25 साल के हरीराम चौधरी द्वारका में रहकर मार्बल काटने का काम करते थे, जो दो महीने से ठप है. पांच दिन पहले अपनी मां की मौत की ख़बर पाने के बाद से वे घर जाने की उम्मीद लिए पैदल ही शहर भर की खाक़ छान रहे हैं.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन की वजह सभी यातायात सेवाएं रद्द हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी श्रमिक आवाजाही की प्रतिबंधों की वजह से कई कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं.
ऐसे ही पांच दिन पहले अपनी मां के मरने की सूचना मिलने के बाद घर लौटने की जद्दोजहद में जुटा 25 साल का युवक हरीराम चौधरी सरकार से मदद पाने की आशा में रविवार सुबह से पैदल ही यहां-वहां भटक रहा है.
रविवार सुबह से उसने चावल के मुरमुरे के अलावा कुछ नहीं खाया है और सोया भी सिर्फ दो घंटे के लिए है. चौधरी अपने छह अन्य साथियों के साथ दिल्ली के द्वारका सेक्टर आठ स्थित किराये के मकान से रविवार सुबह यह सोचकर चला कि वे सभी ट्रेनों से अपने-अपने घर लौट जाएंगे.
लेकिन 30 घंटे पैदल चलने के बावजूद अभी तक उन्हें कुछ सफलता हाथ नहीं लगी है. चौधरी ने बताया, ‘पांच दिन पहले मेरी मां की मृत्यु हुई है. मुझे नहीं पता कि क्या करना चाहिए. मैं नई दिल्ली स्टेशन गया था, जहां पुलिसवाले ने बताया कि सभी ट्रेनें रद्द हो गई हैं.’
उसने कहा, ‘फिर किसी ने हमें बताया कि सभी प्रवासी छतरपुर जा रहे हैं और वहीं पर निशुल्क ट्रेन यात्रा के लिए पंजीकरण हो रहा है.’ इस सूचना के मिलने पर चौधरी और उनके साथी पैदल छतरपुर पहुंचे.
चौधरी के 18 वर्षीय मित्र मनोहर कुमार ने बताया, ‘छतरपुर में पुलिसवालों ने हमें खदेड़ दिया… कहा कि हम जहां रहते थे, वहीं लौट जाएं. हमने अपना किराये का मकान छोड़ दिया है. मकान मालिक अब हमें वापस नहीं रखेगा.’
उसके बाद ये सभी साथ पैदल ही निजामुद्दीन पुल के पास पहुंचे जहां कम से कम उनके सिर पर छांव तो है. चौधरी और उनके सभी साथी द्वारका में मार्बल काटने और पॉलिश करने की इकाई में काम करते थे, जहां एक दिन में उनकी कमाई 200 से 500 रुपये तक थी.
चौधरी ने कहा, ‘काम नहीं है. पिछले दो महीने में हमने एक नया पैसा नहीं कमाया है. हमारे मालिक ने कहा कि कोई नहीं जानता यह (लॉकडाउन) कब खत्म होगा. उन्होंने हम सभी से घर लौटने को कहा.’
उसने बताया कि द्वारका के एक किराना दुकान का उस पर 6,000 रुपये बकाया है. एक पॉलिथीन से चावल के मुरमुरे खाते हुए चौधरी ने कहा, ‘मैंने उससे (किराना दुकानदार) वादा किया है कि हालात सुधरने के बाद वापस आकर मैं उधारी चुका दूंगा.’
वहीं कुछ मीटर की दूरी पर अपने तीन बच्चों को भात खिला रही 24 वर्षीय रोहिणी का कहना है कि वे लोग पुलिस से बचने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने बताया, ‘मेरे पति अशोक नगर में रंगाई-पुताई का काम करते हैं. लॉकडाउन के बाद से उनके पास काम नहीं है. रविवार को हम उत्तर प्रदेश में बदायूं स्थित अपने गांव जाने के लिए निकले और गाजीपुर सीमा पर पहुंचे.’
उसने दावा किया, ‘वहां जमा सैकड़ों लोगों में हम भी थे. उन्होंने (पुलिसकर्मी) हमें यह कहकर बस में बैठा दिया कि वह हमें आश्रय गृह तक ले जाएगी. लेकिन बस ने हमें इंडिया गेट के पास उतार दिया. हमारी ही तरह और कई लोगों को सड़कों पर उतर जाने को कहा गया.’
पास आ रहे पुलिसवाले से बचने की कोशिश करते हुए रोहिणी ने बताया कि एक टेम्पो चालक ने उसे और उसके परिवार को लिफ्ट दी थी, लेकिन पुलिस को देखते ही उन्हें पुल के पास उतार दिया.
अपनी छह महीने की बच्ची को गोद में लिए रोहिणी ने कहा, ‘वे हमारे साथ कचरे की तरह व्यवहार करते हैं. उनके लिए हम जैसे इंसान हैं ही नहीं.’