हिंदुस्तान किसानों का क़ब्रिस्तान क्यों बनता जा रहा है?

राज्य बनने के बाद तेलंगाना में 3000, मध्य प्रदेश में 21 दिन में 40, मराठवाड़ा में दो हफ़्ते में 42 और छत्तीसगढ़ में एक पखवाड़े में 12 किसानों ने आत्महत्या की है.

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राज्य बनने के बाद तेलंगाना में 3000, मध्य प्रदेश में 21 दिन में 40, मराठवाड़ा में दो हफ़्ते में 42 और छत्तीसगढ़ में एक पखवाड़े में 12 किसानों ने आत्महत्या की है.

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फोटो: पीटीआई

किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा बता पाना नामुमकिन है. हर रोज़ दर्जनों किसानों के आत्महत्या कर लेने की सूचनाएं आ रही हैं. हर दिन देश भर से इतनी सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं कि यह किसी तबाही से कम नहीं है. इतनी आत्महत्या की सूचनाओं को लेखा-जोखा रख पाना नामुमकिन है.

पिछले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान, पजांब और उत्तराखंड से दर्जनों किसानों के आत्महत्या करने की ख़बरें आई हैं. प्रदेश में जून महीने में ही आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 40 से ज़्यादा हो गई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अलावा मध्य प्रदेश की विपक्षी पार्टी ने यह दावा किया है.

नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने दावा किया है कि जून महीने की शुरुआत से अब तक मध्य प्रदेश में 40 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. लेकिन राज्य सरकार किसानों के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है.

राज्य के सीहोर, होशंगाबाद, रायसेन, धार, नीमच, छतरपुर, सागर, टीकमगढ़, रायसेन, बालाघाट, बडवानी, छिन्दवाडा, रतलाम, पन्ना, इंदौर, हरदा, देवास, खंडवा, शिवपुरी और विदिशा ज़िलों में किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आईं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह ज़िले सीहोर में छह किसानों ने आत्महत्या की है.

मध्य प्रदेश में क़र्ज़ में डूबे किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला थम नहीं रहा है. कई राज्यों के किसानों ने एक जून से दस जून तक आंदोलन किया था. इस दौरान छह जून को मध्य प्रदेश के मंदसौर में गोलीबारी में छह किसानों की मौत की घटना के बाद एक पखवाड़े के भीतर 26 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी.

हर दिन दो से पांच आत्महत्याएं

मध्य प्रदेश में 29 जून को सीहोर और होशंगाबाद ज़िलों में दो किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली. सीहोर के ईंटाखेड़ा गांव के मारिया आदिवासी (52) ने अपने खेत में पेड़ से फांसी लगाकर जान दे दी.

होशंगाबाद ज़िले में पिपरिया के सांडिया में गुलाब सिंह ने आत्महत्या कर ली. परिजनों के मुताबिक, उनकी 8 एकड़ जमीन पर 2 लाख का क़र्ज़ था, जिसे लगातार फसल ख़राब होने के चलते वे चुका पाने में असमर्थ थे.

28 जून को धार ज़िले में एक किसान मदनलाल ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली. मदनलाल के पुत्र मनोज का दावा है कि क़र्ज़ के चलते वे दबाव में थे, क्योंकि बैंक का क़र्ज़ चुकाने की हालत में नहीं थे. धार ज़िले में 27 और 28 जून के बीच दो किसानों ने आत्महत्या की है.

26 और 27 जून के बीच मध्य प्रदेश में क़र्ज़, सूदखोरों की प्रताड़ना और अन्य कारणों से परेशान होकर पांच और किसानों के आत्महत्या की ख़बर है.

27 जून को भरवेली, बालाघाट के रहने वाले एक किसान डालचंद ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली. डालचंद पर बैंक और सोसाइटी का तीन लाख का क़र्ज़ था. डालचंद के परिजनों ने उनकी मौत के बाद उनका शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन किया.

फोटो: पीटीआई
फोटो: पीटीआई

डालचंद के परिजनों के मुताबिक, उन्होंने क़र्ज़ चुकाने की गरज से अपनी डेढ़ एकड़ ज़मीन बेची भी थी, फिर भी क़र्ज़ नहीं चुका पाए. उनके पास बैंक से लगातार फोन आ रहा था, सोसायटी ने उन्हें डिफाल्टर घोषित कर दिया था. इससे परेशान होकर डालचंद ने ख़ुदकुशी कर ली.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, इंदौर ज़िले में क़र्ज़ के बोझ तले दबे 21 वर्षीय किसान ने सोमवार की रात कथित तौर पर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली.

गांधी नगर पुलिस थाना के प्रभारी आरएस शक्तावत ने बताया कि जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर धरनावदा गांव में पवन केवट ने 26 जून देर रात कथित तौर पर ज़हर खा लिया. उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उसकी तीन महीने पहले ही शादी हुई थी.

केवट या उसके पिता के नाम खेती की कोई ज़मीन नहीं है. हालांकि, उसने साल भर पहले एक व्यक्ति से बंटाई पर तीन बीघा ज़मीन लेकर इस पर खेती की थी. बंटाई का क़रार ख़त्म होने के बाद वह इन दिनों मज़दूरी कर रहा था.

पुलिस को शुरुआती जांच में पता चला कि केवट पर एक बैंक का कुछ क़र्ज़ था. पुलिस बैंक से इसकी जानकारी निकलवा रही है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के खंडवा जिले में हरसूद निवासी घिसिया खान (70) ने ईद की रात खेत के कुएं में कूदकर जान दे दी. मंगलवार को घिसिया का शव बरामद हुआ. उन्होंने एक ट्रैक्टर ख़रीदा था, जिसके लिए क़र्ज़ लिया था और क़र्ज़ नहीं चुका पा रहे थे.

प्रदेश के झाबुआ ज़िले के पारा चौकी के आदिवासी किसान जहू ने 26 जून को कीटनाशक पीकर जान दे दी. पुलिस का कहना है कि जहू के बेटे ने एक लड़की के साथ भागकर शादी की थी. पंचायत ने जहू को आदेश दिया था कि वह लड़की वालों को साढ़े चार लाख रुपये दहेज में दे. ज़मीन गिरवी रखने के बाद भी क़र्ज़ नहीं उतरा तो उन्होंने आत्महत्या कर ली.

देवास ज़िले की टोंकखुर्द तहसील के केसली गांव के रहने वाले किसान मनोहर सिंह ने भी ज़हर पीकर जान दे दी. उन पर पांच लाख रुपये का क़र्ज़ था.

रविवार को बुंदेलखंड क्षेत्र के टीकमगढ़ ज़िले में एक 65 वर्षीय किसान बारेलाल अहिरवार ने अपने खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, उनके बेटे चंद्रभान ने कहा कि उनके पिता ने स्थानीय सूदखोर से 45,000 का क़र्ज़ ले रखा था. लेकिन प्रशासन का कहना है कि अहिरवार मानसिक रूप से बीमार थे.

यह ध्यान रखने की बात है कि जितने किसानों ने आत्महत्या की है, हर मामले में मरने वाले किसानों के परिजन दावा कर रहे हैं कि उन्होंने क़र्ज़ के कारण ख़ुदकुशी की, जबकि लगभग हर मामले में प्रशासन का दावा इससे इतर है. प्रशासन लगातार यह मानने से इनकार करता रहा है कि किसान क़र्ज़ से ख़ुदकुशी कर रहे हैं.

पिछले हफ़्ते इसी क्षेत्र के पाली गांव के रघुवीर यादव ने अपने खेत में जाकर सल्फास खा लिया था और उनकी मौत हो गई थी. उनके पिता देशपत यादव के मुताबिक, उन पर दस लाख रुपये का क़र्ज़ था. लेकिन प्रशासन ने दावा किया कि रघुवीर ने पारिवारिक विवाद के चलते आत्महत्या की. स्थानीय लोगों का कहना है कि रघुवीर कॉन्ट्रैक्ट पर खेती करते थे और कई सालों से लगातार घाटे में चल रहे थे जिस कारण उन पर बहुत क़र्ज़ हो गया था.

पिछले 16 सालों में मध्य प्रदेश में 21,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का कहना है कि इन आत्महत्याओं का कारण फसलों का बर्बाद होना, फसलों का उचित दाम न मिलना, क़र्ज़ न चुका पाना, क़र्ज़ चुकाने के लिए बैंकों और सूदखोरों का दबाव होना और कृषि से जुड़े अन्य कारण हैं.

उत्तर प्रदेश में झांसी के सीपरी बाजार थाना क्षेत्र के करारी गांव में एक किसान सीताराम (48) ने अपने खेत में फांसी लगा ली. 24 जून को उनका शव उनके खेत में एक पेड़ से लटका मिला. परिजनों ने बताया है कि कुछ दिन पहले सीताराम का ट्रैक्टर एक कार से टकरा गया था जिससे कार क्षतिग्रस्त हो गई थी. कार मालिक दंबगई करते हुए 20 हज़ार रुपये मांग रहे थे, लेकिन सीताराम के पास पैसे नहीं थे. दबंगों की धमकी से परेशान सीताराम ने आत्महत्या कर ली.

छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर ज़िले के उलकिया गांव में सोमवार रात एक किसान फुलेश्वर पैकरा 40 ने फांसी लगा ली. उन्होंने खेती के लिए आदिम जाति सहकारी समिति से क़र्ज़ ले रखा था. पिछले कुछ दिन से वह क़र्ज़ जमा नहीं कर पाने के कारण मानसिक रूप से परेशान था. हालांकि, पुलिस ने क़र्ज़ के कारण आत्महत्या से इनकार किया है.

मराठवाड़ा में दो हफ़्ते में 42 किसानों ने आत्महत्या की

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले दो हफ़्ते में 42 किसानों ने आत्महत्या की है. औरंगाबाद डिवीजनल कमिश्नरेट, जो किसानों की आत्महत्या का लेखा-जोखा रखता है, के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, ‘इस साल जनवरी से 26 जून तक 445 किसानों ने आत्महत्या की है. एक जून से किसानों के आंदोलन के बाद महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की क़र्ज़माफ़ी की घोषणा की थी. इसके बावजूद, महाराष्ट्र के आठ ज़िलों में किसानों ने आत्महत्या की. यहां पिछले दो हफ़्ते में 42 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इसकी वजहें कृषि और क़र्ज़ से जुड़ी हैं.’

इस महीने 19 जून से 25 जून के बीच 19 किसानों ने आत्महत्या की. जबकि, 12 जनू से 18 जून के बीच 23 किसानों ने आत्महत्या की.

छत्तीसगढ़ में एक पखवाड़े में 12 किसानों ने दी जान

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में 27 जून को एक किसान फुलेश्वर पैकरा ने आत्महत्या कर ली. टाइम्स आॅफ इंडिया के मुताबिक, इसके साथ ही राज्य में एक पखवाड़े में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 11 हो गई है. विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि राज्य में पिछले दस दिनों में 12 किसानों ने आत्महत्या कर ली है.

किसानों के प्रदर्शन के बाद धमतरी, राजनंदगांव, सरगुजा, दुर्ग, महासमुंद, कांकेर और कवर्धा जिलों में किसानों ने आत्महत्या की है.

पंजाब में भी 8 दिनों में एक दर्जन किसान आत्महत्याएं

किसानों का क़र्ज़ माफ़ करने की पंजाब सरकार की घोषणा के बाद से अब तक पंजाब में एक दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली है. 19 जून को सरकार ने यह घोषणा की थी. इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक, 19 जून से 27 जून के बीच आठ दिनों के भीतर एक दर्जन किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली. जितने किसानों ने ख़ुदकुशी की है उन सभी पर तीन से पांच लाख तक संस्थानिक या निजी क़र्ज़ था.

यह आंकड़ा किसान संगठन ने जुटाया है. राज्य में जितने किसानों ने आत्महत्या की है उनमें से चार मानसा ज़िले से हैं. मानसा के जोगा गांव के बूटा सिंह (44) ने 27 जून को अपने खेत में पेस्टिसाइड पी लिया था. उन पर 8.50 लाख का क़र्ज़ था. पंजाब में जून के पहले हफ़्ते में दस किसानों के आत्महत्या करने की ख़बरें आई थीं.

राजस्थान के हाड़ौती संभाग में पांच ख़ुदकुशी

राजस्थान के हाड़ौती संभाग में इस जून में ही पांच किसानों ने आत्महत्या की है. राजस्थान पत्रिका की एक ख़बर में कहा गया है कि ‘हाड़ौती के किसानों के लिए जून 2017 यमराज बनकर आया. अब तक संभाग में पांच किसान आत्महत्या कर चुके हैं.’

इन आत्महत्याओं का कारण गिरता लहसुन का दाम है. ‘मौजूदा भाव में बुवाई का ख़र्च़ भी नहीं निकल रहा जिससे परेशान होकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

अख़बार ने लिखा है, ‘हाड़ौती में 3 जून को लहसुन के कम भाव मिलने से सदमे में रोण निवासी सत्यनारायण मीणा की मौत हो गई. 21 जून को सकरावदा निवासी संजय मीणा ने क़र्ज़ से परेशान होकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. 23 जून को सुनेल निवासी बगदीलाल राठौर ने भी क़र्ज़ के चलते ख़ुदकुशी कर ली. 24 जून को डग निवासी शेख़ हनीफ़ ने क़र्ज़ से परेशान होकर आत्महत्या कर ली. 27 जून को कोटा ज़िले के अयाना थाना क्षेत्र के श्रीपुरा निवासी मुरलीधर मीणा (32) ने लहसुन के कम दाम मिलने से आहत होकर जहर खाकर जान दे दी.’

तेलंगाना में भी तबाही

तेलंगाना राज्य बनने के बाद से अब तक वहां पर 3,000 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद से तेलंगाना में अब तक 3,026 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. एक एनजीओ के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में 792, 2015 में 1147 और 2016 में 784 किसानों ने आत्महत्या की. इस साल जनवरी से जून तक 294 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. दक्षिणी राज्यों में तेलंगाना में भी किसानों की ख़ुदकुशी जारी है. तेलंगाना के खम्मम और भद्राद्री कोठागुडम ज़िलों में ही पिछले तीन महीने में 22 किसानों ने आत्महत्या की है.

क्या है किसानों की मूल समस्या

क़रीब 70 प्रतिशत भारतीय कृषि पर निर्भर हैं. इनमें से 9 करोड़ परिवार सीधे तौर पर किसानी से जुड़े हैं. यह आबादी अपने ज़रूरी ख़र्च से कम आमदनी के कारण क़र्ज़ लेने पर मजबूर होती है. अंतत: क़र्ज़ का बोझ अंतत: उसकी जान ले लेता है.

इंडिया स्पेंड के आंकड़ों के हवाले से हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में छपी एक ख़बर में कहा गया है कि क़रीब 70 प्रतिशत भारतीयों के 90 मिलियन यानी 9 करोड़ परिवार हर महीने अपनी कमाई से ज़्यादा ख़र्च करते हैं, इस कारण उन्हें क़र्ज़ लेना पड़ता है. देश भर में आधे से ज़्यादा किसानों की आत्महत्या का कारण क़र्ज़ ही है.

नेशनल सैंपल सर्वे का डाटा कहता है कि 6 करोड़ से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिनके पास एक एकड़ या उससे कम खेती की ज़मीन है. उनका जितना ख़र्च है उससे कम कमा पाते हैं.

यानी बढ़ती महंगाई, खेती में बढ़ती लागत, कम आमदनी, कृषि उपज का उचित मूल्य न मिलने और इसके फलस्वरूप क़र्ज़ बढ़ने से पूरे देश के मध्यम और सीमांत किसान मुसीबत में हैं. क़र्ज़ चुकाने को लेकर बैंक और सूदखोर इतना दबाव डालते हैं कि किसान पैसे न दे पाने की हालत में आत्महत्या कर रहे हैं.

किसान आत्महत्या के डरावने आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में कहा गया कि नरेंद्र मोदी के शासन काल में 2014-15 के दौरान किसानों के आत्महत्या करने की दर 42 प्रतिशत बढ़ गई है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, पिछले 22 सालों में देश भर में तकरीबन सवा तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. भारत के कई राज्यों में हज़ारों की संख्या में किसान क़र्ज़, फ़सल की लागत बढ़ने, उचित मूल्य न मिलने, फ़सल में घाटा होने, सिंचाई की सुविधा न होने और फ़सल बर्बाद होने के चलते आत्महत्या कर लेते हैं.

ब्यूरो के मुताबिक, 2015 में कृषि से जुड़े 12,602 किसानों ने आत्महत्या की. 2014 में यह संख्या 12,360 थी. इसके पहले 2013 में 11,772, 2012 में 13,754, 2011 में 14 हजार, 2010 में 15 हजार से अधिक, 2009 में 17 हजार से अधिक किसानों ने कृषि संकट, क़र्ज़, फ़सल ख़राब होने जैसे कारणों के चलते आत्महत्या कर ली.

2016 का आंकड़ा अभी जारी नहीं हुआ है. लेकिन जिस तरह से राज्यों से किसानों द्वारा आत्महत्या करने की ख़बरें आईं, उस आधार पर कहा जा सकता है कि 2016 और 17 के हालात और भयानक हैं.

पिछले कई बरसों महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या करते हैं. अकेले महाराष्ट्र में 1995 से लेकिन अब तक 60,000 से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं.

महाराष्ट्र के बाद तेलंगाना दूसरे और कर्नाटक तीसरे नंबर पर है. देश में जितने किसान आत्महत्याएं करते हैं, उनमें से 94 प्रतिशत मात्र छह राज्यों में हैं. ये राज्य हैं- महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध प्रदेश और छत्तीसगढ़.

देश भर में ये सैकड़ों आत्महत्याएं देश के प्रशासन और किसानों को लेकर सरकारों की प्राथमिकता पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं. क्या भारत ऐसा देश बन गया है जहां किसान होना मौत की गारंटी है?