शहरों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, ज़रूरी है कि हम वायरस के साथ जीना सीख लें: स्वास्थ्य सचिव

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल का कहना है कि यह ज़रूरी है कि हम इस कोरोना वायरस के साथ जीना सीख लें और इसकी वजह से हमारे व्यवहार में आ रहे बदलावों की आदत डाल लें.

(फोटोः पीटीआई)

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल का कहना है कि यह ज़रूरी है कि हम इस कोरोना वायरस के साथ जीना सीख लें और इसकी वजह से हमारे व्यवहार में आ रहे बदलावों की आदत डाल लें.

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(फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः कोरोना वायरस के मद्देनजर लॉकडाउन के बीच देश के अधिकतर बड़े शहर रेड जोन में हैं. ऐसे में शहरी इलाकों में फील्ड लेवल पर स्वास्थ्यकर्मियों की कमी बड़ी बाधा के रूप में उभरकर सामने आ रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने शुक्रवार को दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, यह जरूरी है कि हम इस वायरस के साथ जीना सीख लें और इसकी वजह से हमारे व्यवहार में आ रहे बदलावों की आदत डाल लें.

देश में बीते 24 घंटों में कोरोना के 3,320 मामले सामने आए हैं और 95 मौतें हुई हैं. अब तक देश में कोरोना से कुल 1,981 मौतें हुई हैं जबकि संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 59,662 हो गई है.

अग्रवाल ने कहा, ‘देश में कोरोना के 37,916 सक्रिय मामलों में से 3.2 फीसदी को ऑक्सीजन की जरूरत है. 4.7 फीसदी आईसीयू में हैं और 1.1 फीसदी को वेंटिलेटर्स की जरूरत है.’

यहां तक कि मुंबई के बृह्नमुंबई नगरपालिक (बीएमसी) के आयुक्त प्रवीण परदेशी को शुक्रवार को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मुंबई में कोरोना के अधिकतर मामलों से पता चलता है कि देशभर के बड़े शहरों में अधिक बड़ी समस्याएं हैं.

कैबिनेट ने 2013 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) को मंजूरी दी थी, लेकिन एक साल बाद यह प्राथमिकता में नहीं था. हालांकि जमीनी स्तर पर आशा कार्यकर्ता और सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) जैसे समर्पित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है. इसके अलावा एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) को ग्रामीण इलाकों तक पहुंच बनाने के लिए तैयार किया गया था.

एक अधिकारी ने कहा, ‘सिर्फ मुंबई में ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में भी वास्तविक समस्या सर्विलांस इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है. गांवों में हम आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम का इस्तेमाल कर रहे हैं. देश में फील्ड लेवल कार्यकर्ता पर्याप्त संख्या में हैं, उन्हें बस इकट्ठा करने की जरूरत है लेकिन वे शहरों में कहां हैं? नगर निकायों को सर्विलांस के काम में नहीं लगाया गया.’

उन्होंने कहा कि नगर निकायों की संरचना कोरोना वायरस के लिए जरूरी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और सक्रिय मामलों की तलाशी के लिए उपयुक्त मॉडल नहीं है.’

मुंबई में अब तक कोरोना से 462 से मौत हो गई है जबकि संक्रमितों की संख्या 12,142 है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव अग्रवाल ने कहा, ‘महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े है. हम कोरोना रोकथाम प्रयासों को मजबूत करने के लिए राज्य सरकारों के साथ समन्वय कर रहे हैं.’

हालांकि मुंबई का दौरा कर चुके अधिकारियों का कहना है कि शहर में अभी भी सामुदायिक ट्रांसमिशन नहीं है. कंटेनमेंट जोन के बाहर सामान्य बुखार के लिए क्लीनिक और बफर जोन में फ्लू जैसी बीमारी के लिए सर्विलांस से किसी तरह की लाभ नहीं हुआ है.

अधिकारी ने कहा, ‘मुख्य समस्या झुग्गियों में सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखना है. इनमें से कुछ स्थानों पर लोग बारी-बारी से सोते हैं. एक कमरे में एक शिफ्ट में आठ घंटे के लिए चार लोग सोते हैं. इतनी भीड़ में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे होगी? हमने जिम, सामुदायिक भवनों आदि से कहा कि वे अपनी इमारतो को क्वारंटीन सेंटर्स में तब्दील कर दें.’

लव अग्रवाल ने डेली प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि यह संभव है कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर भारत कोरोना के चरम स्तर तक नहीं पहुंचे.

उन्होंने कहा, ‘जब भी रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में जिलों को रखने की नई सूची बनाई जाएगी, उसे राज्यों के साथ साझा किया जाएगा, लेकिन जैसे हमने लॉकडाउन में छूट और प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की बात की. यह जरूरी है कि हम इस वायरस के साथ जीना सीख लें और इस महामारी को लेकर हमारे व्यवहार में आ रहे बदलावों की आदत डाल लें.’