लॉकडाउन: सरकारी मदद के अभाव में बढ़ीं सेक्स वर्कर्स की मुश्किलें

कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन ने हज़ारों कामगारों पर आजीविका का संकट ला दिया है, जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलनी मुश्किल हो गई है. इन कामगारों में सेक्स वर्कर्स भी शामिल हैं.

/
(प्रतीकात्मक फोटोः रॉयटर्स)

कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन ने हज़ारों कामगारों पर आजीविका का संकट ला दिया है, जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलनी मुश्किल हो गई है. इन कामगारों में सेक्स वर्कर्स भी शामिल हैं.

Twelve-year-old prostitute Mukti applies makeup before serving a customer inside her small room at a brothel in Faridpur, located in central Bangladesh February 22, 2012. REUTERS/Andrew Biraj
प्रतीकात्मक तस्वीर. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लगे लॉकडाउन का समाज के लगभग हर तबके पर असर पड़ा है. मज़दूरों, किसानों सहित छोटे कारोबारी आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं लेकिन समाज का एक ऐसा तबका भी है, जिसकी समस्याओं पर सरकार और समाज दोनों की ही नज़र नहीं है.

ये हैं देश के सेक्स वर्कर्स, जिनमें महिलाओं, पुरुषों से लेकर ट्रांसजेंडर तक शामिल हैं लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. सरकार की नीतियों और राहत कार्यक्रमों तक में इन्हें शामिल नहीं किया जाता.

लॉकडाउन से इन सेक्स वर्कर्स की जिंदगी ठहर गई है. लॉकडाउन के बीच इनके सामने आजीविका का संकट तो बना हुआ है, न इनके पास पैसा है, न संसाधन, न पर्याप्त राशन और न ही सरकारी मदद.

दिल्ली में बीते दस सालों से सेक्स वर्क कर रहीं मधु बताती हैं, ‘लॉकडाउन का फैसला सरकार का है तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वो समाज के हर वर्ग की जरूरतों का ख्याल रखे. हम समाज में सबसे निचले तबके के लोग हैं, सामान्य दिनों में एक दिन में जितने लोग आते थे, उनसे कमाई होती थी और फिर उन्हीं पैसों से घर में राशन और जरूरी सामान आता था. मेरे घर में दो बच्चे हैं, उनकी जरूरतें भी हैं. हमारे पास राशन कार्ड भी नहीं है, ऐसा नहीं है कि कभी बनवाने की कोशिश नहीं की लेकिन राशन कार्ड बनवाने के लिए जो कागज चाहिए, वो नही है.’

कभी नमक से, तो कभी एक समय खाना खाने को मजबूर

लॉकडाउन के बीच सेक्स वर्कर्स की एक बड़ी संख्या भुखमरी की तरफ बढ़ रही है. इनके पास खाने के लिए खाना और राशन खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है.

मधु कहती हैं, ‘कभी नमक रोटी, तो कभी नमक चावल खाकर दिन काट रहे हैं. कुछ दिन पहले छोटी बेटी की तबियत खराब हो गई थी, इतने पैसे भी नहीं है कि दवा करें. काम-धंधा सब बंद है, उम्मीद कर रही हूं कि जल्दी से सब ठीक हो जाए और काम दोबारा शुरू कर सके.’

एक अन्य सेक्स वर्कर पुष्पा बताती हैं, ‘क्या खा रहे हैं, मत पूछिए. ऐसे दिन भी हैं, जब सिर्फ एक समय खाना खाया जा रहा है. रसोई का राशन तो बहुत पहले खत्म हो चुका. एक संस्था है, एआईएनएसडब्ल्यू जिनसे बीच-बीच में राशन मिलता रहा है. सरकार को वक्त मिले तो कभी हमारे घरों की हालत देखकर जाए कि किस तरह हमारे बच्चे भूख में जी रहे हैं.’

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं. वहीं, ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग दो करोड़ सेक्स वर्कर हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस धंधे से जुड़ी हैं.

दिल्ली के जीबी रोड जैसे रेड लाइट एरिया में सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं की संकरी कोठरियों में बेशक साफ-सफाई और पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था नहीं है, लेकिन उनके लिए काम करने वाली संस्थाएं वहां राशन और जरूरी सामान उपलब्ध करा रही हैं.

पर लेकिन उन सेक्स वर्कर्स का क्या जो किसी अनजान जगह या सड़कों से अपना काम करती हैं? उनका रिकॉर्ड एनजीओ के पास भी नहीं होता है इसलिए उन तक राशन या अन्य किसी तरह की मदद पहुंचाना और मुश्किल हो जाता है.

घरों-सड़कों से सेक्स वर्क करने वालों पर दोहरी मार

देश में सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (एआईएनएसडब्ल्यू) का कहना है कि इस वर्ग के प्रति सरकार का उदासीन रवैया सबसे ज्यादा चिंताजनक है.

एआईएनएसडब्ल्यू की अध्यक्ष कुसुम द वायर  से कहती हैं, ‘वेश्यालयों या रेड लाइट एरिया में काम करने वाली सेक्स वर्कर्स की तुलना में घरों से काम करने वाली सेक्स वर्कर्स की दशा ज्यादा खराब है क्योंकि उन तक पहुंच बनाना बहुत मुश्किल है. सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाएं उन तक नहीं पहुंच पा रही है, जिसकी वजह है कि उनकी अधिक पुख्ता जानकारी नहीं है कि वे कहां से काम कर रही हैं. उन तक एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा राशन भी नहीं पहुंच पा रहा है.’

वे आगे बताती हैं, ‘हमारे संगठन से देशभर से लगभग दो लाख सेक्स वर्कर जुड़ी हैं, जिनमें महिलाएं, पुरुष और ट्रांसजेंडर सभी हैं. सरकार को इन वर्कर्स के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सरकार की नीतियों में आपको सेक्स वर्कर्स कहीं नजर नहीं आएंगे. आंदोलन या विरोध कर मजदूरों और किसानों को आर्थिक और अन्य तरह की मदद मिल भी जाती है लेकिन यहां तो शून्य है.’

रेशमा बिहार से बीस साल पहले दिल्ली आकर बसी थीं और यहां सेक्स वर्क करती हैं. वे कुसुम की बात से इत्तेफाक रखती हैं.

वे कहती हैं, ‘मजदूरों, किसानों और सफाईकर्मियों को विरोध करने के बाद सरकार से थोड़ी बहुत मदद मिल जाती है लेकिन हमारी सुध कोई नहीं लेता. समाज और सरकार की नजरों में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन हम भी अपना घर-परिवार चला रहे हैं, हम भी रोजाना कमाकर खाने वालों में से है लेकिन हमारी गिनती कहीं नहीं होती.’

राशन कार्ड न होने से बढ़ी मुसीबतें

मधु स्ट्रीट बेस्ड सेक्स वर्कर हैं, वे कहती हैं, ‘हमारे पास राशन कार्ड नहीं है, तो राशन नहीं मिलता. लॉकडाउन के बीच एक बार भी सरकार को हमारा ख्याल नहीं आया. हमें अलग-अलग एनजीओ के जरिए राशन और जरूरी सामान मिल रहा है. आर्थिक मदद भी मिली है लेकिन सरकार की तरफ से कुछ नहीं.’

मधु कहती हैं, ‘पति सालों पहले हमें छोड़कर चले गए. दो-दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी बीए फाइनल ईयर में है, इसी पेशे के जरिए कमा-कमाकर बेटियों को पढ़ा रही हूं. इतने सालों में सरकार की इतनी नीतियां बनी लेकिन हम एक पैसा तक इन योजनाओं से कभी नहीं मिला. इसका मतलब है कि सरकार हमारे बारे में सोचती तक नहीं है, उनके लिए हम जिस्म बेचने वाली धंधेवालियां हैं!’

वे आगे जोड़ती हैं, ‘दो बेटियां हैं, इनकी शादी भी करनी है, उसके लिए भी बचत कर रही हूं लेकिन अब काम ही चौपट है. खाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. क्या गांरटी है कि लॉकडाउन के बाद जिंदगी दोबारा पटरी पर आ जाएगी.’

वैश्विक स्तर पर सेक्स वर्कर्स के अधिकारों और उनके स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली संस्था ग्लोबल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्क प्रोजेक्ट्स (एनएसडब्ल्यूपी) का कहना है कि कोरोना वायरस को लेकर दुनिया के कई देशों की तरह भारत में भी लॉकडाउन है, जिससे सेक्स वर्कर्स की कमाई का जरिया खत्म हो गया है, वह आजीविका को लेकर जूझ रहे हैं लेकिन सरकारें कुछ नहीं कर रहीं.

इस संस्था का कहना है कि बांग्लादेश ने अपने देश में सेक्स वर्कर्स के लिए भोजन की व्यवस्था की है लेकिन भारत में ऐसा कुछ देखने को नही मिला.

परिवार से छिपकर सेक्स वर्क कर रहीं महिलाएं तनाव में

रमा (बदला हुआ नाम) पूर्वी दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती हैं, उनके तीन बच्चे हैं, जो स्कूल जाते हैं. परिवार में बच्चों के अलावा मां है. इन सभी को रमा के काम के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

फिलहाल रमा मानसिक तौर पर बेहद परेशान हैं. वह कहती हैं, ‘मेरे पति की पांच साल पहले मौत हो गई थी. उसके बाद से मैंने घर की जिम्मेदारी संभाल ली है. मां दमे से पीड़ित हैं. बच्चे स्कूल जाते हैं. इनके लिए पैसा चाहिए था और यही वजह थी कि मैं इस काम से जुड़ गई.’

वह आगे कहती हैं, ‘मैंने मां और बच्चों को बताया है कि मैं किसी फैक्ट्री में काम करती हूं लेकिन लॉकडाउन की वजह से सब बंद है. रसोई बिल्कुल खाली है, मां को लगता है कि सैलरी तो मिल रही होगी लेकिन मेरी स्थिति अब ऐसी है कि मैं किसी को कुछ बता भी नहीं सकती.’

रमा के मन में यह डर ये भी है कि कहीं घर में किसी को उनके काम के बारे में पता न चल जाए. वे कहती हैं, ‘आमतौर पर लोगों की सेक्स वर्कर्स को आम इंसान के तौर पर देखने की आदत नहीं है. लोगों के मन में हमारे लिए संशय और घृणा हमेशा से रहा है. हर सेक्स वर्कर बेफ्रिक होकर यह काम नहीं कर रही है. यही कारण है कि एक बड़ी संख्या उन सेक्स वर्कर्स की भी है, जो अपने बच्चों और परिवार की खातिर समाज की नजरों से छिपकर यह काम करती हैं.’

New Delhi: Geeta colony road wears a deserted look during a nationwide lockdown imposed in the wake of coronavirus pandemic, in New Delhi, Friday, April 10, 2020. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI10-04-2020_000076B)
(फोटो: पीटीआई)

सेक्स वर्कर्स तक राशन पहुंचाना भी है चुनौती

पुष्पा यूं तो एक सेक्स वर्कर हैं, लेकिन  समाज सेवा के कार्यों से जुड़ी रहती हैं. वे ,बताती हैं, ‘मैं प्रेम नगर में रहती हूं, एक एनजीओ के जरिये यहां आसपास के सेक्स वर्कर्स के लिए राशन का सामान मेरे घर आता है और हम यहीं से राशन बांटते हैं. स्थिति यह है कि जिस दिन मेरे घर राशन इकट्ठा होता है, 100 से 150 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है, जिसमें सेक्स वर्कर्स होती हैं. कुछ दिन पहले की बात है कि पुलिस ने आकर मुझे बताया कि मैं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रही हूं और इस तरह राशन बांटकर माहौल खराब नहीं कर सकती.’

वह कहती हैं, ‘ऐसी कई सेक्स वर्कर हैं, जिनके घरों के बारे में हमें जानकारी नहीं है, ऐसे में उन तक पहुंच बनाना बहुत मुश्किल है. संपर्कों के जरिये सभी सेक्स वर्कर्स को यहां बुलाकर उन्हें राशन दिया जाता है लेकिन पुलिस के रवैये को देखते हुए राशन लेने के लिए कम ही लोग पहुंच रहे हैं. हरेक सेक्स वर्कर तक पहुंचकर उन्हें राशन मुहैया कराना नामुमकिन है और सेक्स वर्कर्स जब एक निश्चित स्थान पर राशन लेने पहुंचते हैं तो उन पर पुलिस सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने का आरोप लगा रही है.’

यह पूछने पर कि पुलिस की दखलअंदाजी के बाद अब जरूरतमंदों को राशन कैसे दिया जा रहा है? इस पर वह बताती हैं, ‘हफ्ते में दो दिन राशन बांटा जा रहा है, जिसमें अब हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. पुलिस के भी समझाने के बाद अब एक बार में सीमित संख्या में लोग पहुंच रहे हैं जिन्हें राशन नहीं मिल पाता उन्हें अगले दिन दे दिया जाता है.’

पुष्पा कहती हैं, ‘इसके साथ ही ऐसी कई सेक्स वर्कर्स हैं, जो एचआईवी और मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रही हैं और जिन्हें निरंतर उपचार और दवाइयों की जरूरत है. लॉकडाउन की स्थिति में इन्हें न दवाइयां मिल पा रही हैं और न ही इनका इलाज हो पा रहा है. कुछ ऐसी ही स्थिति ट्रांसजेंडर समुदाय की है बल्कि महिलाओं और पुरूषों की तुलना में ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याएं अधिक जटिल हैं. ट्रांसजेंडर सेक्स वर्कर्स के समक्ष विकल्प बहुत कम है.’

‘लॉकडाउन के बाद भी तुरंत राहत नहीं मिलने वाली’

लॉकडाउन के बाद की संभावनाओं पर एआईएनएसडब्ल्यू की अध्यक्ष कुसुम कहती हैं, ‘इन सेक्स वर्कर्स के लिए मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होगी. लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी कुछ समय तक लोगों में कोरोना का डर रहेगा, जो इनके काम को प्रभावित करेगा. इन सेक्स वर्कर के पास आने में लोग हिचकेंगे, तो कुछ हिचकिचाहट इनके मन में भी होगी कि कहीं ग्राहक के रूप में इनके पास आ रहा शख्स बीमारी लेकर तो नहीं आ रहा.’

वह कहती हैं, ‘लॉकडाउन और बढ़ने और इसके खत्म होने के बाद मुसीबतें और बढ़ेगी. चिंता उन महिलाओं की अधिक हैं जो किराए के मकानों में रहती हैं, जिन पर घर-परिवार की जिम्मेदारी है, जिनके बच्चे पढ़ रहे हैं. वे कहां से किराया देंगी? कैसे बच्चों का लालन-पालन करेंगी? कई सेक्स वर्कर्स कर्ज के पैसों से काम चला रही हैं, जो उन्होंने ब्याज पर लिए हैं.’

सेक्स वर्क को रोजगार का दर्जा मिले तो शायद सरकारी मदद मिले

कुसुम कहती हैं, ‘हमारे देश में एक निश्चित दायरे में ही सेक्स वर्क को मान्यता प्राप्त है लेकिन इसे अभी तक रोजगार का दर्जा नहीं दिया गया है. आप किसी कोठे पर जा सकते हैं, किसी रेड लाइट से किसी सेक्स वर्कर को किसी कमरे या होटल में लेकर जा सकते हैं लेकिन जब इसे रोजगार के रूप में देखने की बात आती है तो हम सभी मुंह बनाने लगते हैं.’

कुसुम के अनुसार यही वजह है कि सेक्स वर्कर्स की आर्थिक हालत बहुत दयनीय है. वे बताती हैं कि उनकी संस्था ने इस महामारी के बीच 16 राज्यों के करीब 150 सेक्स वर्कर के खातों में तकरीबन 3,000 रुपये की धनराशि जमा कराई है.

वह कहती हैं, ‘अकेली सेक्स वर्कर तो फिर भी मैनेज कर सकती है लेकिन घर-परिवार चलाने वाली सेक्स वर्कर के लिए दिक्कत है इसलिए हमारी मुहिम सेक्स वर्क को रोजगार का दर्जा दिलवाना है. ऐसी उम्मीद है कि रोजगार का दर्जा मिलने से सेक्स वर्कर्स को सरकार से आर्थिक मदद मिलनी शुरू हो जाएगी और सरकारी योजनाओं में उन्हें शामिल किया जाएगा.’