केंद्र ने कोरोना के इलाज में गंगाजल पर शोध करने का किया था प्रस्ताव, आईसीएमआर ने नकारा

आईसीएमआर ने कहा कि फिलहाल उपलब्ध आंकड़े इतने पुख्ता नहीं हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए से गंगाजल पर क्लिनिकल ट्रायल किया जा सके.

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Varanasi: A woman wearing a protective mask sits near an near deserted bank of River Ganga in the wake of coronavirus pandemic, in Varanasi, Friday, March 20, 2020. (PTI Photo)(PTI20-03-2020_000035B)

आईसीएमआर ने कहा कि फिलहाल उपलब्ध आंकड़े इतने पुख्ता नहीं हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए से गंगाजल पर क्लिनिकल ट्रायल किया जा सके.

Varanasi: A woman wearing a protective mask sits near an near deserted bank of River Ganga in the wake of coronavirus pandemic, in Varanasi, Friday, March 20, 2020. (PTI Photo)(PTI20-03-2020_000035B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने तय किया है कि वह कोविड-19 के मरीजों के इलाज में गंगाजल के उपयोग पर क्लिनिकल अनुसंधान (ट्रायल) करने के जल शक्ति मंत्रालय के प्रस्ताव पर आगे नहीं बढ़ेगा. परिषद का कहना है कि इसके लिए उसे और वैज्ञानिक आंकड़ों की जरुरत है.

आईसीएमआर में अनुसंधान प्रस्तावों का मूल्यांकन करने वाली समिति के प्रमुख डॉक्टर वाईके गुप्ता ने कहा कि फिलहाल उपलब्ध आंकड़े इतने पुख्ता नहीं हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज के लिए विभिन्न स्रोतों और उद्गमों से गंगाजल पर क्लिनिकल अनुसंधान किया जाए.

अधिकारियों ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय के तहत आने वाले ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ (एनएमसीजी) को गंगा नदी पर काम करने वाले विभिन्न लोगों और गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) से कई प्रस्ताव मिले हैं जिनमें कोविड-19 मरीजों के इलाज में गंगाजल के उपयोग पर क्लिनिकल अनुसंधान करने का अनुरोध किया गया है. उन्होंने बताया कि इन प्रस्तावों को आईसीएमआर को भेज दिया गया.

एम्स के पूर्व डीन गुप्ता ने बताया, ‘वर्तमान में इन प्रस्तावों पर काम करने के लिए वैज्ञानिक आंकड़ों/तथ्यों, विचार और मजबूत अवधारणा की जरुरत है. उन्हें (मंत्रालय) को यह सूचित कर दिया गया है.’

गंगा मिशन के अधिकारियों ने बताया कि इन प्रस्तावों पर राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) के वैज्ञानिकों के साथ चर्चा की गई थी. गौरतलब है कि नीरी ने ‘गंगा नदी के विशेष गुणों को समझने के लिए उसके जल की गुणवत्ता और गाद’ का अध्ययन किया था.

नीरी के अध्ययन के मुताबिक, गंगाजल में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं (बैक्टीरिया) के मुकाबले जीवाणुभोजी विषाणुओं (वायरस) की संख्या कहीं ज्यादा है.

गंगा मिशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘हमें प्रस्ताव जिस रूप में मिले थे, हमने उन्हें (आईसीएमआर) को भेज दिया.’ गंगा मिशन को मिले प्रस्तावों में से एक में दावा किया गया है कि गंगाजल में ‘निंजा वायरस’ होता है, जो जीवाणुभोजी (बैक्टीरियोफेज) है.

एक अन्य प्रस्ताव में दावा किया गया है कि शुद्ध गंगाजल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, इससे वायरस से लड़ने में मदद मिलेगी.

विस्तृत जानकारी के साथ आए तीसरे प्रस्ताव में अनुरोध किया गया है कि गंगाजल के विषाणु-रोधी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुणो पर अध्ययन किया जाना चाहिए.

गंगा मिशन के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें अपने प्रस्तावों पर अभी तक आईसीएमआर से कोई आधिकारिक उत्तर नहीं मिला है.

एनजीओ अतुल्य गंगा द्वारा भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि गंगाजल में मौजूद निंजा वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को खाकर खत्म कर देता है. तीन अप्रैल को एनजीओ ने सरकार से मांग की कि वे इस पर शोध करें कि क्या गंगाजल से कोरोना का इलाज हो सकता है. इस पत्र को जल शक्ति मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय दोनों जगह भेजा गया था.

इस पर नमामि गंगे योजना को लागू कर रही जल मंत्रालय की संस्था एनएमसीजी ने 30 अप्रैल को आईसीएमआर को पत्र लिखा और उनसे क्लीनिकल ट्रायल की मांग की. हालांकि अब आईसीएमआर ने इस पर आगे बढ़ने से मना कर दिया है.

एनजीओ के पत्र के अनुसार आईआईटी रूड़की, आईआईटी कानपुर और लखनऊ स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएआईआर)-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च सहित विभिन्न संस्थानों ने गंगाजल में कई प्रकार के बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति की पुष्टि की है, विशेष रूप से नदी की ऊपरी धारा में जिसे भागीरथी के रूप में जाना जाता है.

पत्र भेजे जाने के बाद पीएमओ ने जल शक्ति मंत्रालय को मामले को देखने के लिए कहा. फिर नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने क्लीनिकल ट्रायल के लिए आईसीएमआर से अनुरोध किया.

आईसीएमआर को ये पत्र भेजने से पहले इस मुद्दे पर सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई या नीरी) और एनजीओ के वैज्ञानिकों के बीच 24 अप्रैल को चर्चा भी हुई थी. बातचीत के दौरान सीएसआईआर-नीरी के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया कि आईसीएमआर को गंगा के पानी में मौजूद तत्वों की पहचान करने का काम सौंपा जाना चाहिए, जो कोविड-19 से लड़ने में मददगार हो सकते हैं.

मालूम हो कि पूर्व में कई ऐसे शोध हुए हैं जो ये बताते हैं कि गंगा के पानी में कुछ विशेष तरह की गुणवत्ता है, खासकर नदी की ऊपरी धारा में. अतुल्य गंगा एनजीओ से कई जाने-माने पर्यावरणविद और गंगा विशेषज्ञ- अनिल गौतम, एके गुप्ता, भरत झुनझुनवाला और नरेंद्र मेहरोत्रा- जैसे लोग जुड़े हुए हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)