मानवाधिकार आयोग ने सरकार से संलिप्त अधिकारियों के ख़िलाफ़ कदम उठाने के साथ एक महीने के अंदर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है.
बीते दिनों दौसा जिले में स्थानीय प्रशासन द्वारा बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले) कार्डधारकों को पीडीएस की सुविधा लेने के लिए अपने घर के बाहर ‘मैं गरीब परिवार से हूं तथा एनएफएसए यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन लेता हूं’ लिखवाने के निर्देश की ख़बर मीडिया में आई थी.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मीडिया में आई इन ख़बरों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इस पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रशासन द्वारा इस तरह के निर्देश देने को योजना के लाभार्थियों की गरिमा के ख़िलाफ़ बताया है. मीडिया में कुछ लाभार्थियों ने बताया भी था कि उन्हें इस निर्देश के पालन से शर्मिंदगी महसूस होती है.
मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी बयान में कहा गया है, ‘कोई भी सभ्य समाज सरकार के इस तरह के बेतुके और विवेकहीन कदम को स्वीकार नहीं करेगा.’
आयोग ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव से चार हफ़्तों में विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है, साथ ही इस निर्देश को देने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ क्या कदम लिए गए यह बताने का भी आदेश दिया है.
ज्ञात हो कि यह ख़बर मीडिया में आने के बाद दौसा के अतिरिक्त ज़िलाधिकारी केसी शर्मा का कहना था कि सरकार की तरफ से इस प्रकार का कोई भी निर्देश जारी नहीं किया गया है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि हो सकता है ये निर्देश ज़िला परिषद ने जारी किया हो क्योंकि पीडीएस सुविधा के दुरुपयोग के मामले में काफी शिकायतें पाई गई थीं.
हालांकि इसके बाद राजस्थान के पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र राठौर ने सफाई देते हुए कहा था कि भाजपा सरकार द्वारा ऐसे कोई आदेश नहीं दिए गए हैं. एनएफएसए का लाभ लेने के लिए इस तरह घर के बाहर ‘मैं गरीब हूं’ लिखवाने का चलन पिछली सरकार द्वारा 2009 में शुरू करवाया गया था. साथ ही इस मुद्दे का राजनीतिकरण करना ठीक नहीं है.