कोर्ट ने कहा कि उनकी ये जिम्मेदारी है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच बैलेंस बना कर रखें. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर विशेषज्ञों ने सवाल उठाया और कहा कि कोर्ट अपनी न्यायिक जिम्मेदारी नहीं निभा रहा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट बहाली को लेकर तुरंत कोई आदेश देने से मना कर दिया. इसकी जगह पर कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वे एक विशेष समिति बनाएं जो याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई मांग पर विचार करेगा.
कोर्ट के इस कदम को लोगों के मौलिक अधिकारों के हनन के रूप में देखा जा रहा है, जहां कोर्ट ने केंद्र के फैसलों के खिलाफ दायर की गई याचिका का समाधान करने के लिये केंद्र को ही समिति बनाने के लिए कहा है.
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस एनवी रमना, आर. सुभाष रेड्डी और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि कोर्ट की ये जिम्मेदारी है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच बैलेंस बना कर रखें.
उन्होंने कहा, ‘हम ये मानते हैं कि केंद्रशासित प्रदेश संकट की स्थिति में चला गया है. साथ ही साथ कोर्ट को मौजूदा महामारी और मुसीबतों को लेकर उत्पन्न चिंताओं का भी संज्ञान है.’
कोर्ट ने कहा, ‘अनुराधा भसीन मामले में हमने कहा था कि पर्याप्त प्रकियात्मक सुरक्षा होनी चाहिए. उसी तर्ज पर हम सचिवों की एक समिति का गठन करने का निर्देश देते हैं जिसमें केंद्र एवं राज्य के गृह मंत्रालय के सचिव, संचार मंत्रालय के सचिव और जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव शामिल होंगे. इस विशेष समिति को ये निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ताओं के दलीलों की जांच करेंगे और वैकल्पिक सुझाव देंगे.’
इससे पहले जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 4जी सेवाओं की बहाली का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य बोलने की स्वतंत्रता और इंटरनेट के माध्यम से व्यापार करने के अधिकार पर रोक लगा सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की कुछ वकीलों ने तत्काल आलोचना की और कोर्ट पर न्यायिक जिम्मेदारी को त्यागने का आरोप लगाया.
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वकील और लेखक गौतम भाटिया ने कहा कि ये फैसला उन्हें आपातकाल की याद दिलाता है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘अब कार्यपालिका तय करेगा कि क्या कार्यपालिका ने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है.’
मालूम हो कि पिछले साल पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करके जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में इंटरनेट पर पूरी तरह से बैन लगा दिया था. विशेष दर्जा खत्म करने के बाद राज्य को दो भागों में भी बांट दिया गया और इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया.
Reminded of the Emergency-era judgments: the executive will decide whether the executive violated fundamental rights, and whether the executive will grant a remedy for the rights violations of the executive. SC living up to its long-standing traditions. https://t.co/GButg7li6P
— Gautam Bhatia (@gautambhatia88) May 11, 2020
कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने इंटरनेट पर पाबंदी को चुनौती दी थी, जिस पर इसी पीठ ने जनवरी महीने में कहा था अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट पर बैन लगाने की इजाजत नहीं है.
शुरू में इस आदेश की काफी प्रशंसा हुई थी, हालांकि इसकी आलोचना भी हुई की अगर कोर्ट ये मानती है कि लंबे समय तक इंटरनेट पर बैन नहीं लगाया जा सकता है तो उन्होंने सरकार के आदेश को खारिज क्यों नहीं कर दिया.
कोर्ट के इस आदेश के बाद इंटरनेट पर पूरी तरह से बैन हटाया गया और सरकार ने 2जी इंटरनेट सेवा शुरू की. शुरू में कुछ चुनिंदा वेबसाइटों के इस्तेमाल की ही इजाजत दी गई थी और फेसबुक पूरी तरह से ब्लॉक था, बाद में चार मार्च को इसकी इजाजत दी गई लेकिन लेकिन इंटरनेट स्पीड सिर्फ 2जी है जो कि बहुत धीमा है.