कोरोना वायरस: मुंबई की 80 से अधिक नर्सों को बिना सामान लिए छोड़ना पड़ा घर

मुंबई के भाटिया हॉस्पिटल की 82 नर्सों को न सिर्फ उनका घर छोड़ने पर मजबूर किया गया बल्कि उन्हें फ्लैट से उनका सामान भी नहीं लेने दिया गया क्योंकि पड़ोसियों और सोसाइटी के लोगों को डर लगने लगा था कि वे कोरोना वायरस का संक्रमण फैला सकती हैं.

(फोटो: पीटीआई)

मुंबई के भाटिया हॉस्पिटल की 82 नर्सों को न सिर्फ उनका घर छोड़ने पर मजबूर किया गया बल्कि उन्हें फ्लैट से उनका सामान भी नहीं लेने दिया गया क्योंकि पड़ोसियों और सोसाइटी के लोगों को डर लगने लगा था कि वे कोरोना वायरस का संक्रमण फैला सकती हैं.

Ranchi: Health workers wearing PPE kits on their way to screen the residents of Hindpiri area to detect COVID-19 cases, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Ranchi, Wednesday, May 27, 2020. (PTI Photo)(PTI27-05-2020 000062B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

मुंबई: पिछले कुछ दिनों में मुंबई के भाटिया हॉस्पिटल की 82 नर्सों को सिर्फ इसलिए अपना घर छोड़ना पड़ा क्योंकि पड़ोसियों और सोसाइटी के लोगों को डर लगने लगा था कि वे कोरोवा वायरस का संक्रमण फैला सकती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, विभिन्न रिहायशी बिल्डिंगों में रहने वाली इन नर्सों को न सिर्फ उनका घर छोड़ने पर मजबूर किया गया बल्कि उन्हें फ्लैट से उनका सामान भी नहीं लेने दिया गया.

मुंबई के ग्रांट रोड पर स्थित आठ रिहायशी बिल्डिंगों में रहने वाली इन नर्सों से कहा गया कि अगर वे काम पर जाती हैं तो उन्हें सोसाइटी में  प्रवेश करने नहीं दिया जाएगा.

इसके बाद भाटिया अस्पताल ने अपने छह फ्लोर के वार्ड में कुछ नर्सों के रहने की व्यवस्था की जबकि अन्य के लिए होटल या आसपास की बिल्डिंगों में रहने की व्यवस्था की गई.

केरल की रहने वाली 23 वर्षीय रीनू एलिजाबेथ कोशी तीन महीने पहले भाटिया अस्पताल में काम करने के लिए मुंबई आई थीं. एक महीने पहले पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद उन्हें फ्लैट छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.

उन्होंने कहा, ‘मैं जब भी काम से लौटती थी तब वे गेट बंद कर देते थे. हमें विनती करने पर अंदर जाने दिया जाता था. एक दिन सोसाइटी ने मुझसे मेरा पहचान पत्र मांगा और फिर उसे फर्जी बताते हुए प्रवेश देने से इनकार कर दिया.’

इसी तरह नर्स ऐश्वर्या को भी 20 दिन पहले दूसरी जगह जाना पड़ा, क्योंकि वह जहां रहती थीं, वहां प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया था.

उन्होंने कहा, ‘हम पूरी सावधानी रखते हैं, नहाते हैं और घर लौटने से पहले कपड़े बदलते हैं. पहले तो कूड़े वाले को मेरा कूड़ा उठाने से रोका गया और फिर लिफ्ट इस्तेमाल करने से रोक दिया गया.’

उन्होंने कहा, ‘मैं सब कुछ फ्लैट में छोड़ दिया है. अब जब मैंने अपना सामान लेने की कोशिश की तब सोसाइटी ने मना कर दिया. वास्तव में स्वास्थ्यकर्मियों के लिए कोई सम्मान नहीं है.’

अस्पताल का काम देखने वाली स्वीटी मैंडट ने कहा, ‘लोगों की सेवा करने के लिए हमने भी अपना घर छोड़ा है. हम भी अपनी जिंदगी जोखिम में डाल रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि स्थानीय निवासियों का गुस्सा शांत होने तक अस्पताल ने नर्सों को कुछ दिनों के लिए अस्पताल परिसर और होटलों में रखने का फैसला किया है. अस्पताल में होटल में एक महीने के लिए 10 कमरे लिए हैं जिस पर रोज का खर्च 33 हजार रुपये आ रहा है.

मैंडट ने कहा, ‘कुछ दिन पहले हमने सभी सोसाइटी को नर्सों को प्रवेश देने के लिए पत्र लिखना शुरू किया. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. हमने उनका सामान निकालने की अनुमति देने का भी अनुरोध किया, लेकिन उसके लिए भी उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने कहा कि बिल्डिंग में घुसने से पहले नर्सों को कोरोना निगेटिव की रिपोर्ट लानी पड़ेगी.’

इस समस्या के समाधान के लिए अस्पताल ने डी-वार्ड अधिकारी और तारदेव पुलिस से भी संपर्क किया.

अतिरिक्त नगर आयुक्त सुरेश ककनी के अनुसार, कई निजी अस्पतालों ने अपने स्टाफ के रहने की व्यवस्था के लिए चिंता जताई क्योंकि वे ज्यादा दूर तक यात्रा नहीं कर सकते या अपनी सोसाइटी में परेशानियों का सामना कर रहे हैं. हमने आश्वासन दिया है कि करीबी इलाकों में रहने की व्यवस्था की जाएगी.

अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. आरबी दस्तूर ने कहा कि कम से कम आठ नर्सों ने काम छोड़ दिया है. उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे माहौल में काम करने में दिक्कत हो रही है.