यूनिसेफ ने कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित बच्चों को मानवीय सहायता मुहैया कराने के लिए 1.6 अरब डॉलर की मदद मांगी है.
संयुक्त राष्ट्र: यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेंस फंड (यूनिसेफ) ने सचेत किया है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर हो जाने और नियमित सेवाएं बाधित हो जाने के कारण आगामी छह महीने में रोजाना करीब 6,000 अतिरिक्त बच्चों की ऐसे कारणों से मौत हो सकती है, जिन्हें रोका जा सकता है.
उसने कहा है कि पांचवां जन्मदिन मनाने से पहले विश्वभर में मारे जाने वाले बच्चों की संख्या में दशकों में पहली बार बढ़ोतरी होने की आशंका है.
यूनिसेफ ने इस वैश्विक महामारी से प्रभावित बच्चों को मानवीय सहायता मुहैया कराने के लिए 1.6 अरब डॉलर की मदद मांगी है.
The #COVID19 pandemic is a health crisis which is quickly becoming a child rights crisis.@UNICEF is appealing for US$1.6 billion to help us respond to the crisis, recover from its aftermath, and protect children from its consequences. https://t.co/2CscJOuQ4T
— Catherine Russell (@unicefchief) May 12, 2020
यूनिसेफ ने कहा कि यह कोरोना वायरस तेजी से बाल अधिकार संकट बनता जा रहा है और तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो पांच साल से कम उम्र के और 6,000 बच्चों की रोजाना मौत हो सकती है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोरे ने मंगलवार को कहा, ‘स्कूल बंद हैं, अभिभावकों के पास काम नहीं है और परिवार चिंतित हैं.’
उन्होंने कहा, ‘जब हम कोविड-19 के बाद की दुनिया की कल्पना कर रहे हैं, ऐसे में ये फंड संकट से निपटने और इसके प्रभाव से बच्चों की रक्षा करने में हमारी मदद करेंगे.’
रोके जा सकने जाने वाले कारणों से आगामी छह महीने में 6,000 और बच्चों की मौत का अनुमान अमेरिका स्थित ‘जॉन्स हॉप्किन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ के अनुसंधानकर्ताओं के विश्लेषण पर आधारित है. यह विश्लेषण बुधवार को ‘लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ.
यूनिसेफ के एक विश्लेषण के अनुसार दुनिया भर में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में 77 फ़ीसदी बच्चे उन 132 देशों में रह रहे हैं जहां कोरोना वायरस के कारण आवाजाही पर पाबंदियां हैं.
यूएन एजेंसी ने बताया कि गतिविधियों पर पाबंदी, स्कूल बंद होने और अलग-थलग पड़ जाने का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर हुआ है. इसके अलावा इससे नाज़ुक हालात में रह रहे युवाओं में तनाव का स्तर और बढ़ सकता है.
उन्होंने कहा कि आवाजाही पर पाबंदी और बिगड़ती सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था में रह रहे बच्चों का हिंसा व उपेक्षा का शिकार बनने की आशंका ज़्यादा है. साथ ही महिलाओं व लड़कियों के लिए यौन व लिंग आधारित हिंसा का जोखिम भी बढ़ गया है.
बता दें कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने कहा था कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनज़र नियमित टीकाकरण सहित अन्य ज़रूरी सेवाओं के अभाव में करोड़ों बच्चों के जीवन पर संकट खड़ा हो गया है.
बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ ने कोरोना वायरस महामारी के कारण बच्चों के टीकाकरण में पैदा हुए अवरोधों पर चिंता जताते हुए चेतावनी दी थी कि अगर दक्षिण एशिया में बच्चों को जीवनरक्षक टीके नहीं लगाए जाते तो क्षेत्र में एक और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति पैदा हो सकती है.
यूनिसेफ ने कहा था कि दुनियाभर में जितने बच्चों के टीके नहीं लग पाते या कम टीके लग पाते हैं, उनके करीब एक चौथाई यानी लगभग 45 लाख बच्चे दक्षिण एशिया में रहते हैं. इनमें से लगभग सभी या 97 प्रतिशत भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बाशिंदे हैं.
उससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण के कारण टीकाकरण अभियान सीमित कर देने से दुनियाभर में 11.7 करोड़ बच्चे खसरा (Measles) के खतरे का सामना कर रहे हैं.
यूनिसेफ ने कहा था कि वर्तमान में 24 देशों ने टीकाकरण का काम रोक दिया गया है. इसमें से कई देश खसरा के खतरे का पहले से सामना कर रहे हैं. इसके अलावा कोरोना वायरस के कारण 13 अन्य देशों में भी टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित हुआ है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)