एनजीटी ने कंपनी को खनन के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करने, रसायन और कोयले का पानी खेतों में डालकर किसानों की फसल बर्बाद करने, ग्रीन बेल्ट का निर्माण न करने, खुले ट्रक में कोयला ले जाने, पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाने और प्रदूषण के पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया न कराने का दोषी पाया है.
नई दिल्ली: अपने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में गैरकानूनी खनन, पर्यावरण को प्रदूषित करने और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालने को लेकर जिंदल पावर लिमिटेड (जेपीएल) पर 154.8 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.
इसके अलावा एनजीटी ने सरकारी स्वामित्व वाली कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी साउथ इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) पर भी 6.69 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. दोनों कंपनियों को कुल मिलाकर 160.78 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति एक महीने के भीतर भरने का आदेश दिया गया है.
जिंदल पावर लिमिटेड के चेयरमैन उद्योगपति और पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल हैं. एनजीटी ने इसे 2006 से 2015 के बीच रायगढ़ के गारे पाल्मा IV/2 और गारे पाल्मा IV/3 खदान में अवैध खनन और कई पर्यावरण नियमों के गंभीर उल्लंघन का दोषी पाया है.
खदान के पास के एक गांव के डुकालू राम ने साल 2014 में कंपनी के खिलाफ एनजीटी में याचिका दायर की थी और मांग किया था कि कंपनी तमाम उल्लंघनों को लेकर क्षतिपूर्ति करे. पिछले करीब छह सालों में एनजीटी ने इसे लेकर कई सारे आदेश दिए हैं.
अधिकरण ने जेपीएल को खनन के लिए वन भूमि का इस्तेमाल करने, रसायन और कोयले का पानी खेतों में डालकर किसानों की फसल बर्बाद करने, ग्रीन बेल्ट का निर्माण न करने, खुले ट्रक में कोयला ले जाने, पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाने, पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के बिना ओपन-कास्ट खदान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना, सड़कों पर पानी का छिड़काव न करना, भूजल का सूखना और प्रदूषण के पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया न कराने का दोषी पाया है.
जेपीएल को 23 मई 1998 को इस खदान में खनन की मंजूरी मिली थी. बिजली बनाने के लिए कंपनी को कुल 964.65 हेक्टेयर में खनन की मंजूरी मिली थी, जिसमें से 48.20 हेक्टेयर वन भूमि है.
2006 से 2015 के बीच इस खदान का संचालन जिंदल कोल लिमिटेड द्वारा किया गया था और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद कोल इंडिया लिमिटेड ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था.
खनन कंपनी पर आरोपों को लेकर एनजीटी ने साल 2016 में पर्यावरण मंत्रालय को आदेश जारी कर एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था कि कंपनी ने पर्यावरण मंजूरी का उल्लंघन किया है या नहीं. इस पर मंत्रालय ने 30 जनवरी 2017 को सौंपे अपने रिपोर्ट में कहा कि कंपनी ने पर्यावरण मंजूरी की शर्तों और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन किया गया है.
इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने 18 अप्रैल 2017 को पर्यावरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों की एक समिति बनाई, जिसे सभी पक्षों की सुनवाई कर एक रिपोर्ट सौंपनी थी. इस समिति ने 18 दिसंबर 2017 को सौंपे अपने रिपोर्ट में काफी चिंताजनक खुलासा किया कि किस तरह से कोयला कंपनी द्वारा अवैध खनन से विभिन्न वर्गों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है.
समिति ने मामले में पूर्व रिपोर्टों को सही पाया और जेपीएल को अवैध खनन, गांव की संपत्ति पर कब्जा, खदान में ब्लास्टिंग के कारण घरों को क्षति, आग की लपटें निकलते रहना, खनन से हवा की गुणवत्ता पर प्रभाव, स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव इत्यादि का दोषी पाया.
इसके बाद एक ओवरसाइट समिति बनाई गई जिसने 14 जून 2019 को सौंपे अपने रिपोर्ट में कहा कि इन उल्लंघनों को लेकर जेपीएल और एसईसीएल को 160.78 करोड़ रुपये का हर्जाना भरना पड़ेगा. समिति ने खनन कंपनी द्वारा किए गए विभिन्न गंभीर उल्लंघनों की वजह से पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत आंकलन कर ये निष्कर्ष निकाला है.
एनजीटी ने इसे लेकर जिंदल पावर लिमिटेड द्वारा उठाई गईं सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया है. अधिकरण ने आदेश दिया कि जेपीएल और एसईसीएल एक महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को हर्जाने का भुगतान करें. इसके अलावा छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड (सीइसीबी) को कहा गया है कि वे एक्शन प्लान बनाएं कि किस तरह इस राशि को खर्च किया जाएगा.
इसके लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के स्थानीय ऑफिस, सीपीसीबी, रायपुर डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, भोपाल के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट और धनबाद के इंडियन स्कूल ऑफ माइंस को मिलाकर एक समिति बनाने को कहा गया है.
इसके अलावा एसईसीएल को कहा गया है वे खनन प्रभावित गांव के लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं का उचित इंतजाम करें.