मध्य प्रदेश में हुए बहुचर्चित व्यापमं घोटाला मामले की सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एमबीबीएस के 634 छात्र-छात्राओं की प्रवेश रद्द कर दिया है.
इन छात्र-छात्राओं ने एमबीबीएस कोर्स के 2008-2012 बैच में एडमिशन लिया था. मुख्य न्यायधीश जस्टिस जेएस खेहर ने छात्र-छात्राओं की ओर से दायर की गईं सभी याचिकाएं रद्द कर दीं.
इससे पहले व्यापमं परिक्षाओं में सामूहिक नकल और गड़बड़ियों का खुलासा होने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एमबीबीएस के 2008-2012 बैच का एडमिशन रद्द कर दिया था. इसके ख़िलाफ इन छात्र-छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
राज्य का व्यापमं घोटाला शिक्षा के क्षेत्र में अब तक हुआ सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है. मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के तहत प्री-मेडिकल टेस्ट, प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट और कई सरकारी नौकरियों की परीक्षाएं होती हैं.
इन परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों की भनक लगी थी. जुलाई 2013 में इस घोटाले का खुलासा डॉ. जगदीश सागर की मुंबई में गिरफ्तारी के साथ हुआ. सागर को इंदौर क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. छानबीन में सागर के इंदौर स्थित घर से करोड़ों रुपये का कैश बरामद हुआ था.
एमबीबीएस की डिग्री वाले सागर ने पूछताछ में बताया कि उसने तीन साल के दौरान 100-150 छात्र-छात्राओं को गलत तरीके से मेडिकल कोर्स में एडमिशन कराया था. परीक्षाओं में ऐसे लोगों को पास किया गया जो इसमें शामिल होने के भी योग्य नहीं थे. पहले मामले की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में एसआईटी कर रही थी. बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गई.
जांच के दौरान होती रहीं मौतें
इस घोटाले का पता लगने के बाद मामले से जुड़े लोगों की मौत का सिलसिला भी शुरू हुआ. कुछ स्थानीय अखबारों के अनुसार, मामले में हुई मौतों का सरकारी आंकड़ा 27 है. इनमें से 14 मौतें संदिग्ध हालातों या बीमारी के कारण हुईं. वहीं 10 लोगों की जान संदिग्ध परिस्थितियों में सड़क हादसों के दौरान गई जबकि तीन लोगों ने ख़ुदकुशी कर ली थी. हालांकि इसके उलट कांग्रेस का आरोप है कि मामले में अब तक 40 लोगों की मौत हो चुकी हैं.
मामले से जुड़े दो फैसले
यह घोटाला दो तरह के फैसलों की वजह से काफी चर्चा में रहा है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने छात्र-छात्राओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिलचस्प फैसला दिया था.
जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने अपने फैसले में कहा था कि जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए सभी 634 छात्र-छात्राओं को स्नातक पूरा होने के बाद भारतीय सेना में पांच साल तक शामिल कर उन्हें बिना वेतन सिर्फ गुजारा भत्ता देकर काम कराया जाए. पांच साल पूरा होने के बाद उन्हें डिग्री दे दी जाए.
वहीं दूसरी तरह हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए जस्टिस अभय मनोहर सप्रे ने इन छात्र-छात्राओं के एडमिशन रद्द कर दिए थे. इसी के बाद मामले को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था.