सीआईसी ने लवासा की असहमतियों को सार्वजनिक न करने के चुनाव आयोग के फैसले को बरकार रखा

चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने लोकसभा चुनाव के दौरान पांच मौकों पर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह को चुनाव आयोग द्वारा दी गई क्लीन चिट का विरोध किया था.

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अशोक लवासा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने लोकसभा चुनाव के दौरान पांच मौकों पर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह को चुनाव आयोग द्वारा दी गई क्लीन चिट का विरोध किया था.

New Delhi: Chief Election Commissioner Sunil Arora along with Election Commissioner Ashok Lavasa (L) addresses a press conference to announce the poll schedule for the forthcoming Delhi Assembly elections, in New Delhi, Monday, Jan. 6, 2020. (PTI Photo/Subhav Shukla)  (PTI1_6_2020_000082B)
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने चुनाव आयोग के उस फैसले को बरकार रखा है जिसमें उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दी गई क्लीन चिट पर चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की असहमतियों की प्रति सार्वजनिक करने से मना कर दिया था.

अशोक लवासा ने लोकसभा चुनाव के दौरान पांच मौकों पर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर नरेंद्र मोदी और मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह को चुनाव आयोग द्वारा दी गई क्लीन चिट का विरोध किया था.

हालांकि लवासा के इन विरोधों को आयोग के फैसलों में शामिल नहीं किया गया, जिसे लेकर उन्होंने मांग उठाई की उनकी आपत्तियों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए.

लेकिन आयोग ने इस मामले में मौजूदा व्यवस्था को ही बरकरार रखते हुए कहा कि असहमति और अल्पमत के फैसले को आयोग के फैसले में शामिल कर सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.

हालांकि चुनाव आयोग ने कहा कि निर्वाचन नियमों के तहत इन मामलों में सहमति और असहमति के विचारों को फाइलों (रिकॉर्ड) में दर्ज किया जाएगा.

बाद में लवासा की इन आपत्तियों या विरोधों की सत्यापित प्रति प्राप्त करने के लिए डॉ. जसदीप सिंह ने 24 जून 2019 को सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट, 2005 के तहत आवेदन दायर किया.

लेकिन आयोग ने ये कहते हुए जानकारी सार्वजनिक करने से मना कर दिया कि इससे किसी व्यक्ति का जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, इसलिए ये सूचना आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(जी) के तहत नहीं दी जा सकती है.

धारा 8(1)(जी) के तहत तहत वैसी सूचना का खुलासा करने से छूट हासिल है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है.

चुनाव आयोग के इस रवैये असंतुष्ट होकर ने सिंह नौ अगस्त 2019 को पहली अपील दायर की, लेकिन प्रथम अपीलीय अधिकारी ने आयोग के उस फैसले को बरकरार रखा. अंतत: जसदीपक सिंह ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का दरवाजा खटखटाया, लेकिन यहां से भी उन्हें निराशा हाथ लगी है.

इस मामले को लेकर चुनाव आयोग ने सीआईसी से कहा कि मांगी गई सूचना में अयोग के स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्राप्त इनपुट्स शामिल हैं. अगर इसका खुलासा किया जाता है तो इसकी वजह से उन अधिकारियों की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो जाएगा.

आयोग ने कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी और उसमें शामिल इनपुट्स कानून लागू करने में सहयोग करने के लिए हैं जो कि गोपनीय हैं.’

चुनाव आयोग ने मुख्य सूचना आयुक्त बिमल जुल्का के सामने अपनी दलील देते हुए कहा, ‘किसी भी स्थिति में, न तो अपीलकर्ता और न ही जनता के प्रति कोई पूर्वाग्रह है, क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा प्राप्त इनपुट पर आधारित सभी अंतिम निर्णय सार्वजनिक पटल पर रखे जाते हैं.’

हालांकि चुनाव आयोग द्वारा दी गई दलीलों और सूचना सार्वजनिक न करने के फैसले में कुछ विरोधाभास हैं. आयोग ने सीआईसी के सामने साल 2011 के एक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया है जो कि एक छात्र को सीबीएसई बोर्ड एग्जान की उत्तर पुस्तिका की जांच करने की इजाजत देने से जुड़ा हुआ है.

इसमें कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी छात्र को उसकी उत्तर-पुस्तिका को जांचने की इजाजत या इसकी सत्यापित प्रति दी जाती है तो इसमें से उस हिस्से को छिपाया जाना चाहिए या उस हिस्से का खुलासा नहीं किया जा सकता जहां पर परीक्षकों, को-ऑर्डिनेटर इत्यादि के हस्ताक्षर हैं. इस जानकारी का खुलासा करने से धारा 8(1)(जी) के तहत छूट प्राप्त है.

अगर सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाया जाता है तो भी आयोग द्वारा लवासा के विरोधों की प्रति सार्वजनिक न करने का फैसला सही नहीं प्रतीत होता है. कोर्ट के इस फैसले के आधार पर अशोक लवासा के विरोधों में जिन जगहों पर स्थानीय अधिकारियों इत्यादि के नाम हैं उसे छिपाकर बाकी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती थी.

आरटीआई एक्ट की धारा 10 भी यही कहती है. इसके मुताबिक अगर किसी फाइल या सूचना का कोई हिस्सा छूट प्राप्त धाराओं की श्रेणी में आता है तो उतने हिस्से को हटाकर या उस हिस्से को ‘काला करके’ बाकी की सारी जानकारी आवेदक को दी जानी चाहिए.

हालांकि इन सब के बावजूद सीआईसी ने निर्णय लिया कि इसमें और हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है और चुनाव आयोग का फैसला मान्य होगा.