गुजरात: कोविड मृतकों के परिजनों ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल पर लगाया लापरवाही का आरोप

अहमदाबाद सिविल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है. हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया था.

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(फोटो साभार: फेसबुक/Pinkalpesh N.)

अहमदाबाद सिविल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है. हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया था.

(फोटो साभार: फेसबुक/Pinkalpesh N.)
(फोटो साभार: फेसबुक/Pinkalpesh N.)

अहमदाबाद: अहमदाबाद सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ने वाले कई मरीजों के रिश्तेदारों ने आरोप लगाया है कि डॉक्टरों और नर्सों की लापरवाही और उदासीनता की वजह से उनके परिजन की जान गई है.

ये आरोप ऐसे समय में सामने आए हैं जब गुजरात उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस संकट के बीच इस अस्पताल के कामकाज के तरीकों की आलोचना की है. हाईकोर्ट ने विजय रूपाणी के नेतृत्व वाली भाजपा राज्य सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए सिविल अस्पताल को कालकोठरी से भी बदतर बताया था.

अहमदाबाद में स्थित इस अस्पताल को एशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है. यहां सैकड़ों डॉक्टर और नर्स काम करते हैं.

एक व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि डॉक्टरों ने उसकी 81 वर्षीय दादी को जिंदा रखने के लिए उनसे पाइप को हाथ से दबाकर हवा भरते रहने को कहा था. 27 मई को ऐसा करने के कुछ देर बाद ही बुजुर्ग की मौत हो गई.

हार्दिक वलेरा ने दावा किया कि डॉक्टरों ने उसकी दादी की कोविड-19 जांच करने की जहमत भी नहीं उठाई गई.

उन्होंने कहा, ‘हमारा घर दानीलिमिडा क्षेत्र में स्थित है जो कि निषिद्ध क्षेत्र में आता है. हम 26 मई रात में दादी को सिविल अस्पताल ले कर गए थे, क्योंकि उन्हे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘बुजुर्ग को पहले अस्पताल के भूतल पर रखा गया लेकिन मध्यरात्रि में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. लेकिन लगातार मेरे आग्रह के बाद भी डॉक्टरों ने कोविड -19 जांच के लिए उनका नमूना नहीं लिया.’

वलेरा के अनुसार, बुजुर्ग को जब तीसरी मंजिल के किसी अन्य वार्ड में 27 मई की सुबह में भेजा जा रहा था तो ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने उन्हें एक थैला पकड़ाया और हाथ से तब तक हवा भरते रहने को कहा जब तक कि उन्हें वार्ड पर पहुंचने पर वेंटिलेटर पर न रख दिया जाए.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘जब मैंने कहा कि यह काम किसी पेशेवर का है और अस्पताल के ही किसी व्यक्ति को करना चाहिए तो किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. कुछ ने तो इसके लिए मेरा मजाक भी उड़ाया.’

उन्होंने कहा, ‘इस दौरान मैंने देखा कि हवा शुद्ध करने वाला फिल्टर फट गया है और मैंने इसके बारे में बताया, लेकिन किसी ने भी मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया. अंततः जब हम तीसरी मंजिल के वार्ड पर पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और बचाने की कोई कोशिश भी नहीं की.’

वहीं वलेरा के आरोप के बारे में जब अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर एमएम प्रभाकर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं है कि ऐसा कुछ अस्पताल में हुआ है.

एक अन्य घटना में भी कोरोना वायरस मरीज के एक रिश्तेदार ने एक वीडियो जारी किया है कि सिविल अस्पताल के कोविड-19 डॉक्टरों ने उनकी मां को वेंटिलेटर पर रखने से पहले उन्हें जानकारी नहीं दी थी. इस महिला की मौत 24 मई को हो गई.

इस वीडियो में एक व्यक्ति को एक डॉक्टर से बात करते हुए सुना जा सकता है, ‘मुझे जानकारी क्यों नहीं दी गई कि मेरी मां को वेंटिलेटर पर रखा जाएगा. आपने उन्हें जब जबरन पाइप लगाया तो खून बहना शुरू हो गया और बाद में उनकी मौत हो गई. नियम के अनुसार आपको मुझे बताना चाहिए था कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जाएगा.’

इस घटना पर टिप्पणी करते हुए डॉक्टर प्रभाकर ने कहा कि महिला कोविड-19 से संक्रमित थी और कुछ दिन पहले उनकी मौत हो गई.

प्रभाकर ने कहा कि तय नियमों और दिशानिर्देश के अनुसार एक मरीज का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर को हरसंभव उपाय करने का अधिकार है.

हाल ही में आई अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, शहर के निजी अस्पतालों में भर्ती मरीज कोविड के टेस्ट के लिए कई-कई दिनों तक इंतजार करने को मजबूर हैं. इसकी वजह है कि राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है.

इसके चलते राज्य में टेस्टिंग की गति तो कम हुई ही है, साथ ही इलाज का इंतजार कर रहे मरीजों के लिए भी यह स्थिति घातक साबित हो रही है क्योंकि उनके ट्रीटमेंट के बारे में कोई फैसला ही नहीं लिया जा पा रहा है.

राज्य में यह चर्चा बहुत जोर पकड़ चुकी है कि प्रदेश सरकार का टेस्ट में देरी करना गुजरात में बढ़ते कोविड मामलों को कृत्रिम तरह से रोकने की कोशिश है. बीते हफ्ते अदालत ने भी कहा था कि राज्य सरकार अब तक केवल ‘राज्य में मामलों की संख्या को कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.’

अदालत ने आगे कहा था, ‘आखिर में मरीज को ही भुगतना पड़ता है… किसी कोविड मरीज के लिए 3-5 दिन का इंतजार घातक साबित हो सकता है.’

बता दें कि इससे पहले 15 मई को अहमदाबाद सिविल अस्पताल में भर्ती किए गए एक कोविड-19 मरीज का शव लावारिस हालत में दानीलिमडा इलाके में एक बस अड्डे पर मिला था.

गुजरात देश में कोरोना वायरस से बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में से एक है. शुक्रवार सुबह तक यहां संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 15,562 हो चुकी थी और 960 लोगों की मौत के मामले सामने आए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)