लॉकडाउन: त्रिपुरा सरकार ने चार लाख से ज़्यादा बच्चों को मिड-डे मील का खाद्यान्न तक नहीं दिया

कोरोना वायरस महामारी के कारण स्कूल बंद होने की अवधि में त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, जो कि सिर्फ़ खाना पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

कोरोना वायरस महामारी के कारण स्कूल बंद होने की अवधि में त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, जो कि सिर्फ़ खाना पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की एक बहुत बड़ी आबादी को गंभीर खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना वायरस महामारी के समय ये स्थिति और चिंताजनक हो जाती है क्योंकि उचित मात्रा में भोजन न मिल पाने के कारण लोगों के रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट आएगी, जिसके कारण संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है. इस वायरस से सबसे ज्यादा खतरा बच्चों और बुजुर्गों को है.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों से कहा था कि कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के बावजूद सभी बच्चों को मिड-डे मील मुहैया कराई जाए.

हालांकि राज्य सरकारों द्वारा इस आदेश को उचित तरीके से लागू किया जा रहा है, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है. स्थिति ये है कि त्रिपुरा में बिप्लब कुमार देब के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कोरोना महामारी के कारण बंद हुए स्कूलों के दौरान किसी भी बच्चे को खाद्यान्न नहीं दिया.

इसके बदले में सरकार ने बच्चों या उनके परिजनों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर की है, जो कि मिड-डे मील योजना के तहत खाना पकाने के लिए निर्धारित धनराशि से भी कम है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों के जरिये ये जानकारी सामने आई है.

त्रिपुरा प्राथमिक शिक्षा विभाग के निदेशक साजु वहीद ए. ने छह अप्रैल 2020 को राज्य के सभी स्कूल-निरीक्षकों (इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल) को पत्र लिखकर मिड-डे मील के तहत खाद्यान्न और खाना पकाने की राशि के लिए निदेशालय स्तर पर निर्धारित की गई धनराशि को सभी छात्रों या उनके माता-पिता के खाते में ट्रांसफर करने के लिए कहा था.

खास बात ये है कि राज्य सरकार ने छात्रों के लिए जो धनराशि निर्धारित की है वो खाना पकाने की राशि से भी कम है.

वहीद के पत्र के मुताबिक, त्रिपुरा सरकार ने 17 मार्च से 17 अप्रैल 2020 (30 दिन) के लिए प्राथमिक स्तर (एक से पांचवीं क्लास) वाले छात्रों के खाते में प्रतिदिन पांच रुपये के हिसाब से 150 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर (छठवीं से आठवीं क्लास) वाले छात्रों के खाते में प्रतिदिन सात रुपये के हिसाब से 210 रुपये ट्रांसफर करने को कहा था.

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कोरोना के कारण स्कूल बंद होने के दौरान मिड-डे मील मुहैया कराने के संबंध में त्रिपुरा सरकार का पत्र.

इस राशि में खाद्यान्न और खाना पकाने का मूल्य दोनों शामिल हैं. शिक्षा विभाग के निदेशक ने कहा है, ‘आपसे गुजारिश है कि 30 दिन के लिए खाना पकाने की राशि, खाद्यान्न इत्यादि के बराबर की धनराशि, जैसा कि मिड-डे मील योजना के तहत प्राथमिक और उच्च प्राथमिक के लिए निर्धारित किया गया है, को छात्रों/माता-पिता के खाते में ट्रांसफर करने से संबंध में जरूरी कार्रवाई करें.’

इसके लिए राज्य सरकार ने 7.48 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की.

हालांकि एक अप्रैल 2020 से लागू किए गए नए नियमों के मुताबिक सिर्फ भोजन पकाने के लिए प्राथमिक स्तर पर 4.97 रुपये और उच्च स्तर पर 7.45 रुपये की धनराशि प्रति छात्र प्रतिदिन उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिसमें दाल, सब्जी, तेल, नमक ईंधन आदि का मूल्य शामिल है.

इसके अलावा भारत सरकार के मानक के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर 100 ग्राम एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 150 ग्राम खाद्यान्न प्रति छात्र प्रतिदिन के हिसाब से उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

इस तरह उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि त्रिपुरा सरकार ने खाद्यान्न तो छोड़ ही दें, भोजन पकाने के लिए भी पूरी राशि तक नहीं दी है. राज्य सरकार इसी राशि को ‘खाद्य सुरक्षा भत्ता’ का नाम दे रही है, जबकि मिड-डे मील योजना के मुताबिक खाद्य सुरक्षा भत्ता में ‘खाद्यान्न’ और ‘खाना पकाने की राशि’ दोनों को शामिल करना होता है.

दस्तावेजों के मुताबिक राज्य के आठ जिलों में प्राथमिक स्तर पर 266,326 बच्चों और उच्च प्राथमिक स्तर पर 165,953 बच्चों के नाम दर्ज हैं. इस तरह राज्य के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में कुल 432,279 बच्चे हैं, जिन्हें मिड-डे मील योजना का लाभ दिया जाना चाहिए.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने 20 मार्च 2020 को सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा था कि कोविड-19 संकट के कारण स्कूलों के बंद होने के दौरान भी सभी बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत पका हुआ भोजना या खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाना चाहिए.

संयुक्त सचिव आरसी मीणा द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और समग्र शिक्षा के तहत सहयोग प्राप्त स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर, मदरसा तथा मकतबा में मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सामग्री दी जाए.

मिड-डे मील नियम, 2015 की धारा नौ के मुताबिक यदि किसी स्कूल में किसी भी दिन खाद्यान्न या भोजन पकाने की राशि या ईंधन न होने या रसोइयां के उपलब्ध न होने के चलते बच्चों को पका हुआ भोजन नहीं दिया जाता है तो इसके बदले में राज्य सरकार को ‘खाद्य सुरक्षा भत्ता’ देना होता है, जिसमें खाद्यान्न और भोजन पकाने की राशि शामिल होता है.

पहले पत्र में दिए गए आदेशों को लागू करने की समय सीमा पूरी होने के बाद शिक्षा विभाग के निदेशक साजु वहीद ए. ने 22 मई 2020 को सभी स्कूल निरीक्षकों को फिर एक पत्र लिखा और 17 अप्रैल से 31 मई 2020 (45 दिन) तक के लिए मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में पैसे डालने को कहा.

हालांकि इस पत्र में भी राज्य सरकार ने अपना पुराना गणित बरकरार रखा. शिक्षा निदेशक ने प्राथमिक स्तर के छात्रों को पांच रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 225 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों को सात रुपये प्रतिदिन के हिसाब से 315 रुपये देने के लिए कहा, जो कि भोजन पकाने की राशि से भी कम है.

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राज्य सरकार ने छात्रों के लिए जो धनराशि निर्धारित की है वो खाना पकाने की राशि से भी कम है.

त्रिपुरा सरकार ने इस अवधि के लिए 11.21 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया और राज्य के शिक्षा निरीक्षकों से कहा गया कि उनके पास जो बकाया बजट पड़ा हुआ है, उसी में से बच्चों के खाते में पैसे डालें.

पूर्वोत्तर राज्य होने के कारण केंद्र सरकार खाना पकाने की राशि का 90 फीसदी हिस्सा देती है और राज्य सरकार को 10 फीसदी ही खर्च करना पड़ता है. केंद्र की ओर से सभी राज्यों को खाद्यान्न मुफ्त में मुहैया कराया जाता है.

केंद्र ने मिड-डे मील योजना के तहत 27 अप्रैल 2020 को त्रिपुरा राज्य के लिए 13.85 करोड़ रुपये की विशेष केंद्रीय सहायता जारी किया था, जिसमें खाना पकाने के लिए 9.81 करोड़ रुपये और खाद्यान्न के लिए 73.10 लाख रुपये की शामिल थी.

द वायर  ने त्रिपुरा के प्राथमिक शिक्षा विभाग के निदेशक और शिक्षा विभाग की सचिव को इस संबंध में सवालों की सूची भेजी है. यदि कोई जवाब आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.

पिछले महीने 28 अप्रैल 2020 केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्यों के साथ मिलकर फैसला लिया है कि गर्मी के छुट्टियों के समय में भी बच्चों को मिड-डे मील या खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाएगा, ताकि कोरोना महामारी के समय बेहद जरूरी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा किया जा सके.

द वायर  ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है. राज्य ने इस दौरान 66 कार्य दिवसों में से 48 कार्य दिवसों पर ही बच्चों को राशन दिया.

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द वायर द्वारा स्टोरी प्रकाशित किए जाने के बाद त्रिपुरा सरकार ने ट्विटर पर दावा किया कि ये खबर तथ्यहीन और भ्रामक है. जबकि स्टोरी प्रकाशित करने से पहले राज्य सरकार को ई-मेल भेजकर इस पर स्पष्टीकरण मांगा गया था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के ओएसडी संजय मिश्रा ने तीन जून को ट्वीट कर लिखा, ‘वायर का यह लिखना कि ‘त्रिपुरा के स्कूलों में छात्रों को लॉकडाउन के दौरान मिड डे मील नहीं दिया गया’ पूर्ण रूप से भ्रामक तथ्यहीन है. एमएचआरडी गाइडलाइन के अनुसार कोविड-19 संक्रमण ध्यान रखते हुए पके खाने के बदले एकमुश्त राशि दो फेज में बच्चों और पेरेंट्स के खातों में जमा की जा चुकी है.’

हालांकि मिश्रा ने यहां पर पूरी बात नहीं बताई. एमएचआरडी ने राज्यों को गाइडलाइन जारी कर खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) देने को कहा था, जिसमें ‘खाद्यान्न’ (गेहूं या चावल) और ‘खाना पकाने की राशि’ दोनों को शामिल करना होता है.

द वायर ने अपनी स्टोरी में पहले ही कहा है कि राज्य सरकार ने मिड-डे मील के बदले में छात्रों या उनके माता पिता के खाते में कुछ पैसे भेजे हैं, लेकिन ये राशि खाना पकाने की राशि से कम है.

त्रिपुरा सरकार ने 17 मार्च से लेकर 15 अप्रैल और 17 अप्रैल से लेकर 31 मई तक के लिए दो फेज में प्राथमिक स्तर (एक से पांचवीं क्लास) वाले छात्रों के खाते में प्रतिदिन पांच रुपये के हिसाब से 150 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर (छठवीं से आठवीं क्लास) वाले छात्रों के खाते में प्रतिदिन सात रुपये के हिसाब से 210 रुपये ट्रांसफर करने को कहा था.

केंद्र सरकार द्वारा एक अप्रैल से लागू किए गए नए नियम के मुताबिक भोजन पकाने कि राशि प्राथमिक स्तर पर प्रतिदिन 4.97 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर पर 7.45 रुपये है. इसमें दाल, सब्जी, तेल, नमक ईंधन आदि का मूल्य शामिल होता है.

इस तरह यहां यह स्पष्ट है कि एक अप्रैल से 31 मई के बीच राज्य सरकार ने मिड-डे मील के एवज में उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों को जो राशि भेजी है, वो खाना पकाने की राशि से भी कम है. इसके अलावा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों स्तर के छात्रों को खाद्यान नहीं दिया गया और न ही जो राशि दी गई है उसमें खाद्यान मूल्य शामिल है.

एक अप्रैल, 2020 से पहले भोजन पकाने की राशि प्राथमिक स्तर पर 4.48 रुपये और उच्च स्तर पर 6.71 रुपये निर्धारित थी.

इस तरह राज्य सरकार ने 17 मार्च से 31 मार्च (14 दिन) के लिए छात्रों के खाते में बेशक खाना पकाने की राशि से थोड़ी ज्यादा राशि, जो कि सिर्फ 0.52 रुपये और 0.29 रुपये है, भेजी है. लेकिन ये अतिरिक्त राशि किसी भी सूरत में खाद्यान मूल्य की पूर्ति नहीं कर सकती है.

मिड-डे मील नियम के मुताबिक प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र प्रतिदिन 100 ग्राम एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र प्रतिदिन 150 ग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाना चाहिए. इस तरह प्राथमिक स्तर के एक छात्र को एक महीने में तीन किलो और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्र को एक महीने में 4.5 किलो अनाज उपलब्ध कराया जाना चाहिए.

त्रिपुरा सरकार ने सिर्फ 14 दिनों के लिए जो 0.52 रुपये और 0.29 रुपये की अतिरिक्त राशि दी है, उससे ये खाद्यान नहीं खरीदे जा सकते क्योंकि बाजार मूल्य ज्यादा है.

द वायर ने त्रिपुरा के प्राथमिक शिक्षा विभाग के निदेशक और शिक्षा विभाग की सचिव को ई-मेल भेजकर मिड-डे मेल के एवज में छात्रों को दी गई राशि का विवरण (ब्रेक-अप) मांगा था लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया और न ही राज्य सरकार द्वारा स्कूल निरीक्षकों को लिखे गए पत्र में इसका विवरण दिया गया है कि उन्होंने किस आधार पर आकलन कर ये राशि निर्धारित की है.

इस संवाददाता ने संजय मिश्रा को जवाब देते हुए ट्वीट करने उनसे भी इसी संबंध में जानकारी मांगी, लेकिन उन्होंने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है. इसके अलावा राज्य सरकार ने अभी तक ये भी नहीं बताया है कि जो भी राशि निर्धारित की गई है, कुल कितने छात्रों या माता-पिता के खाते में ये राशि भेजी गई है.