मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों पर मलेरिया रोधी क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाओं का इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल्स के अलावा नहीं किया जाना चाहिए. इससे हृदय संबंधी परेशानियों के साथ मौत का खतरा भी बढ़ जाता है.
नई दिल्ली: मलेरिया रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) के कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल को लेकर जारी बहस के बीच एक हालिया अध्ययन में क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग और अस्पताल में भर्ती कोविड-19 मरीजों के बीच बढ़ती मौतों व हृदय संबंधी परेशानियों के बीच संबंध पाए गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, बीते शुक्रवार मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित इस अध्ययन के लेखकों का कहना है कि कोविड-19 के इलाज में इन दवाओं का इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल्स के अलावा नहीं किया जाना चाहिए.
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ज्यूरिख में हार्ट सेंटर के निदेशक और अध्ययन के सह लेखक प्रोफेसर फ्रैंक रुसचित्जका ने कहा कि मलेरिया रोधी दवा क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से कोविड-19 के मरीजों को कोई लाभ नहीं मिलता है, चाहे वे इसका इस्तेमाल एंटीबायोटिक्स एज़िथ्रोमाइसिन या क्लियरिथ्रोमाइसिन के साथ करें या न करें.
डॉ. फ्रैंक ने कहा, ‘यह अब तक सबसे लंबे समय तक किया गया अवलोकन अध्ययन है. कोविड-19 रोगियों के इलाज में इस दवा के इस्तेमाल से नुकसान होता दिख रहा है और मैं बहुत चिंतित हूं.’
वे आगे कहते हैं, ‘यह मलेरिया के इलाज के लिए उचित रूप से सुरक्षित है. लेकिन कोविड रोगियों के लिए इस दवा का कोई लाभ नहीं है. हमने दुनिया भर के रोगियों का अध्ययन किया है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि भारतीय रोगियों पर इसका कोई अलग असर होगा.’
लैंसेट अध्ययन ने कोविड-19 के लगभग 15,000 रोगियों के डेटा का विश्लेषण किया.
NEW Research—No evidence of benefit for #chloroquine and #hydroxychloroquine in #COVID19 patients, urgent randomised trials are needed: finding from a large observational study of nearly 15,000 patients with #COVID19 & 81,000 controls https://t.co/P4YbYVhRDZ
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— The Lancet (@TheLancet) May 22, 2020
डॉ. फ्रैंक ने कहा, ‘कई देशों ने कोविड -19 के संभावित उपचार के रूप में अकेले या किसी अन्य दवा के साथ क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग की वकालत की है. इस तरह से इन दवाओं के दोबारा इस्तेमाल को जायज ठहराना उन छोटे पैमाने के अनुभवों पर आधारित है जो सुझाव देते हैं कि यह सार्स-कोविड-2 वायरस से प्रभावित लोगों पर लाभकारी प्रभाव डाल सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘पिछले छोटे पैमाने के अध्ययन ऐसे लाभकारी सबूतों की पहचान करने में विफल रहे हैं, जबकि बड़े पैमाने के ट्रायल्स अभी पूरे नहीं हुए हैं. हालांकि, अब हम अपने अध्ययन से जानते हैं कि कोविड-19 के इलाज में इन दवाओं के इस्तेमाल पर परिणामों में सुधार की संभावना काफी कम है.’
बोस्टन में अध्ययन के प्रमुख लेखक और ब्रिघम एंड वीमेन्स हॉस्पिटल सेंटर फॉर एडवांस हार्ट डिजीज़ के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मनदीप आर. मेहरा ने कहा कि यह पहला बड़े पैमाने पर अध्ययन है जो क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से कोविड -19 वाले रोगियों को लाभ नहीं पहुंचाने को साबित करता है. हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि इससे हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ने का साथ मौत का खतरा भी बढ़ सकता है.
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया की एक पुरानी और सस्ती दवाई है और इसे कोविड-19 के इलाज के लिए एक व्यावहारिक उपचार माना जा रहा है.
इससे पहले कई ऐसे रिपोर्ट सामने आ चुके हैं जिनमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को कोविड-19 के मरीजों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने की बात की गई थी.
एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग से कोई फायदा नहीं मिल रहा है और बड़ी संख्या में उन लोगों की मौत होने की खबर है, जिन्हें यह मलेरिया-रोधी दवा दी गई थी.’
एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि घातक कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के इलाज के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग की सिफारिश या विरोध करने के लिए अभी पर्याप्त क्लीनिकल डेटा मौजूद नही है.
बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के एक निरंतर और मुखर समर्थक हैं और इस दवा को लेकर किए गए उनके दावों के बाद ही इसकी मांग में तेजी आई.
पिछले महीने डोनाल्ड ट्रंप ने मलेरिया रोधी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा न देने पर भारत को कड़े परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी. इसके कुछ घंटों बाद ही भारत ने कुछ देशों को उचित मात्रा में पैरासिटामोल और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात को अस्थायी तौर पर मंजूरी दे दी थी.
ट्रंप प्रशासन ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की तीन करोड़ से अधिक खुराक का भंडार किया है, जिसका एक बड़ा हिस्सा भारत से आयात किया गया है.
हालांकि इसके बाद अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के दुष्प्रभावों के बारे में चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि इसके दुष्प्रभावों में हृदयगति से जुड़ी गंभीर एवं जानलेवा समस्या हो सकती है.
एफडीए ने कहा था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं का इस्तेमाल केवल अस्पतालों या क्लिनिकल परीक्षणों में किया जाना चाहिए क्योंकि इनके गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं.
हालांकि, ट्रंप ने इस सप्ताह न केवल इन अध्यननों को नकार दिया बल्कि बिना सबूतों के यह भी कह दिया कि ये अध्ययन करने वाले लोग राजनीति से प्रेरित हैं और कोरोना वायरस पाबंदियों को खत्म करने के उनके प्रयासों पर पानी फेरना चाहते हैं.
इस दौरान एक खुलासा करते हुए ट्रंप ने बताया कि वह खुद कोरोना वायरस से बचने के लिए इस दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, ट्रंप अकेले ऐसे राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं जो हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को बिना किसी वैज्ञानिक पुष्टि के बढ़ावा दे रहे हैं.
ट्रंप के बेहद करीबी और ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसानारो इस दवा के 30 लाख टैबलेट बटवा चुके हैं और उनकी सरकार का कहना है कि वे डॉक्टरों से सिफारिश करेंगे कि शुरुआती लक्षणों की पहचान होते ही इस दवा को देना शुरू कर दें.
हालांकि शुरू में वे राज्य सरकारों और स्वास्थ्य प्रशासन के सुझावों के विपरित कोरोना वायरस के खतरे को नकारते रहे थे. अब ब्राजील स्पेन और इटली को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे अधिक संक्रमित मामलों वाले देश में से एक बन गया है.
कोरोना वायरस महामारी शुरू होने के बाद से बोलसानारो ने मतभेदों के कारण एक स्वास्थ्य मंत्री को खुद हटा दिया था जबकि दूसरे से इस्तीफा दे दिया था. दोनों स्वास्थ्य मंत्री उनकी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन योजना का विरोध कर रहे थे.
इस बीच, बीते शुक्रवार को भारत ने कोविड-19 अस्पतालों में काम कर रहे बिना लक्षण वाले स्वास्थ्य सेवाकर्मियों, निरुद्ध क्षेत्रों (कंटेनमेंट जोन) में निगरानी ड्यूटी पर तैनात कर्मियों और कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने संबंधी गतिविधियों में शामिल अर्द्धसैन्य बलों/पुलिसकर्मियों को रोग निरोधक दवा के तौर पर हाइडॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है.
इससे पहले जारी परामर्श में किए उल्लेख के अनुसार, कोविड-19 को फैलने से रोकने एवं इसका इलाज करने में शामिल बिना लक्षण वाले सभी स्वास्थ्य सेवाकर्मियों और संक्रमित लोगों के घरों में संपर्क में आए लोगों में संक्रमण के खिलाफ इस दवा का इस्तेमाल करने की भी सिफारिश की गई है.
हालांकि, आईसीएमआर द्वारा जारी संशोधित परामर्श में आगाह किया गया है कि दवा लेने वाले व्यक्ति को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह एकदम सुरक्षित हो गया है. संशोधित परामर्श के अनुसार एनआईवी पुणे में एचसीक्यू की जांच में यह पाया गया कि इससे संक्रमण की दर कम होती है.
इसमें कहा गया है कि यह दवा उन लोगों को नहीं देनी चाहिए, जो नजर कमजोर करने वाली रेटिना संबंधी बीमारी से ग्रस्त है, एचसीक्यू को लेकर अति संवेदनशीलता है तथा जिन्हें दिल की धड़कनों के घटने-बढ़ने की बीमारी है.
परामर्श में कहा गया है कि इस दवा को 15 साल से कम आयु के बच्चों तथा गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली महिलाओं को न देने की सिफारिश की जाती है. इसमें कहा गया है कि यह दवा औपचारिक सहमति के साथ किसी डॉक्टर की निगरानी में दी जाए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)