कौन हैं जो देवता होने की योग्यता रखते हैं, जिनके लिए पत्रकार नारद बन जाएं: रवीश कुमार

मुसलमान को मारने के लिए आपको तैयार नहीं किया जा रहा है. एक दिन किसी को भी मारने के लिए आपका इस्तेमाल किया जाएगा.

///
रवीश कुमार. (फोटो: द वायर)

मुसलमान को मारने के लिए आपको तैयार नहीं किया जा रहा है. एक दिन किसी को भी मारने के लिए आपका इस्तेमाल किया जाएगा. झारखंड में बच्चा चोरी की अफ़वाह में नईम और हलीम के साथ उत्तम और गंगेश को भी मारा गया.

रवीश कुमार. (फोटो: द वायर)
रवीश कुमार. (फोटो: द वायर)

स्पीकर साहिबा का बयान छपा है. वो कह रही हैं कि नारद की तरह हो जाओ. अप्रिय सत्य मत बोलो. सरकार से बोलो तो ज़रा प्रेम से बोलो. ऐसा छपा है. मैं उनका बयान सुनना चाहता हूं. अगर आप हमें नारद बनाना चाहते हैं तो हमें इंद्र के दरबार के देवताओं की शक़्लें भी तो दिखा दीजिए. कौन हैं इनमें से जो देवता होने की योग्यता रखते हैं जिनके लिए हम नारद बन जाएं और अप्रिय सत्य न कहें. और वो भी सत्य वो तय कर रही हैं कि क्या प्रिय सत्य होगा, क्या अप्रिय सत्य होगा.

कर्नाटक के स्पीकर ने जो किया वो तो सामने है. एक तरह से यह जो धमकाने का प्रोजेक्ट है, यह अब सामने आ रहा है. और ज़्यादा आएगा. कर्नाटक के स्पीकर जो किया है (कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष केबी कोलीवाड ने विधायकों के ख़िलाफ़ लेख लिखने के मामले में जाने-माने पत्रकार रवि बेलागेरे समेत कन्नड़ पत्रिका के दो पत्रकारों को एक साल जेल की सज़ा सुनाई).

आप देखिए कि एक बीजेपी का विधायक है, एक कांग्रेस का विधायक है. दोनों एक दूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछाल रहे हैं. अख़बार के ख़िलाफ़ ट्रोलिंग हुई और फेसबुक ने अख़बार का अकाउंट बंद कर दिया. वार्ता भारती वहां का 15—20 साल का पुराना प्रतिष्ठित अख़बार है. फेसबुक उसका अकाउंट सस्पेंड कर देता है, जबकि ये जो गाली देने वालों की जमात है, जो ट्रोल हैं, उसे सस्पेंड नहीं करता है. वार्ता भारती के संपादक ने बाक़ायदा फेसबुक को चिट्ठी लिखी है.

ये सब घटनाएं इतनी हो रही हैं कि हम आपस में ही ट्रैक नहीं रख पा रहे हैं कि किसके साथ क्या हो रहा है? और अब ये आम हो गया है. गली से लेकर चौराहे तक एक भीड़ खड़ी है जो आपको शक्ल से पहचानती है. आपको प्रेस का काम करते देखेगी तो पहले आप पर शक करेगी, फिर आपकी पिटाई करेगी.

जो कारवां मैगजीन ने छापा है बसित मलिक का विवरण, वो पढ़ा भी नहीं जाता है. उसमें वकील का कैरेक्टर है. ये जो वकील का कैरेक्टर है, ये हर जगह क्राउड में है. मैं देख रहा हूं कि ये है. बेहतर होगा कि हम इसे समझने का प्रयास करें कि ये वकील का कैरेक्टर वहां क्या कर रहा है? यह एक तरह से उस भीड़ के लिए लीगल इम्पावरमेंट सेल है. तीन चार ऐसी घटनाएं हमने देखी हैं जहां वकील हैं.

पटियाला कोर्ट का तो आजतक कोई नतीजा ही नहीं आया कि वहां क्या हुआ. वकीलों की एक फ़ौज आगे करके इसे अंजाम दिया जा रहा है. यूपी में आईपीएस पिट गए और उनके आईपीएस को दो दिन लगा बोलने में.

जो डर का नेशनल प्रोजेक्ट है, वो पूरा हो गया है. हाइवे बनने से पहले, सबको नौकरी मिलने से पहले डर सबको दे दिया गया है. हर व्यक्ति के लिए डर एक रोज़गार है और हम तरह तरह से डर रहे हैं. घर से निकलते हैं तो सौ तरह की चेतावनी का ख़्याल रखना पड़ता है कि यहां देख लेना, वहां देख लेना.

जो गोदी मीडिया है, वही हिंदुस्तान में सुरक्षित है. आप गोद में बैठ जाइए, आपको कहीं कोई कुछ नहीं बोलेगा. भजन करते रहिए, तानपुरा ले लीजिए, नारायण नारायण करते रहिए टेलीविज़न पर बैठकर. ये हमारे स्पीकर हैं, जिनको लोकतंत्र के सबसे मज़बूत स्थिति में माना जाता है, उनके इस तरह के विचार हैं.

जो राजस्थान में हुआ असद अशरफ और अनुपम के साथ, जो पुलिस ने किया कि तुम्हें जूते मारूंगा, चाहे मैं सस्पेंड ही हो जाउं, उसकी हिम्मत इसीलिए बढ़ी हुई है क्योंकि उसे मालूम है कि इस डर के नेशनल प्रोजेक्ट की जो अथॉरिटी है, उसका पोलिटिकल मास्टर है. ये हवा में नहीं बना है.

जिस तरह से चैनलों की बात हो रही है, कुछ दिन में हम रिपब्लिक भूल जाएंगे और चैनल से ही इंडिया को पहचानने लगेंगे. यही हमारा इंडिया है. वो दिन ज़्यादा दूर नहीं है. हफ़्ते दस दिन में ही वो प्रोजेक्ट भी पूरा हो ही जाएगा. कुछ दिन में वो अपना उम्मीदवार भी खड़ा करेंगे और 80 प्रतिशत वोट से वो जीत भी जाएंगे.

मैं देख रहा है कि भारत एक भीड़तंत्र बन गया है और उस भीड़तंत्र में हमारे ही अपने हैं. हमारे ही रिश्तेदारों के बहुत से हिस्से उस भीड़तंत्र में हैं जो किसी को भी लाठी से मार रहे हैं, जो किसी को गाली से मार रहे हैं.

ट्रेन में हमारे मित्र अपनी मां के साथ जा रहे थे. वो पुराने ख़्याल की औरत हैं, बुरका पहनी थीं. अचानक भीड़ पूरे रास्ते ट्रेन में उनपर ताना कस रही थी. एक दो घंटे गुज़रते गुज़रते उन सबका आत्मविश्वास जा चुका था. आपको अगर सर्वे करना है तो आप देख लीजिए कि ट्रेन में यात्रा करने वाले लोग जो मुस्लिम हैं वे अपने साथ खाना क्या ले जाते हैं? उन्हें इस बात का डर हो गया है कि कोई चेक कर लेगा. इसलिए अच्छा कुछ यानी अंडा करी भी मत रखना.

तो इन्होंने डर का अपना प्रोजेक्ट पूरा कर दिया है, उसमें हम सबसे छोटी इकाई हैं और बहुत आसान इकाई हैं. अब ये न्यूज़रूम तक चला गया है. ये कैसे सुधरेगा, मुझे नहीं मालूम है. ये मार दिए जाने वाले, मार खाने वालों के लिए हम हेल्पलाइन बना सकते हैं. न्यूज़रूम में सब सहज हो गए हैं उस नारद सिंड्रोम से. जर्नलिज़्म के लिए सबसे बड़े आइकॉन नारद जी बन गए हैं. कब बन गए, हमें पता भी नहीं चला.

हमें ये देखना पड़ेगा कि हमारे बहुत सारे साथी जो आल्टरनेटिव जर्नलिज़म कर रहे हैं, जिनकी छोटी सी वेबसाइट है, चार लोग मिलकर चलाते हैं, अब उन सबकी बारी है. ये वो लोग हैं जिनके पास एक लाख, दो लाख हिट्स हैं, पांच लाख हिट्स हैं. फिर भी, जब तमाम जगहों पर आवाज़ें दबा दी जाती हैं तो ये रिपोर्ट कर देते हैं. कहीं से कोई शेयर हो जाता है, किसी के पास पहुंच जाता है. अब इनकी भी पिटाई होने वाली है, लोग इनको मारेंगे. और ये पूरी तरह से राजनीतिक तैयारी के साथ हो रहा है. हम किसी गफ़लत में न रहें.

उनके बहुत सारे जो लोकल एजेंट हैं, पोलिटिकल एजेंट हैं, ये वेंडर का काम करते हैं, व्हाट्सअप से फीडिंग का काम करते हैं, ये अब मारने का भी काम कर रहे हैं. क्योंकि इतने कम समय में कोई दस लड़के नहीं आ सकते थे लाठी लेकर मारने के लिए. बहुत ही कम समय लगा होगा किसी को वहां जमा करने में, क्योंकि उनकी मशीनरी तैयार है व्हाट्सअप के ज़रिये. तो अब आप फील्ड रिपोर्टिंग भी नहीं कर पाएंगे.

नोटबंंदी के दौरान मैंने ख़ुद ही देखा कि इतना मुश्किल हो गया कहीं जाना. आप एसपीजी तो लेकर नहीं जाएंगे न? जो कहीं नहीं जाते, उन्हें एसपीजी दे दी गई. जो कभी नहीं जाएंगे उनको आपने सिक्योरिटी दे रखी है. तो कहां जाएं और कितने कम समय में लोगों से बात करके आएं. इसके लिए उन्होंने अपनी तैयारी पूरी कर ली है. अब रास्ता हमें निकालना पड़ेगा कि इस डर का क्या किया जाए.

डर का ऐसा राष्ट्रीयकरण हमने कभी नहीं देखा कि जहां हर दूसरा आदमी फोन पर बात कर रहा हो, आप उससे कह दीजिए कि मेरा फोन रिकॉर्ड हो रहा है तो सामने वाला फोन काट देगा. वो बात करता है तो यही कहकर शुरू करता है कि आपका फोन रिकॉर्ड तो नहीं हो रहा है? तो कर लो भाई, मेरा फोन रिकॉर्ड करके राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित कर दो कि मैं दिन भर किस किस से क्या क्या बातें करता हूं. सबका कर दो अगर इसी से आपका कुछ हित सधता हो.

सिर्फ़ इतना कह देना कि ख़तरनाक है, काफ़ी नहीं है. मैं इस्तेमाल तो नहीं करना चाहता था, बहुत सारे लोग कहते थे, कोई हिटलर से तुलना करता था, कोई उससे तुलना करते थे, मुझे हिटलर तो नहीं दिखता था, लेकिन गोएबल्स आ गया है आपके पेशे में. वो है, वो दिख नहीं रहा है, उसने अपना काम शुरू कर दिया है.

उस गोएबल्स का ही काम है कि एक मामला सात साल पुराना है, उसको लेकर एक टेलीविज़न चैनल रात भर कार्यक्रम करता है. तीन साल से मैं तो ख़ुद परेशान हूं और ख़ुद कह रहा हूं कि टीवी मत देखो. बंद कर दो इस टेलीविज़न को देखना. लोगों को बताना पड़ेगा कि आप जो देख रहे हैं वह कूड़ा है.

आपको मुसलमान को मारने के लिए तैयार नहीं किया जा रहा है. एक दिन आपका इस्तेमाल किया जाएगा किसी को भी मारने के लिए. झारखंड में बच्चा चोरी गैंग की अफ़वाह फ़ैली तो उसमें उत्तम और गंगेश को भी मारा गया, नईम और हलीम के साथ. ग्रेटर नोएडा में कोई गाय लेकर जा रहा था भूप सिंह और जबर सिंह, उनको कहना पड़ा कि मैं मुसलमान नहीं हूं, मुझे मत मारो.

तो यह एक प्रोजेक्ट है कि इस भीड़ में हर आदमी को संभावित हत्यारे में बदल दो. भीड़ को मैनेज करना बड़ा आसान होता है. ये क्राउड कोई ओन नहीं करता लेकिन ये क्राउड एक गर्वमेंट ओन करती है हर जगह. इसकी अपनी एक सरकार है, इसको सपोर्ट करने वाले लोग हैं.

हम सिर्फ़ लोकतांत्रिक बहसों का गला घोंट देने के लिए नहीं लड़ रहे हैं, हमारे लिए अब ये मुश्किल हो गया है कि अब हम हमारे मोहल्ले में भी नहीं निकल पाएंगे. इसकी इन्होंने तैयारी कर दी है. कई बार आप सोचते होंगे कि जिसका चेहरा ज़्यादा पहचाना जाता है, उसे ज़्यादा ख़तरा होगा. पर बसित मलिक को कौन पहचानता है? जब तक वे मलिक से कन्फ़्यूज़ हो रहे थे, तब तक तो ठीक था, लेकिन जैसे ही वो उर्दू देखेंगे, कहेंगे ये तो पाकिस्तान की भाषा है. हम इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि उर्दू कहीं लिखा देखेंगे तो कहेंगे कि ये पाकिस्तानी है और उसको मारना शुरू कर देंगे.

बहुत चिंता की बात है कि बहुत से लोग नहीं आए हैं. हममें से बहुत से लोग इन घटनाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. वे भी पत्रकार हैं और हमें लगता है कि उनकी एक मौन सहमति है इस तरह की घटनाओं को लेकर. मैं ऐसे बहुत से पत्रकारों के बीच होता हूं, उनको बेचैन होते नहीं देखता हूं. ये मुझे बड़ा ख़तरनाक लगता है कि अब आपकी ये भी सहभागिता चली गई कि आपका कोई साथी पीट दिया गया और आपको उससे बेचैनी नहीं हो रही है.

तो अब ये प्रोजेक्ट पूरा हो गया है. हमें हर हफ़्ते का कैलेंडर निकाल लेना चाहिए. अभी तो हम निंदा की करने की मीटिंग कर रहे हैं, जल्दी ही हम श्रद्धांजलि की मीटिंग में मिलेंगे. शुक्रिया.

(पत्रकार बसित मलिक 9 जून को दिल्ली के सोनिया विहार में रिपोर्टिंग करने गए थे. वहां पर एक जगह को लेकर दो समुदायों में विवाद है. एक पक्ष उसे मस्जिद कह रहा है. मलिक का आरोप है कि जैसे ही लोगों को पता चला कि वे मुस्लिम हैं, भीड़ ने उनपर हमला कर दिया. इसके विरोध में प्रेस क्लब में रखी गई पत्रकारों की सभा में रवीश कुमार ने ये भाषण दिया.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq