भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य सतीश मराठे ने कहा कि आरबीआई द्वारा कर्ज चुकाने से तीन महीने के लिए दी गई मोहलत पर्याप्त नहीं है.
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के केंद्रीय बोर्ड के एक सदस्य ने बुधवार को कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित राहत पैकेज आर्थिक सुधार की प्रक्रिया में बैंकों को शामिल करने में विफल रहा है.
आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड के सदस्य सतीश मराठे ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘राहत पैकेज कल्पनाशील और भविष्य की ओर देखने वाला है, हालांकि ये आर्थिक सुधार में बैंकों को अग्रणी भूमिका के साथ शामिल करने में विफल रहा.’
सीतारमण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अर्थव्यवस्था की मदद के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बाद कई उपायों की घोषणा की थी.
मराठे ने रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के शोध विश्लेषकों के एक नजरिए को साझा किया, जिसमें इस पैकेज से मिलने वाले तात्कालिक फायदों के बारे में संदेह जताया गया है.
मराठे ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कर्ज चुकाने से तीन महीने के लिए दी गई मोहलत पर्याप्त नहीं है.
उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र के हितों के लिए कुछ सुझाव भी दिए, जिसमें एनपीए और प्रावधान में छूट शामिल है.
मराठे ने कहा कि इन सभी बातों को प्रोत्साहन पैकेज में शामिल करना चाहिए, ताकि भारत को एक बार फिर विकास पथ पर लाया जा सके.
मराठे सहकारी बैंकिंग के साथ करीब से जुड़े रहे हैं.
The stimulus is both Imaginative & Forward-looking. Yt Fails to involve #Banks as Frontline Warriors in Revival of #Economy. 3months moratorium NOT Enough, Relaxations of #NPA , Provisioning etc norms need to be part of Stimulus fr putting India once again on Growth Trajectory! https://t.co/waDGjMMzkR
— Satish Marathe (@Satish_Marathe1) May 20, 2020
उल्लेखनीय है कि उद्योग संगठन भी आरबीआई से ऋण स्थगन, एनपीए और प्रावधान जैसे पहलुओं पर छूट देने की मांग कर रहे हैं.
अनुमानों के मुताबिक प्रोत्साहन पैकेज का राजकोषीय प्रभाव जीडीपी के मुकाबले 1-2 प्रतिशत तक हो सकता है, जबकि मोदी ने कहा था कि ये पैकेज जीडीपी के मुकाबले 10 प्रतिशत तक होगा. हालांकि, विश्लेषकों ने कहा है कि इन घोषणाओं और खासतौर से सुधारों का लंबे समय में अच्छा सकारात्मक असर होगा.
हालांकि, राहत पैकेज के तहत सरकार का वास्तविक खर्च जीडीपी का एक फीसदी से थोड़ा ज्यादा होने के आकलनों पर वित्त मंत्री ने एक इंटरव्यू में कहा कि वे इनमें से किसी विश्लेषण पर सवाल नहीं उठा रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘यदि सवाल ये है कि वित्तीय घाटा कितना होगा या क्या आप अपने पूरे बजट से केवल इतना ही खर्च कर सकती थीं? आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं किसी की आलोचना नहीं कर रही हूं या किसी पर सवाल नहीं उठा रही हूं या किसी के आकलन पर आपत्ति नहीं जता रही हूं, आप कीजिए ये सब. मैंने बहुत सारे सुझाव सुने हैं, और मैंने यह पहले भी कहा है.’
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि वे सभी तरह के विचारों को सुनने के लिए तैयार हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वे नए कदम उठाने में हिचकिचाएंगी नहीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)