दिल्ली पुलिस ने अप्रैल की शुरुआत में जामिया मिलिया इस्लामिया की एमफिल छात्रा सफूरा जरगर को दिल्ली हिंसा से जुड़े एक मामले में गिरफ़्तार किया था. सफूरा विवाहित हैं और मां बनने वाली हैं, लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर उनकी शादी और गर्भावस्था को लेकर ढेरों बेहूदे दावे किए गए हैं.
जामिया मिलिया इस्लामिया की 27 वर्षीया छात्रा सफूरा जरगर एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. वह चार महीने की गर्भवती हैं और उन पर बेहद सख्त यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है.
सवाल है क्यों? जवाब है दिल्ली पुलिस ने उन पर फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 10 अप्रैल को सफूरा को दिल्ली में उनके घर से गिरफ्तार किया था.
उन पर दिल्ली के जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शनों की अगुवाई करने का आरोप लगाया गया था.
सफूरा के वकील ने उनके गर्भवती होने का हवाला देकर जमानत याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया. पुलिस ने सफूरा पर दिल्ली दंगा भड़काने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए 21 अप्रैल को उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया.
यूएपीए एक बेहद कठोर कानून है, जिसका इस्तेमाल आतंकवादियों के खिलाफ और देश की अखंडता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए किया जाता है. इसके तहत आरोपी को कम से कम सात साल तक की जेल हो सकती है और इसमें जमानत मिलना टेढ़ी खीर है.
बॉम्बे हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई कहते हैं, ‘यूएपीए लोगों को दोषी ठहराने के लिए नहीं है, इसका इस्तेमाल उन्हें पकड़कर रखने के लिए किया जाता है. वे निर्दोष हो सकते हैं लेकिन काफी समय बीत जाता है और व्यक्ति का जीवन बर्बाद हो जाता है. सामान्य मामलों में सबूत का बोझ पुलिस पर पड़ता है लेकिन यूएपीए के तहत बोझ उस व्यक्ति पर है जिस पर आरोप है और वह खुद को बेगुनाह साबित करे.’
कौन है सफूरा जरगर
जम्मू में जन्मी और दिल्ली में पली-बढ़ी सफूरा जरगर जामिया मिलिया की छात्रा हैं, जो इस संस्थान से सोशियोलॉजी में एमफिल कर रही हैं, साथ ही वे जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी (जेसीसी) की मीडिया संयोजक भी हैं.
वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के जीसस एंड मेरी कॉलेज से ग्रैजुएशन कर चुकी हैं और यूनिवर्सिटी के विमेन डेवलपमेंट सेल की सदस्य थीं और साथ में कैंपस से छपने वाली पत्रिका के प्रकाशन से भी जुड़ी हुई थीं.
सफूरा ने लगभग दो साल तक मार्केटिंग में करिअर बनाने की दिशा में मेहनत की, लेकिन इसे बीच में ही छोड़कर जामिया में दाखिला ले लिया.
बीते साल के अंत में केंद्र सरकार के विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए कई प्रदर्शनों में वे शामिल रही हैं.
एक गर्भवती छात्रा ट्रोलर्स के निशाने पर क्यों?
सीएए विरोधी प्रदर्शनों में शामिल रही हैं और कथित तौर पर दक्षिणपंथी लोगों के निशाने पर भी. गिरफ्तारी के बाद उनकी गर्भावस्था और शादी को लेकर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक फेक न्यूज फैलाई गई.
भद्दी और बेहद फूहड़ बयानबाजियों से सफूरा के चरित्र की धज्जियां उधेड़ने में ट्रोलर्स ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
झूठी खबरें फैलाई गई कि सफूरा अविवाहित है और जेल में हुए मेडिकल टेस्ट से पता चला है कि वह गर्भवती है जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है.
https://twitter.com/Iqra_K_/status/1257979210594783237
अश्लीलता, फूहड़ता, सेक्सिस्ट ट्रोलिंग जो हो सकता था सफूरा के खिलाफ हर तरह के प्रोपेगैंडा का इस्तेमाल किया गया.
घटिया मीम्स और सफूरा की तस्वीरों से छेड़छाड़ कर छवि खराब करने की कोशिश हुई. उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता की पहचान को लेकर आला दर्जे के झूठ गढ़े गए.
Please don't connect her pregnancy with my speech
It doesn't work that way https://t.co/WtKokksIqR
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) May 3, 2020
इस मामले में भाजपा के विवादित नेता कपिल मिश्रा ने भी कम फूहड़ता नहीं दिखाई. उन्होंने सफूरा मामले में ट्वीट कर कहा कि उनके भाषण को सफूरा की गर्भावस्था से जोड़कर नहीं देखा जाए.
उनका इशारा उस भाषण को लेकर था, जिसके बाद कथित तौर पर दिल्ली में दंगे भड़के थे.
सच्चाई यह है कि साल 2018 में सफूरा की शादी एक कश्मीरी युवक से हुई थी. सफूरा और उनका परिवार पहले से ही उनकी गर्भावस्था से वाकिफ था और यही वजह थी कि उनके वकील ने सफूरा की गर्भावस्था को ध्यान में रखते हुए अप्रैल में ही उनकी जमानत की गुहार लगाई थी.
सफूरा के वकील रितेश ने द वायर को बताया, ‘सफूरा मामले में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर अंगुली उठाई जानी चाहिए थी. एक महिला जो एक प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई कर रही है, शादीशुदा है और गर्भवती है. इसमें ऐसा क्या है जो किसी को उनका चरित्र हनन करने का मौका दे देता है?’
रितेश ने आगे कहा, ‘उन पर आरोप लगा है, वह मामला अदालत में है, मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा.’
Hello @DelhiPolice She is Ragini Tiwari From Jafarabad Delhi.
She is mocking Safoora Zargar and accusing her of being an Unmarried Mother, Spreading fake news about her pregnancy.@DCWDelhi please take note of it.#ReleaseSafooraZargar pic.twitter.com/MBXnZQOSvN
— Deccan Daily (@DailyDeccan) May 9, 2020
सफूरा को लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह के तमाम मीम और पोस्ट शेयर किए जा रहे थे, जिनमें कहा जा रहा था कि सफूरा अविवाहित हैं और जेल में मेडिकल टेस्ट के दौरान डॉक्टर्स को उनकी गर्भावस्था का पता चला.
उन्हें लेकर आला दर्जे की बेतुकी और घटिया पोस्ट शेयर हो रही थीं, जिनमें कहा जा रहा था कि अपनी गर्भावस्था को छिपाने के लिए सफूरा मेडिकल टेस्ट कराने पर आनाकानी करती रहीं, लेकिन इस दावे में दूर-दूर तक कोई सच्चाई नहीं है.
सोशल मीडिया पर हो रही ऐसी बातों पर हिंदी की प्रख्यात लेखक ममता कालिया कहती हैं, ‘यह अमानुषिक है. अगर सफूरा अविवाहित गर्भवती होती, तब भी किसी को जज बनने का हक नहीं मिल जाता. यह किसी भी महिला की अपनी पसंद है कि वह शादी से पहले मां बनना चाहती है या शादी के बाद.’
वे आगे कहती हैं, ‘मेरी सहानुभूति सफूरा के साथ है. किसी की शादी या गर्भावस्था को लेकर जज बनने का हक किसी को भी नहीं है. महिलाओं को बात-बात पर चरित्र प्रमाण पत्र पकड़ाने वाले इन लोगों पर भी नकेल कसने की जरूरत है.’
https://twitter.com/mohitsaxena0786/status/1257053541320937472
सोशल मीडिया पर चल रही भद्दी और अपमानजनक बातों में सफूरा की गर्भावस्था को शाहीन बाग में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन से जोड़ा गया.
ऐसे कई पोस्ट आंखों से होकर गुजरे जिनके जरिए यह झूठ फैलाया गया कि सफूरा अविवाहित है और वह शाहीन बाग की प्रदर्शनकारी है.
गर्भावस्था की आड़ में सफूरा का चरित्र हनन होने के बारे में नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन कहती हैं, ‘लोग नारी का सम्मान करना भूल गए हैं. पुरुषों के लिए तो महिला या तो भोग की वस्तु रह गई है या दुत्कार की.’
वे आगे कहती हैं कि सफूरा के मामले में जो कुछ भी हुआ, वो एक सभ्य समाज में कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. कोरोना महामारी के इस दौर में एक गर्भवती महिला जेल में बंद हैं और हम उस अजन्मे बच्चे के पिता पर बहस कर रहे हैं!
उन्होंने आगे कहा, ‘उसकी इज्जत, मान-सम्मान की धज्जियां उधेड़ी जा रही हैं, कयास लगा रहे हैं कि वो अविवाहित है. इससे बड़ी शर्मसार करने वाली बात क्या होगी कि हमारे भीतर मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी है जो हम जेल में बंद एक गर्भवती महिला की पीड़ा को महसूस करना तो दूर उसका चरित्र हनन करने में लगे हैं.’
मुस्लिम सफूरा का जामिया से होना भी अपराध बन गया
सफूरा एक मुस्लिम हैं, जामिया में पढ़ती हैं, जेसीसी से भी जुड़ी हैं और सीएए के विरोध में जामिया में हुए प्रदर्शनों में भी शामिल रहीं. तथाकथित दक्षिणपंथी रुझान वाले लोगों के निशाने पर आने के लिए इन सभी पहलुओं को बड़ी वजह माना जा रहा है.
सफूरा की बहन सामिया कहती हैं, ‘उन पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें फंसाया गया. फिर धर्म की आड़ में एक पूरी ट्रोल आर्मी उनका चरित्र हनन करने में जुटी रही. सफूरा का मुस्लिम होना और जामिया से जुड़े होना भी उनके लिए मुसीबत लाया. वही जामिया जिसे पिछले कुछ सालों से सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाने वाले संस्थान के तौर पर देखा जाता है.’
सामिया ने सफूरा के नाम एक खुला पत्र भी लिखा है, जिसे उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है.
Dear Sister @SafooraZargar pic.twitter.com/6XcSrbkgWp
— Sameeya_Zargar (@SameeyaZ) May 3, 2020
इसी मामले पर नारीवादी लेखिका उर्वशी बुटालिया कहती हैं, ‘हमारे देश में मुस्लिमों की दशा किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में एक मुस्लिम महिला, जो अपने हकों के लिए आवाज बुलंद किए हुए है, वह आंख की किरकिरी की तरह लगेगी ही.’
बुटालिया आगे कहती हैं, ‘देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें जेल में डाला गया है, सफूरा तो फिर भी एक साधारण छात्रा है, जो अपने हक के लिए आवाज उठाए हुई थी. और वो जामिया जैसे संस्थान से ताल्लुक रखती है, जिसे यह हुकूमत देशद्रोही और टुकड़े-टुकड़े गैंग की उपाधि दे चुके हैं.’
ममता कालिया भी सफूरा के मुस्लिम होने को उनके साथ हुए बर्ताव के लिए एक हद तक जिम्मेदार मानती हैं. वे कहती हैं, ‘हमारी केंद्र सरकार शुरुआत से ही अल्पसंख्यकों को संदेह की दृष्टि से देखती आई है. वह उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखने की आदी है.’
जेल में बंद सफूरा की दिक्कतें
दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद सफूरा के वकील रितेश ने द वायर को बताया, ‘एक गर्भवती महिला जेल में बंद है, उसकी स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. हैरानी की बात तो यह है कि उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है.’
रितेश कहते हैं, ‘सफूरा को हफ्ते में सिर्फ एक बार अपने पति से पांच मिनट के लिए फोन पर बात करने की इजाजत है. पांच मिनट में भी फोन कनेक्शन कट जाता है. वहीं, मुझे अभी तक सफूरा से मिलने नहीं दिया गया है जो पूरी तरह से गलत है और हम इस पर उचित कानूनी कदम उठाने की सोच रहे हैं.’
कोरोना वायरस के इस संकट भरे समय में जब एहतियात के तौर पर देश की कई जेलों में बंद कैदियों को रिहा किया जा रहा है. ऐसे में एक गर्भवती महिला के साथ कठोर व्यवहार मौलिक अधिकारों का हनन कहा जाएगा.
महिलाओं का विरोध उनके चरित्र हनन से शुरू और उसी पर खत्म
सफूरा को लेकर फैलाई गई बातों में उनके काम या पढ़ाई-लिखाई को लेकर कोई बात है, यह पहलू उसी धारणा को पुष्ट करता है कि औरतें जिंदगी में कुछ भी हासिल कर लें, उनका मूल्यांकन उनके चरित्र से किया जाएगा। साथ ही उनके निजी फैसलों को लेकर भी समाज का रवैया रूढ़िवादी ही रहेगा।
नारीवादी कार्यकर्ता गीता यथार्थ कहती हैं, ‘जिस तरह की अभद्र और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल सफूरा के लिए किया गया उससे लगता है कि समाज अभी 21वीं सदी के अनुसार सोच नहीं पा रहा है. समाज अब भी महिलाओं की गर्भावस्था को लेकर सहज नहीं है. कानून की नजरों में भले ही बिना शादी के महिला मां बन सकती है लेकिन समाज अभी उस स्तर पर तैयार नहीं हुआ है.’
वह आगे कहती हैं, ‘दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि सफूरा विवाहित हैं लेकिन ट्रोलर्स के घटियापन के बाद इन अफवाहों को आगे ले जाने वाले लोगों ने एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं कि सफूरा का मैरिटल स्टेटस क्या है? बस एक फेक न्यूज मिली और फैला दिया, इससे साबित होता है कि हम फेक न्यूज को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार बैठे हैं.’
गीता कहती हैं, ‘तीसरी अहम बात ये है कि भारतीय पुरुष सेक्सुअल फ्रंट पर महिलाओं के बारे में अभद्र बोलने और लिखने के आदी हैं. किसी भी महिला का विरोध करने के लिए विरोधियों के पास सबसे पहला और आखिरी शब्द यौन हिंसा ही होता है, जब वे गंदा लिखकर या बोलकर अपनी भड़ास निकालना चाहते हैं.’
वह कहती हैं, ‘सोशल मीडिया महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है. किसी भी नेता के बारे में किसी भी तरह की अभद्र टिप्पणी करने पर तुरंत एफआईआर हो जाती है लेकिन महिलाओं को ट्रोल करने पर कोई एक्शन नहीं होता. ये एक गंभीर समस्या है, कितनी ही लड़कियों ने ट्रोल्स से तंग आकर सोशल मीडिया छोड़ दिया है.’
At the time of her arrest, Safoora Zargar, a research scholar at @jmiu_official, was 3 months pregnant.
The Government of India has ruthlessly arrested a pregnant woman and sent her to an overcrowded prison during #COVID19!
DEMAND HER RELEASE NOW: https://t.co/iJuOcDztsY pic.twitter.com/2sU7GmSslP
— Amnesty India (@AIIndia) May 1, 2020
इस बीच मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंडिया ने सफूरा की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा है, ‘भारत सरकार ने बड़ी क्रूरता से एक गर्भवती महिला को गिरफ्तार किया है और उसे कोरोना के इस संकट भरे दौर में कैदियों से पटी पड़ी जेल भेज दिया है. हम सफूरा की जल्द रिहाई की मांग करते हैं.’
एमनेस्टी का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार गर्भवती महिलाओं के लिए सुनवाई शुरू होने से पहले पुलिस को उनकी गिरफ्तारी की जगह दूसरे विकल्प तलाशने चाहिए.
वहीं, इस पूरे मामले पर सफूरा के पति सबूर अहमद सिरवाल द वायर से कहते हैं, ‘मैं सामने आकर ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता हूं. सफूरा निर्दोष है और हम ये लड़ाई साथ मिलकर लड़ेंगे.’