खुले में शौच कर रहीं महिलाओं की फोटो लेने का विरोध करने पर पीट पीटकर मार दिए गए ज़फ़र हुसैन के गांव का हाल.
बगवासा, राजस्थान. राज्य के सरकारी मुलाजिमों ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नेता ज़फ़र हुसैन की पिटाई की. उनका क़ुसूर यह था कि उन्होंने सरकारी मुलाजिमों द्वारा खुले में शौच कर रही महिलाओं की तस्वीरें उतारने पर आपत्ति की थी. इस घटना के बाद ज़फ़र की मौत हो गई.
ज़फ़र की मृत्यु चाहे स्वाभाविक कारणों से हुई, जैसा कि सरकार का दावा है या फिर उनकी पीट-पीट कर हत्या की गई, जैसा कि उनके पड़ोसी और परिवार के सदस्य दावा करते हैं, 16 जून की इस घटना के बारे में एक तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता: जिन औरतों के लिए ज़फ़र ने आवाज़ उठाई, उनके और बगवासा काची बस्ती की ज़्यादातर औरतों के पास खुले में शौच करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
तीन साल पहले बेहद शोर-शराबा हुआ, मगर अपेक्षा से कम अनुदान के साथ शुरू हुए मोदी सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से प्रतापगढ़ जिले के सबसे ग़रीब इलाक़ों में से एक इस क्षेत्र के लोगों के जीवन में शायद ही कोई बदलाव आया है.
3000 के क़रीब रिहाइशों वाली बगवासा काची बस्ती उदयपुर डिवीज़न के तहत आनेवाले ज़िले की सबसे पुरानी बस्तियों में से एक है. 2013 में बनाया गया कलेक्टरेट इस बस्ती से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर है. यहां के निवासियों का दावा है कि स्थानीय अधिकारी उन्हें इस बस्ती से हटाकर इस क्षेत्र में एक आलीशान आवासीय कॉलोनी बनाना चाहते हैं.
प्रतापगढ़ में रहने वाले ऑटोचालक भंवर ने बताया कि यह सही है कि ‘स्थानीय अधिकारी इस बस्ती को हटाना चाह रहे हैं. मुझे नहीं पता, ये ग़रीब लोग कब तक इस कोशिश का विरोध कर पाएंगे.’
नगरपरिषद कर्मचारियों द्वारा खुले में शौच कर रही औरतों की तस्वीरें उतारने का आरोप लगाने वालों में शामिल यास्मीन कहती हैं, ‘ज़फ़र चाचाजी की हत्या एक साज़िश है…लीज (पट्टा) नहीं होने और शौचालय का इंतज़ाम न होने के कारण अधिकारी हमारे घरों को गिराने की लगातार धमकियां देते रहते हैं. इसके बावजूद चाचाजी ने नगर परिषद को एक अर्जी लिखी थी जिसमें घरों में शौचालय न होने के कारण खुले में शौच करने को मजबूर औरतों को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने का विरोध किया गया था. उन्होंने घरों में शौचालय बनवाने के लिए पैसों की भी गुज़ारिश की थी.’
हुसैन की 39 वर्षीय पत्नी राशिदा ने बताया, ‘हम लोगों ने 2007 में ही इन घरों का पट्टा लेने के लिए ज़रूरी सारे काग़ज़ात जमा करा दिए थे, मगर परिषद ने आज तक इस बस्ती में किसी को भी पट्टा नहीं दिया है.’
हुसैन के पड़ोसी अजब ख़ान ने कहा, ‘जब हम पट्टा देने की मांग करते हैं, तब वे कई तरह के बहाने बनाते हैं. मुझे कहा गया कि आपका जनधन खाता इसके लिए इस्तेमाल में नहीं लाया जा सकता और मुझे दूसरे बैंक में दूसरा खाता खोलना होगा.’
हुसैन पर हमले से पहले का घटनाक्रम
हुसैन की पिटाई की घटना की चश्मदीद शकीला ने बताया, सुबह के करीब 6:30 बजे वो और तीन और औरतें- सुमित्रा, यास्मीन और शाहिदा, शौच के लिए बस्ती के पीछे गईं, जहां वे सब अक्सर जाया करती थीं. ‘वहां उसने देखा कि उनसे कुछ मीटर की दूरी पर एक कार और बाइक आकर रुक गई है.’ उसके मुताबिक कमिश्नर अशोक जैन चार और लोगों- कमल, रितेश, विकास और मनीष- के साथ कार से उतरे और बाइक पर सवार दो लोगों- सन्नी और तरुण को चारों औरतों की तस्वीर लेने का आदेश दिया.
शकीला ने बताया, ‘जब हमने देखा कि वे हमारी तस्वीरें ले रहे हैं, तब हमने चिल्लाना शुरू किया, आवाज़ सुनकर ज़फ़र चाचा तुरंत भागे हुए आए और अधिकारियों को तस्वीरें लेने से मना किया. इससे पहले कि हम बीच-बचाव कर पाते, कहा-सुनी ने हिंसक मारपीट का रूप ले लिया.’
द वायर से बात करते हुए उस समय घटनास्थल पर अपनी मां के साथ मौजूद हुसैन की 14 वर्षीय बेटी सबरा ने आरोप लगाया कि जैन ने अपने अपने आदमियों से कहा, ‘ये रोज़-रोज़ की परेशानी है, इसको देख लो आज.’ वह आगे कहती है कि जैन के ऐसा कहने के बाद ही परिषद में सफ़ाईकर्मी के तौर पर काम करने वाले कमल ने कथित तौर पर ‘-उनके- चेहरे पर एक पत्थर दे मारा और उनके चेहरे से ख़ून निकलने लगा.’
उस वारदात को याद करते हुए सबरा कहती हैं, ‘मनीष और विकास ने तब उनके पेट पर मारना शुरू कर दिया और उन्हें सड़क पर पटक दिया. उन्होंने हमें अब्बा को बचाने के लिए बीच-बचाव भी नहीं करने दिया और कहा कि तेरे बाप को जला डालेंगे, तेरी मां का थोबड़ा तोड़ देंगे, तुझे उठा ले जाएंगे.’
इस मारपीट के दौरान वहां मौजूद हुसैन के पड़ोसी राजू ने बताया कि जब अधिकारियों ने हमें आते हुए देखा, तो वे भाग खड़े हुए. ज़फर की मौत मौक़ा-ए-वारदात पर ही हो गई. उन्हें ऑटोरिक्शे पर ज़िला अस्पताल ले जाने से पहले ही वे दम तोड़ चुके थे.
विरोधाभासी कहानियां
द वायर से बात करते हुए कमिश्नर जैन, जिनका नाम हुसैन परिवार द्वारा दायर एफआईआर में शामिल हैं, ने औरतों की अश्लील तस्वीरें लेने से इनकार किया. ‘हम लोग उस दिन सुबह के अपने सामान्य फॉलोअप पर थे, जो कि हम स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों को खुले में शौच करने से रोकने और शौचालय का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए करते हैं. हम बस्ती में औरतों की अश्लील तस्वीरें नहीं ले रहे थे. ऐसा करना हमारे संस्कार में नहीं है. मैं अपने लोगों को हमेशा दूर से तस्वीरें लेने के लिए कहता हूं.’
जैन कहते हैं कि वे और उनके कर्मचारी ‘शांतिपूर्वक अपना काम कर रहे थे, जब ज़फर आकर हमें गालियां देने लगा. मैं उसे किनारे ले गया और उसे शांत होने और अपनी आपत्ति मुझे बताने के लिए कहा. उसकी पत्नी भी वहीं खड़ी थी. कहा-सुनी समाप्त होने के बाद, वह भीतर चला गया और हम भी वहां से चले गए. वहां कोई मारपीट नहीं हुई थी. बाद में लौटते हुए हमने चाय भी पी थी.’
हुसैन पर हमले और उसकी हत्या के आरोप में जैन सहित चार नगरपालिका अधिकारियों के ख़िलाफ़ एफआईआर के बावजूद अब तक किसी को गिरफ़्तार नहीं किया गया है.
‘प्रतापगढ़ के एसएचओ मंगीलाल बिश्नोई ने द वायर को बताया, ‘अभी हमलोग इस मामले की जांच ही कर रहे हैं, इसलिए हमने अब तक कोई गिरफ़्तारी नहीं की है.’
क्या मौत स्वाभाविक कारणों से हुई?
आगे की समीक्षा के लिए अभी उदयपुर भेजी गई पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुसैन की मौत का कारण ‘हृदय और श्वसन तंत्र का काम करना बंद होना’ बताया गया है- दूसरे शब्दों में कहें, तो मौत का कारण स्वाभाविक था. लेकिन इस रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज करते हुए राशिदा कहती हैं, ‘डॉक्टर बिके हुए हैं. वे सच को छिपा रहे हैं. यह साफ़-साफ़ हत्या है. उनकी मौत बुरी तरह से पीटे जाने के बाद हुई है.’
परिवार का दावा है कि स्थानीय मीडिया यह झूठा प्रचार कर रहा है कि हमने ज़िला कलेक्टर से 2 लाख रुपये का चेक लिया है. हुसैन के भाई ज़ुल्फिक़ार ने कहा, ‘हमने कभी भी किसी से कोई चेक नहीं लिया है. हम ज़फ़र की हत्या का इंसाफ़ चाहते हैं.’
दिखावे का स्वच्छ भारत अभियान
बगवासा बस्ती के 90 फ़ीसदी निवासी खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि शौचालय बनाने के लिए जिस राशि का वादा किया गया था, वह राशि (प्रति परिवार 4,000 रुपये) उनके खातों में नहीं पहुंची है.
वहां 3000 परिवारों पर केवल एक सामुदायिक शौचालय है, जिसमें औरतों और पुरुषों के लिए मिलाकर सिर्फ़ 10 कमोड हैं. लेकिन वे भी इस्तेमाल किए जाने लायक नहीं हैं. शौचालय के स्टोरेज टैंक में पानी नहीं है और कमोडों में फ्लश करने की कोई सुविधा नहीं है.
शाहिदा ने बताया, ‘हाल ही में स्वच्छ भारत अभियान के तहत कुछ करने के नाम पर शौचालय की पुताई की गई थी, लेकिन यह सिर्फ़ एक धोखा है. इस शौचालय में कोई फ्लश की सुविधा नहीं है, यही वजह है कि बस्ती का कोई भी व्यक्ति वहां नहीं जाता है.’
बस्ती में कई लोगों ने खुले में शौच करने से बचने के लिए कच्चा शौचालय बनाया है, लेकिन अधिकारी इस पर भी आपत्ति करते हैं.
बगवासा बस्ती में अपने पांच बच्चों के साथ रहने वाली विधवा शमीमा ने बताया, ‘मैंने शौचालय बनाने के लिए रक़म देने के लिए नगरपालिका को कई बार लिखा है, लेकिन वे न सिर्फ़ इसे अनसुना कर देते हैं, बल्कि मेरे घर को ढहाने की धमकी देते हैं.’
वास्तव में पानी का संकट इस क्षेत्र की एक बड़ी समस्या है. घरों में नलों की गैरमौजूदगी में यहां के लोग पास के पानीघर से पाइप के सहारे पानी का इंतज़ाम करते हैं.
इस बस्ती में पिछले 20 वर्षों से रहने वाले राजू ने कहा, ‘यहां पीने तक के लिए पानी नहीं है और वे हमें शौचालय का इस्तेमाल करने का उपदेश दे रहे हैं.’
(श्रुति जैन स्वतंत्र पत्रकार हैं.)
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.