अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा कि सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठनों से जुड़े लोगों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के बाद ही श्रम कानूनों में किसी भी तरह का संशोधन किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भारत में राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित श्रम कानूनों में व्यापक बदलावों पर जवाब देते हुए कहा कि प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि जिन श्रम कानूनों से छूट दी जा रही है वह वैश्विक मानदंडों पर खरा उतरता है और उचित परामर्श के बाद ही इसे लागू किया जाएगा.
बीते बुधवार को जारी एक बयान में आईएलओ ने कहा, ‘भारत में कुछ राज्य कोविड-19 की वजह से प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कई श्रम कानूनों को हल्का कर रहे हैं. इस तरह के संशोधनों को सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठनों से जुड़े लोगों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के बाद किया जाना चाहिए और ये अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के अनुरूप होना चाहिए, जिसमें मौलिक सिद्धांत और कार्य पर अधिकार (एफपीआरडब्ल्यू) शामिल है.’
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक आईएलओ ने कहा कि श्रम कानून नियोक्ताओं और श्रमिकों दोनों की भलाई के लिए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार, नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच एकजुटता होनी चाहिए और सभी पक्षों को मिलकर सामूहिक प्रयास करना चाहिए. श्रम संगठन ने कहा, ‘श्रम कानून सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने और सभी के लिए उचित काम को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन हैं.’
भारत आईएलओ के संस्थापक सदस्यों में से एक है, जो कि 1919 में अस्तित्व में आया था. भारतीय संसद ने आईएलओ के 47 समझौतों को मंजूरी दी है, जिनमें से काम के घंटे निर्धारित करने, श्रम निरीक्षण, समान वेतन और किसी दुर्घटना के समय मुआवजा समेत कई कल्याणकारी प्रावधान शामिल हैं.
मालूम हो कि आईएलओ ने अप्रैल महीने में अनुमान लगाया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के चलते करीब 40 करोड़ मजदूर गरीबी में जा सकते हैं.
भारत में कुछ राज्यों ने अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और निवेश को बढ़ाने के नाम पर या तो महत्वपूर्ण श्रम कानूनों पर कुछ सालों के लिए रोक लगा रहे हैं या फिर उद्योगों के लिए इन कानूनों के कई प्रावधानों को हल्का किया जा रहा है.
इस मामले में सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, जिसने एक अध्यादेश पारित कर लगभग सभी कानूनों पर तीन साल के लिए रोक लगा दी है. यूपी का अनुसरण करते हुए गुजरात सरकार ने कहा है कि राज्य में निवेश करने वाली नई कंपनियों को अगले 1,200 दिनों के लिए कई महत्वपूर्ण श्रम कानूनों से छूट दी जाएगी.
इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करके फैक्ट्री लगाने और दिहाड़ी मजदूरों को नौकरी पर रखने के लिए कई लाइसेंसों से छूट प्रदान की है. राज्य ने फैक्ट्री एक्ट, 1948 के विभिन्न प्रावधानों के तहत मजदूरों को लाभ देने से भी उद्योगों को छूट दे दी है.
श्रमिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण इन कानूनों को हल्का करने या कुछ वर्षों के लिए इन पर रोक लगाने की वजह से न सिर्फ मजदूरों को अपनी बात रखने की इजाजत नहीं मिलेगी, काम के घंटे बढ़ा दिए जाएंगे, नौकरी से निकालना आसान हो जाएगा बल्कि उन्हें आधारभूत सुविधाओं जैसे कि साफ-सफाई, वेंटिलेशन, पानी की व्यवस्था, कैंटीन और आराम कक्ष जैसी चीजों से भी वंचित रहना पड़ सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि श्रम कानून में बदलाव मजदूरों के अधिकारों से खिलवाड़ हैं और इसके कारण उन्हें मालिकों के रहम पर जीना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि उद्योग इसलिए नहीं आते हैं कि किसी राज्य में श्रम कानून खत्म कर दिया गया है या वहां श्रम कानून कमजोर है. उद्योग वहां पर आते हैं जहां निवेश का माहौल बेहतर होता है.