संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ बास्कुट तुनचक ने कहा है कि विशाखापट्टनम का ताज़ा हादसा यह ध्यान दिलाता है कि अनियंत्रित उपभोग और प्लास्टिक के उत्पादन से किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र के एक विशेषज्ञ ने कहा है कि आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम के एक रसायन संयंत्र से हाल ही में घातक गैस रिसाव की घटना उद्योग जगत के लिए मानवाधिकार को स्वीकारने और उसका सम्मान करने की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए आंखें खोल देने वाली है.
उन्होंने इस घटना की जांच का आदेश दिए जाने का स्वागत किया. संयुक्त राष्ट्र में खतरनाक पदार्थों एवं अपशिष्ट मामलों के विशेष प्रतिनिधि बास्कुट तुनचक ने एक बयान में कहा कि विशाखापट्टनम के समीप आरआर वेंकटपुरम गांव में बहुराष्ट्रीय एलजी पॉलीमर्स प्लांट से गैस रिसाव की घटना 1984 की भोपाल गैस त्रासदी जैसी है, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी.
उन्होंने कहा कि वह जांच शुरू करने का स्वागत करते हैं.
A deadly gas leak at a chemical plant in #India last week is a grim wakeup call for the industry to recognise and meet its responsibility to respect #HumanRights to prevent more Bhopal-like disasters – @SRtoxics. Learn more: https://t.co/4xhVwfg75A pic.twitter.com/koLTcWJdg5
— UN Special Procedures (@UN_SPExperts) May 14, 2020
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ बास्कुट तुनचक ने कहा कि ताज़ा हादसा ध्यान दिलाता है कि अनियंत्रित उपभोग और प्लास्टिक के उत्पादन से किस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
उन्होंने वर्ष 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल पूरे होने पर जारी अपनी अपील में रसायन उद्योग से मानवाधिकारों की रक्षा के लिए तत्परता से प्रयास करने की अपील थी, उसे दोहराते हुए प्रशासन से पूर्ण रूप से पारदर्शिता बरते जाने और दोषियों की जवाबदेही तय करने का आग्रह किया.
तुनचक ने इस घटना को रसायन उद्योग जगत में एक ऐसी त्रासदी बताया है जिसे टाला जा सकता था और मासूम कामगारों और स्थानीय समुदायों को भयावह पीड़ा का सामना न करना पड़ता.
उन्होंने कहा, ‘मैं भारतीय व दक्षिण कोरियाई प्रशासन और प्रभावित व्यवसाय से उस तरह की गलतियों और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग से बचने का आग्रह करता हूं, जिनकी वजह से भोपाल त्रासदी के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला, जो आज तक पीड़ा में झुलस रहे हैं.’
साथ ही मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इस हादसे का शिकार हुए लोगों के स्वास्थ्य के प्रति चिंता जताई है. उन्होंने कहा, ‘मैं यह सुनिश्चित करने के लिए चिंतित हूं कि हादसे का शिकार हुए लोगों को बाद में बीमार या विकलांग होने की स्थिति में असरदार उपचार मिल सके.’
मालूम हो कि उद्योग जगत ने साल 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1986 में ऐसे संयंत्रों का रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए ‘जिम्मेदारपूर्ण रखरखाव’ की पहल शुरू की थी ताकि रसायन बनाने वाले व्यवसायों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की रोकथाम हो सके.
तुनचक ने कहा, ‘उद्योग जगत की इस पहल के सिद्धांत में मानवाधिकारों का कोई उल्लेख नहीं है न ही वो नीतियां सही मायनों में लागू हो पाई हैं जिनका जिक्र व्यवसाय और मानवाधिकारों पर यूएन के दिशानिर्देशों में किया गया है.’
उन्होंने बताया कि स्वैच्छिक रूप से मानवाधिकार मानक अपनाने की प्रक्रिया में कमजोरियां नीहित हैं और इसलिए मज़बूत क़ानूनी विकल्पों की तत्काल आवश्यकता है.
संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि वर्ष 2030 तक रसायन उद्योग का आकार दोगुना हो जाएगा और मानवाधिकारों पर उसका ख़ासा असर होने की आशंका भी बढ़ेगी.
यूएन विशेषज्ञ ने कहा कि उत्पादन केंद्रों और रासायनिक उत्पादों का यथोचित परीक्षण बेहद आवश्यक है और इसे एक मानक के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए.
मालूम हो कि विशाखापट्टनम स्थित एलजी पालीमर्स संयंत्र में सात मई को हुए जहरीली स्टाइरीन गैस रिसाव से करीब 11 लोगों की मौत हो गई थी.
स्टाइरीन का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने में किया जाता है लेकिन इससे कैंसर बीमारी के अलावा स्नायु-तन्त्र और प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचने का भी खतरा होता है और ये प्रभाव अक्सर गैस के सम्पर्क में आने के कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं.
बता दें विशाखापट्टनम गैस लीक मामले की एफआईआर में कंपनी या किसी कर्मचारी का नाम दर्ज नहीं है. एफआईआर में बस इतना कहा गया है कि कारखाने से कुछ धुआं निकला, जिसकी गंध बहुत बुरी थी और इसी गंध ने लोगों की जान ले ली.
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुतारेस की ओर इस घटना को लेकर शोक संवेदना प्रकट की गई थी और उम्मीद जताई गई थी कि स्थानीय प्रशासन मामले की जांच करेंगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)