्या कर दी गई थी. शाम की नमाज़ से घर लौट रहे मोहसिन पर भीड़ ने हमला कर बुरी तरह पिटाई की और जब पुलिस ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया, डॉक्टरों से उन्हें मृत घोषित कर दिया था.
दरअसल, फेसबुक पर किसी ने शिवाजी महाराज और शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे की आपत्तिजनक तस्वीर डाल दी थी. उस घटना के बाद पुणे में हिंदू राष्ट्र सेना ने विरोध जताते हुए पूरे शहर में तनाव की स्थिति पैदा कर दी थी.
पुलिस ने उस वक़्त हिंदू राष्ट्र सेना के 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था और उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था. मामले के मुख्य आरोपी धनंजय देसाई भी पुलिस की हिरासत में हैं.
मोहसिन हत्याकांड में कुल 21 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिसमें से 14 लोगों को ज़मानत भी मिल चुकी है. उस समय के गृह मंत्री आरआर पाटिल ने कहा था कि मोहसिन बेक़सूर था और दंगे में भीड़ द्वारा मार दिया गया.