विश्वभर में में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी का ज़िम्मा संभाल रहे अमेरिकी आयोग ने भारत को ‘खास चिंता वाले देशों’ की सूची में डालने की सिफ़ारिश करते हुए कहा है कि देश में धार्मिक आज़ादी की दशा में बड़ी गिरावट आई है. भारत ने आयोग की आलोचनाओं को पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण कहा है.
वाशिंगटन: दुनियाभर में धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने का जिम्मा संभाल रहे एक अमेरिकी आयोग ने मंगलवार को विदेश विभाग से भारत समेत 14 देशों को ‘खास चिंता वाले देशों’ (कंट्रीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न- सीपीसी) के रूप में नामित करने को कहा और आरोप लगाया कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं.
अमेरिका अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने मंगलवार को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि इसमें नौ ऐसे देश हैं जिन्हें दिसंबर, 2019 में सीपीसी नामित किया गया था, वे म्यांमार, चीन, एरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान हैं.
उनके अलावा उसमें पांच अन्य देश- भारत, नाईजीरिया, रूस, सीरिया और वियतनाम हैं.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट के 2020 के संस्करण में यूएससीआईआरएफ ने आरोप लगाया कि 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की दशा में बड़ी गिरावट आई एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गए.
संयुक्त राज्य आयोग की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर 2020 वार्षिक रिपोर्ट का खुलासा करते हुए द्विदलीय निकाय के अध्यक्ष ने कहा कि कुल मिलाकर धार्मिक स्वतंत्रता पर वैश्विक वातावरण में सुधार हुआ था, लेकिन पिछले साल भारत में तेजी से गिरावट देखी गई.
यूएससीआईआरएफ अध्यक्ष टोनी पर्किंस ने कहा, ‘हालांकि, अन्य देशों के हालात में गिरावट देखी गई है, खास तौर पर भारत – लेकिन कुल मिलाकर हमने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता में सुधार देखा है.’
This is the first time since 2004 that USCIRF recommends #India as a Country of Particular Concern #USCIRFAnnualReport2020
— USCIRF (@USCIRF) April 28, 2020
2004 के बाद से यह पहली बार है कि यूएससीआईआरएफ ने भारत को विशेष सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है.
आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत सरकार ने ‘पूरे भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हुए, विशेष रूप से मुसलमानों के लिए राष्ट्रीय स्तर की नीतियों का निर्माण करने के लिए अपने संसदीय बहुमत का इस्तेमाल किया.’
वार्षिक रिपोर्ट में दिसंबर 2019 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का उल्लेख किया गया है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों को फास्ट ट्रैक नागरिकता प्रदान करने वाला है.
इसमें कहा गया, ‘सरकारी अधिकारियों के बयानों के अनुसार, यह कानून सूचीबद्ध गैर-मुस्लिम धार्मिक समुदायों के लिए देशव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से सुरक्षा प्रदान करने के लिए है जिसके बाद लोगों को हिरासत में लिया गया, वापस भेजा जाएगा और संभावित रूप से उन्हें राष्ट्रविहिन बना देगा.’
इसके अलावा आयोग ने उल्लेख किया कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में सरकार समर्थित तत्वों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राष्ट्रीय और विभिन्न राज्य सरकारों ने भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्पीड़न और हिंसा के राष्ट्रव्यापी अभियानों को जारी रखने की अनुमति दी और उनके खिलाफ हिंसा करने और नफरत फैलाने की छूट दी. इन घटनाओं के आधार पर इस रिपोर्ट में यूएससीआईआरएफ भारत को सीपीसी में नामित करने को कहता है.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 1998 के अनुरूप उन सरकारों को ‘विशेष चिंता वाले देशों’ के रूप में नामित किया जाता है जो धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर और भयानक उल्लंघनों में या तो शामिल रहे हैं या जिन्होंने इन्हें सहन किया है.
अधिनियम के अनुसार, आयोग की सिफारिशों पर तब ध्यान दिया जाएगा, जब अमेरिकी विदेश मंत्री 1 मई को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर एक वार्षिक रिपोर्ट कांग्रेस को प्रेषित करेंगे.
Read the full #USCIRFAnnualReport2020 here: https://t.co/2StRIpQk2i pic.twitter.com/vbSAqiDdov
— USCIRF (@USCIRF) April 28, 2020
विशेष सूची में भारत को नामित करने के अलावा, आयोग ने सरकारी एजेंसियों और व्यक्तियों पर लक्षित प्रतिबंध लगाने, उनकी संपत्ति को फ्रीज करने और संयुक्त राज्य में उनके प्रवेश पर रोक लगाने का भी सुझाव दिया.
वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ‘बदला’ लेने का प्रण किया था.
लिंचिंग के मुद्दे पर रिपोर्ट में कहा गया कि कड़े कानूनों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वर्तमान कानून पर्याप्त था. वहीं, प्रवासियों को ‘दीमक’ कहने वाले बयान को लेकर शाह का जिक्र भी रिपोर्ट में किया गया है.
हालांकि आयोग के नौ सदस्यों में से दो ने भारत को सीपीसी में रखने की आयोग की सिफारिश पर अपनी असहमति रखी है. तीसरे सदस्य ने भी भारत पर अपनी निजी राय रखी है.
आयोग के सदस्य गैरी एल. बाउर ने अपनी असहमित में लिखा कि वह अपने साथियों से अपनी असहमति रखते हैं. तेंजिन दोरजी ने भी लिखा है कि भारत चीन और उत्तर कोरिया की तरह निरंकुश शासन की श्रेणी में नहीं आता है.
भारत पहले ही कह चुका है कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर यह निकाय अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है और इस विषय पर उसका कोई अधिकार ही नहीं बनता है.
भारत ने यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट खारिज की
भारत ने अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता पर एक आयोग की आलोचनाओं को खारिज करते हुए मंगलवार को कहा कि अल्पसंख्यकों की दशा पर उसकी टिप्पणियां पूर्वाग्रह से ग्रसित और पक्षपातपूर्ण हैं.
यूएससीआईआरएफ ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी सालाना रिपोर्ट के 2020 के संस्करण में आरोप लगाया है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में चीजें नीचे की ओर जा रही हैं और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘हम यूएससीआईआरएफ की सालाना रिपोर्ट में भारत को लेकर की गयी टिप्पणियों को खारिज करते हैं. भारत के खिलाफ उसके ये पूर्वाग्रह वाले और पक्षपातपूर्ण बयान नये नहीं हैं, लेकिन इस मौके पर उसकी गलतबयानी नये स्तर पर पहुंच गयी है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)