70 वर्षीय दलित अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े ने जेल में कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा बताते हुए जमानत अर्जी दी थी. एनआईए ने स्वीकार किया कि उनका एक सहायक सब इंस्पेक्टर कोविड-19 से संक्रमित पाया गया है. इसके बाद भी अदालत ने उनकी अंतरिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी.
मुंबईः भीमा-कोरेगांव हिंसा और माओवादियों से संबंध होने के आरोपी दलित अधिकार कार्यकर्ता और लेखक आनंद तेलतुम्बड़े की अंतरिम जमानत अर्जी को शनिवार को विशेष एनआईए अदालत ने खारिज कर दिया.
विशेष एनआईए अदालत ने तेलतुम्बड़े की हिरासत 8 मई तक बढ़ा दी है. शनिवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की हिरासत की अवधि समाप्त हो रही थी.
तेलतुम्बड़े को जांच एजेंसी ने विशेष अदालत के न्यायाधीश एटी वानखेड़े के सामने पेश किया. इसके बाद अदालत ने आरोपी तेलतुम्बड़े को न्यायिक हिरासत में सेंट्रल मुंबई के आर्थर रोड जेल भेजने का आदेश दिया.
तेलतुम्बड़े ने जमानत के लिए अर्जी दी थी. इसमें कहा गया कि वह श्वसन संबंधी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं और जेल में उनके संक्रमित होने का खतरा है, लेकिन अदालत ने तेलतुम्बड़े की अर्जी पर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया.
हालांकि, अदालत ने जेल प्रशासन से चिकित्सकीय उपचार को लेकर रिपोर्ट मांगी है. इस पर अदालत में जल्द सुनवाई हो सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार, तेलतुम्बड़े की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि मुंबई में एनआईए में तैनात एक सहायक सब इंस्पेक्टर कोविड-19 से संक्रमित पाया गया है.
हालांकि, एनआईए द्वारा यह स्वीकार किए जाने के बाद भी अदालत ने उनकी अंतरिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी.
हाल ही में जनवरी 2018 के एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए तेलतुम्बड़े को पिछले 11 दिनों से एनआईए की हिरासत में रखा गया था, जहां उनसे पूछताछ की जा रही थी.
एनआईए ने दावा किया है कि तेलतुम्बड़े संक्रमित अधिकारी के संपर्क में नहीं आए हैं और अधिकारी की स्वास्थ्य स्थिति पता होने के बाद तेलतुम्बडे का परीक्षण कराया गया जो निगेटिव आया है.
तेलतुम्बड़े के वकील ने द वायर को बताया, एनआईए ने अपने अधिकारी के कोविड-19 पॉजिटीव होने की बात केवल तब स्वीकार की जब हमने इसे अदालत के सामने उठाया.
तेलतुम्बडे के परिवार और उनके वकीलों दोनों ने उनके स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि वह 70 साल के हैं और उन्हें पहले से ही कई स्वास्थ्य संबंधित कई मुद्दे हैं, जिनमें श्वसन संबंधी समस्याएं भी शामिल हैं.
तेलतुम्बड़े के वकील सत्यनारानन अय्यर ने कहा, ‘प्रोटोकॉल के अनुसार एनआईए को तुरंत उन्हें क्वारंटाइन करना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय वे उन्हें अपनी कार में अदालत में ले गए और यहां तक कि उन्हें जेल में ले जाने का फैसला किया, जहां पहले से ही भीड़भाड़ है.’
23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि वह जल्द ही राज्य की 60 जेलों से 11,000 कैदियों को रिहा करेगी. लेकिन एक महीने बाद, गृह विभाग ने केवल 4,000 से अधिक कैदियों को रिहा किया है.
एल्गार परिषद मामले में मुकदमा दर्ज किए जाने के करीब दो साल तक तेलतुम्बड़े ने अपनी गिरफ्तारी से राहत के लिए निचली अदालत और उच्च अदालतों में याचिका दायर की थी.
हालांकि, जब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें और एक अन्य कार्यकर्ता गौतम नवलखा को कोई राहत देने से इनकार कर दिया, तो दोनों को एनआईए कार्यालय के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा.
बता दें कि, माओवादियों से संबंध के आरोप में तेलतुम्बड़े, नवलखा और नौ अन्य नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामले दर्ज किये गये हैं.
इन कार्यकर्ताओं को शुरूआत में कोरेगांव-भीमा में भड़की हिंसा के बाद पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था.
पुलिस के अनुसार इन लोगों ने 31 दिसम्बर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद की बैठक में भड़काऊ भाषण और बयान दिये थे जिसके अगले दिन हिंसा भड़क गई थी.
पुलिस का दावा है कि ये कार्यकर्ता प्रतिबंधित माओवादी समूहों के सक्रिय सदस्य से जुड़े हुए हैं. इसके बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया था. हालांकि अभी तक इन दावों को लेकर उचित साक्ष्य पेश नहीं किए जा सके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)