नया संसद भवन केंद्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना का एक हिस्सा है, जिसमें 922 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मौजूदा संरचना से सटे भूखंड पर एक नया परिसर बनाना शामिल है.
नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय की विशेष मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने मौजूदा संसद भवन के विस्तार और नवीकरण को मंजूरी देने की सिफारिश की है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, नया संसद भवन सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना का एक हिस्सा है, जिसमें 922 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर मौजूदा संरचना से सटे भूखंड पर एक नया परिसर बनाना शामिल है.
भवन और नवीकरण में शामिल कुल क्षेत्र 21.25 एकड़ है जिसमें 1,09,940 वर्ग मीटर का निर्मित क्षेत्र है और इसमें 233 पेड़ों के प्रत्यारोपण की आवश्यकता होगी.
कोरोना वायरस (कोविड -19) महामारी के कारण आर्थिक मंदी के दौरान संसद भवन की संरचना को पुनर्निर्मित करने पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के लिए शहरी योजनाकारों और नागरिक समाज समूहों द्वारा विवादास्पद परियोजना की व्यापक रूप से आलोचना की गई है.
उन्होंने सेंट्रल विस्टा परियोजना को कई भागों में बांटने पर भी सवाल उठाए हैं और संदेह जताया है कि ऐसा केवल पर्यावरण मंजूरी हासिल करने के लिए किया गया.
दरअसल, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ( सीपीडब्ल्यूडी) ने संसद भवन को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) दस्तावेजों में एकल परियोजना के रूप में दिखाया है. इसमें यह भी कहा गया है कि इससे जुड़ी कोई भी परियोजना नहीं है. हालांकि, इसे सेंट्रल विस्टा परियोजना से संबंधित फैसलों की समीक्षा करने वाले शहरी विकास विशेषज्ञों के समूह लोकपथ ने तथ्यात्मक रूप से गलत करार दिया है.
22 से 24 अप्रैल को हुई ईएसी बैठक और मंत्रालय के परिवेश वेबसाइट पर प्रकाशित उसके मिनट्स में कहा गया है कि संसद भवन को कुछ शर्तों के साथ छूट दी गई है.
इसमें से एक शर्त सुप्रीम कोर्ट में लंबित विशेष अवकाश याचिका (एसएलपी) पर आने वाला फैसला होगा.
सुप्रीम कोर्ट दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. याचिका में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए निर्धारित लैंड यूज को चुनौती दी गई है. इसमें आरोप लगाया है कि इस काम के लिए लुटियंस जोन की 86 एकड़ भूमि इस्तेमाल होने वाली है और इसके चलते लोगों के खुले में घूमने का क्षेत्र और हरियाली खत्म हो जाएगी.
याचिका में ये दलील दी गई है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा 19 दिसंबर 2019 को जारी किए गए पब्लिक नोटिस को अमान्य करार देने के लिए सरकार द्वारा 20 मार्च 2020 को जारी किया गया नोटिफिरेशन कानून और न्यायिक प्रोटोकॉल के नियम का दमन है क्योंकि 2019 वाले नोटिस को चुनौती दी गई है और खुद सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई कर रहा है.
केंद्र सरकार के 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर डीडीए ने दिसंबर 2019 में एक पब्लिक नोटिस जारी किया था जिसमें लोगों से लैंड यूज के संबंध में आपत्तियां या सलाह देने के लिए कहा गया था.
20 मार्च 2020 को केंद्र ने लुटियंस दिल्ली के केंद्र में 86 एकड़ भूमि का लैंड यूज घोषित कर दिया जिसमें संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट समेत केंद्र सरकार की कई प्रमुख इमारतें शामिल हैं.
ईएसी मिनट्स में लोकपथ और अन्य नागरिक समाज समूहों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दिया गया है.
नागरिक समाज समूहों ने भारतीय संसद को सेंट्रल विस्टा का हिस्सा बताते हुए कहा था कि आवेदन मौजूदा संसद के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को पूरी तरह से अनदेखा करता है और इसके ‘निर्माण और नवीनीकरण’ को किसी अन्य नियमित निर्माण परियोजना के रूप में मानता है.
इसके जवाब में ईएसी कहता है कि परियोजना के प्रस्तावकों को संसद भवन की विरासत के बारे में पता है. ईसीए कहता है कि संसद भवन की विरासत को सहेजने के साथ-साथ भविष्य में उसमें अधिक लोगों के बैठने की व्यवस्था करना और आवश्यक इंफ्रास्ट्र्क्चर उपलब्ध कराना भी आवश्यक है.
बता दें कि, बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने लुटियंस दिल्ली में नया संसद और केंद्र के अन्य सरकारी ऑफिसों के निर्माण के लिए लाए गए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने से मना कर दिया था.