नालंदा ज़िले के इस्लामपुर थाना क्षेत्र में रहने वाले एक 16 वर्षीय किशोर को बीते मार्च महीने में एक महिला का पर्स चुराने के आरोप में पकड़ा गया था. उनके घर की तंग आर्थिक स्थिति और पृष्ठभूमि को देखते हुए जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट मानवेन्द्र मिश्र ने उन्हें सज़ा न देते एक मानवीय फ़ैसला सुनाया है.
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के एक मानवीय फैसले ने नालंदा ज़िले के इस्लामपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले गरीब व विशेष रूप से सक्षम 16 वर्षीय मुकेश (परिवर्तित नाम) और उसके परिवार की जिंदगी बदल दी है.
मुकेश बेहद गरीब परिवार से हैं, पिता की मौत हो चुकी है. पिता के गुजरने के बाद से उसकी मां मानसिक रूप से असंतुलित हो गई हैं. मां के अलावा घर में एक छोटा भाई भी है.
ये परिवार खटोलनाबिगहा में एक बेतरतीब झोपड़ीनुमा घर में रहता है. पिता की कमाई से ही परिवार चलता था, इसलिए उनके न रहने पर जब घर में खाने पीने का अभाव हो गया, तो मुकेश इलाके में ही कूड़ा बीनने का काम करने लगा, जिससे किसी तरह परिवार चल रहा था.
हालांकि, इस बीच भी घर में घोर आर्थिक तंगी बनी हुई थी, जिसके चलते उनकी मां कभी-कभार भीख भी मांगती थी.
खटोलनाबिगहा के स्थानीय निवासी राजेश कुमार ने द वायर को फोन पर बताया कि वे लोग बेहद गरीब थे और मांग कर खाते थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया कि उसे और उसके परिवार को दो वक्त के खाने के भी लाले पड़ गए.
ये मार्च महीने के पहले हफ्ते की बात है. खाने का इंतजाम न होता देख मुकेश ने स्थानीय बाजार से एक महिला का बैग चुरा लिया. महिला ने इस बाबत इस्लामपुर थाने में शिकायत दर्ज कराई, तब पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज खंगाला और चोर का हुलिया जारी किया.
इस्लामपुर थाने के पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मुकेश इलाके में घूम रहा था, तो स्थानीय लोगों ने उसकी शिनाख्त कर ली और पुलिस को खबर दी. सूचना पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने 7 मार्च को उसे गिरफ्तार कर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट मानवेन्द्र मिश्र के सामने पेश किया.
7 मार्च से 7 अप्रैल लिए तक चार बार उसकी पेशी हुई, लेकिन उसके संरक्षक या अभिभावक के तौर पर कोई सामने नहीं आया, नतीजतन एक महीने से ज़्यादा वक्त तक वह पर्यवेक्षण गृह में रहा. 17 अप्रैल को आखिरी बार इस मामले की सुनवाई हुई और यहीं से मुकेश की जिंदगी में बदलाव की कहानी शुरू हुई.
पुलिस जांच में किशोर ने बताया कि उसने मां-भाई के खाने का इंतजाम करने के लिए चोरी की थी. बताया जाता है कि मजिस्ट्रेट मानवेन्द्र मिश्र को भी किशोर ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और तंगहाली के बारे में बताया था.
उसके बयान, घर की माली हालत और कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं मिलने के चलते बोर्ड के मजिस्ट्रेट मानवेंद्र मिश्र ने मामले को सामान्य जांच प्रक्रिया और सुनवाइयों से गुजरते हुए नियति तक पहुंचने के लिए छोड़ देने के बजाय परिस्थितियों और अपराध के पीछे की बुनियादी वजहों को देखते हुए मानवीय फैसला सुनाया.
अपने फैसले में उन्होंने न केवल आरोपित को चोरी के आरोप से मुक्त किया, बल्कि सरकारी सहूलियतें मुहैया कराने का भी आदेश दिया.
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अपने आदेश में लिखा, ‘उपलब्ध दस्तावेज के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि किशोर के पिता की मृत्यु हो चुकी है तथा उसकी एकमात्र संरक्षक विधवा मां पति की मृत्यु के बाद मानसिक अवसाद से गुजर रही है. किशोर का एक छोटा भाई है. किशोर की आर्थिक स्थिति निम्न स्तर की है. घर में दो वक्त खाने का राशन भी प्रतिदिन नियमित रूप से उपलब्ध नहीं रहता है. किशोर ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह इसी अभावग्रस्तता की वजह से अपने परिवार के लिए भोजन जुटाने हेतु चोरी करने को विवश हो गया था.’
आदेश में आगे लिखा गया है, ‘इस अपराध के लिए किशोर के विरुद्ध आपराधिक जांच की अग्रिम कार्यवाही की कोई आवश्यकता नहीं है.’
बोर्ड ने इस्लामपुर थाने के प्रभारी को मुकेश और उसके परिवार की नियमित खैरियत लेने की जिम्मेदारी दी और हर चार महीने पर किशोर व उसके परिवार की प्रगति रिपोर्ट देने को कहा.
इतना ही नहीं आदेश में परिवार का राशन कार्ड बनाने, विधवा पेंशन देने और किशोर को रोजगारमूलक प्रशिक्षण देने को भी कहा गया है ताकि उसकी आगे की जिंदगी ठीक से गुजर सके.
इस आदेश के बाद मुकेश और उसके परिवार को खाने के लिए भटकना नहीं पड़ रहा है. उन्हें भोजन मिल रहा है और कुछ दिन पहले ही उनकी मां की विधवा पेंशन भी शुरू कर दी गई है. रहने के लिए पक्का मकान भी बन गया है, जिसका निर्माण मजिस्ट्रेट मानवेन्द्र मिश्र और स्थानीय लोगों की आर्थिक मदद से कराया गया है.
इस्लामपुर थाने के थाना प्रभारी शरद कुमार रंजन ने द वायर को बताया कि मकान बनवाने में 20 हजार रुपये खर्च हुए हैं, जिनमें से 10 हजार रुपये जज साहब ने दिए और बाकी का इंतजाम चंदे से किया गया. साथ ही मुकेश और उसके परिवार के लिए कपड़े और राशन की भी व्यवस्था की गई है.
राशन और मकान मिलने से मुकेश की मां बहुत खुश हैं. उन्होंने द वायर को फोन पर कहा, ‘घर भी बन गया है और खाना-पीना भी मिल रहा है. सब जज साहब ने करवाया है.’
ऐसा पहली बार नहीं है कि मानवीय फैसला देने के लिए मानवेन्द्र मिश्र की तारीफ हो रही है. वह अपने फैसलों को लेकर अक्सर चर्चा में आ जाते हैं.
पिछले साल अगस्त में शादी के लिए एक किशोरी को अगवा करने के दोषी नाबालिग को रिहा करने से पहले उन्होंने उसे दो महीने तक इलाके में माॅब लिंचिंग के खिलाफ प्रचार करने का आदेश दिया था. उस वक्त इलाके में माॅब लिंचिंग की कई घटनाएं सामने आ रही थीं.
इस साल जनवरी में फिरौती के लिए अगवा करने के 4 चार दोषियों को परिवार के खर्च पर पर्यवेक्षण गृह में लाइब्रेरी बनाने और उसमें बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक किताबें रखने का आदेश दिया था.
36 वर्षीय एसीजेएम मानवेन्द्र मिश्र मूलतः शिवहर के रहने वाले हैं. 19 अगस्त 2013 को मधुबनी से बतौर प्रोबेशनरी मुंसिफ उन्होंने न्यायिक सेवा में अपने करियर की शुरुआत की थी.
नवंबर 2014 में वह मधुबनी के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट-2 और अगस्त 2015 में ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट-1 बने. अगस्त 2015 में उन्होंने झंझारपुर के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट का पद संभाला.
इसके बाद नवंबर 2016 में वे बिहार शरीफ के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पद की संभालने पहुंचे और दिसंबर 2019 से वह बिहार शरीफ में एसीजेएम व सब जज हैं.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)