केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी कर कहा था कि मकान मालिक लॉकडाउन के दौरान एक महीने तक छात्रों, कामगारों और प्रवासी मजदूरों से किराया न मांगें.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर उन मकान मालिकों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है जो लॉकडाउन के दौरान सरकार के आदेश के विपरीत छात्रों और कामगारों पर किराया देने का दबाव बना रहे हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को एक आदेश जारी कर कहा था कि मकान मालिक लॉकडाउन के दौरान एक महीने तक छात्रों, कामगारों और प्रवासी मजदूरों से किराया न मांगें. मंत्रालय ने एक बयान में चेतावनी दी थी कि जो मकान मालिक इस दौरान मकान खाली करने का दबाव बनाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
आपदा प्रबंधन कानून के तहत जारी आदेश में कहा गया था कि नियोक्ता (एम्प्लॉयर) अपने कर्मचारियों को देय तिथियों में बिना किसी कटौती के वेतन का भुगतान करेंगे.
अधिवक्ता पवन प्रकाश पाठक और अन्य द्वारा दायर याचिका में गृह मंत्रालय के 29 मार्च के आदेश के क्रियान्वयन का आग्रह किया गया है जिसमें कहा गया है कि कोई भी मकान मालिक कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान एक महीने तक छात्रों और मजदूरों से किराया नहीं मांगेगा और उल्लंघन करने वालों को दंड दिया जाएगा.
जनहित याचिका में कहा गया है कि गृह मंत्रालय के आदेश के बावजूद अनेक मकान मालिक छात्रों और मजदूरों से पूरा किराया देने को कह रहे हैं और ऐसा न करने पर मकान से निकालने की धमकी दे रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि शहरों में कई छात्र निजी पीजी में रहते हैं और भोजन के लिए वे पीजी मालिकों द्वारा दिए गए भोजन पर निर्भर रहते हैं, जिसका भुगतान वे किराए के साथ ही करते हैं. हालांकि लॉकडाउन के दौरान पीजी मालिकों द्वारा भोजन मुहैया न कराए जाने के बावजूद छात्रों से भोजन समेत पूरा किराया मांगा जा रहा है.
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत छात्रों और मजदूरों के जीने के मौलिक अधिकार के कियान्वयन पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मकान मालिकों द्वारा किराया देने के लिए दबाव डालने की इन कोशिशों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)