दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान ने उपराज्यपाल अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर कहा कि क्वारंटाइन सेंटर में भोजन की अनियमित आपूर्ति की वजह से दोनों लोगों की मौत हुई है.
नई दिल्लीः दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने उत्तर पश्चिम दिल्ली के सुल्तानपुरी में कोरोना क्वारंटाइन सेंटर में दो लोगों की मौत का मुद्दा उठाया है.
आयोग का आरोप है कि दोनों लोग मधुमेह से पीड़ित थे और समय पर उन्हें भोजन, दवाइयां और जरूरी सामान मुहैया नहीं कराने की वजह से उनकी मौत हुई.
आयोग ने उपराज्यपाल अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से इस मामले की जांच करने का निर्देश देने को कहा है.
आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान और आयोग के सदस्य करतार सिंह कोच्चर ने बैजल और केजरीवाल को लिखे संयुक्त पत्र में कहा कि क्वारंटाइन सेंटर में अनुचित परिस्थितियां दोनों लोगों की मौत की जिम्मेदार थी.
पत्र में कहा गया कि इन सेंटर्स का संचालन और सुपरवाइज कर रहे अधिकारियों और डॉक्टरों के असंवेदनशील और असहयोगकारी रवैये तथा खाने की अनियमित आपूर्ति की वजह से दोनों लोगों की मौत हुई.
आयोग का कहना है कि मृतकों में से एक हाजी रिजवान की लगभग दस दिन पहले मौत हुई थी जबकि 60 साल के मोहम्मद मुस्तफा की मौत 22 अप्रैल को हुई.
आयोग का कहना है कि दोनों तमिलनाडु से थे. ऐसा पता चला है कि दोनों उस समूह का हिस्सा थे, जिन्होंने तबलीगी जमात द्वारा निजामुद्दीन में आयोजित मरकज में शिरकत की थी.
आयोग ने कहा कि तबलीगी जमात के सदस्य और कोरोनो संक्रमित संदिग्धों को सुल्तानपुरी, नरेला और द्वारका में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर्स में रखा गया है.
पत्र में कहा गया, ‘क्वारंटाइन सेंटर्स में रखे गए तबलीगी जमात के लोगों में तमिलनाडु, केरल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोग जबकि मलेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका और किर्गिस्तान के विदेशी नागरिक भी हैं. इनमें स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे बुजुर्ग भी हैं, जिन्हें विशेष देखभाल और चिकित्सा सुविधा की जरूरत है.’
पत्र में कहा गया कि इनमें से अधिकतर लोगों ने क्वारंटाइन में 25 दिन पूरे कर लिए हैं, जो क्वारंटाइन के लिए आवश्यक 14 दिनों से अधिक है.
आयोग ने कहा कि इनमें से एक बड़ी संख्या कोरोना जांच में निगेटिव पाई गई है. लेकिन इन्हें क्वारंटाइन सेंटर्स में कुछ कोरोना पॉजिटिव लोगों के साथ रखा गया है.
आयोग ने पत्र में कहा कि सुल्तानपुरी सेंटर में तबलीगी जमात के 21 कोरोना पॉजिटिव मामलों में से सिर्फ चार से पांच को कथित तौर पर अस्पताल ले जाया गया.
आयोग ने कहा है कि उन्हें इन सेंटर्स से क्वारंटाइन किए गए लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार किए जाने की शिकायतें मिली थीं.
आयोग ने कहा, ‘इन्हें ब्रेकफास्ट सुबह 11 बजे दिया जाता है और डिनर रात 10 से 11 के बीच दिया जाता है. खाना बमुश्किल ही खाने योग्य होता है, जिस वजह से लोगों को पेट संबंधी दिक्कतें हो रही हैं और उल्टियां आ रही हैं. चिकित्सा सुविधाएं और दवाइयां मुहैया नहीं कराई जातीं जबकि कुछ मधुमेह और दिल संबंधी बीमारियों के मरीज हैं. डॉक्टर बमुश्किल ही मरीजों को देखने आते हैं.’
आयोग ने पत्र में यह भी लिखा कि क्वारंटाइन किए गए लोगों को आवश्यक और जीवनरक्षक दवाइयां नहीं दी जा रहीं जिससे मधुमेह के दो मरीजों की सुल्तानपुरी के क्वारंटाइन कैंप में मौत हो गई.
पत्र में कहा गया, ‘यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेडिकल और प्रशासनिक स्टाफ की लापरवाही की वजह से ऐसा होने दिया गया जबकि ये लोग सरकारी देखरेख में थे इसलिए डिटेंशन के दौरान इन्हें सुरक्षित रखने और इनका ध्यान रखने की सरकार की जिम्मेदारी थी.’
आय़ोग ने 23 अप्रैल को लिखे पत्र में कहा कि तबलीगी जमात के सदस्यों ने क्वारंटाइन के तहत 25 दिन पूरे कर लिए हैं जबकि इसके लिए 14 दिन ही अनिवार्य थे. इसलिए मांग की जाती है कि जो भी लोग कोरोना जांच में निगेटिव पाए गए हैं उन्हें जल्द इन कैंप से बाहर निकाला जाए. जो भी लोग दिल्ली से बाहर जाने में सक्षम हैं या दिल्ली में कहीं भी रहना चाहते हैं, उन्हें लॉकडाउन समाप्त होने तक उनके खुद के खर्चे पर राजधानी में ही किन्हीं अपार्टमेंट और होटलों में रहने की सुविधा दी जानी चाहिए.
आयोग ने मांग की कि इन सभी शिविरों में मेडिकल केयर, दवाइयां और समय से भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए और क्षेत्र के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट जैसे वरिष्ठ अधिकारी को इन कमियों के लिए निजी तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
रमजान के दौरान मुस्लिमों के रोज़े के संदर्भ में भोजन मुहैया कराने का समय भी बदला जाना चाहिए और रोजे के समय का सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए.