पीठ में बदलाव के बाद गुजरात हाईकोर्ट ने कहा- सरकार की आलोचना से मरे हुए वापस नहीं आएंगे

इससे पहले कोरोना वायरस को लेकर हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है. बदलाव के बाद पीठ ने नाराज़गी ज़ाहिर की कि महामारी से निपटने को लेकर सरकार के बारे में की गईं अदालत की हालिया टिप्पणियों का ग़लत मंशा से दुरुपयोग किया गया.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

इससे पहले कोरोना वायरस को लेकर हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है. बदलाव के बाद पीठ ने नाराज़गी ज़ाहिर की कि महामारी से निपटने को लेकर सरकार के बारे में की गईं अदालत की हालिया टिप्पणियों का ग़लत मंशा से दुरुपयोग किया गया.

गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)
गुजरात हाईकोर्ट. (फोटो साभार: gujarathighcourt.nic.in)

नई दिल्ली: गुजरात उच्च न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी से संबंधित एक जनहित याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अपने ताजा आदेश में कहा कि कोविड-19 राजनीतिक नहीं बल्कि मानवीय संकट है.

कोर्ट ने कहा कि महज सरकार की आलोचना करने से न तो चमत्कारिक रूप से लोग ठीक होने लगेंगे और न ही मर चुके लोग जिंदा होने वाले हैं.

अदालत ने महामारी के खिलाफ जंग में राज्य सरकार की मदद के लिये ‘सहयोग, सूझबूझ और रचनात्मक आलोचना’ करने की बात कही.

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस जेबी पर्दीवाला की खंडपीठ ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की कि महामारी से निपटने को लेकर सरकार के बारे में की गईं अदालत की हालिया टिप्पणियों पर सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों पर अनावश्यक बहस और टिप्पणियां की गईं और गलत मंशा से उनका दुरुपयोग किया गया.

अदालत ने कहा, ‘संकट के समय, हमें झगड़ने के बजाय साथ आना चाहिये. कोविड-19 राजनीतिक नहीं, मानवीय संकट है. लिहाजा, यह जरूरी है कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण न किया जाए.’

अदालत ने विपक्ष से ऐसे समय में आलोचना में मशगूल रहने के बजाय मदद का हाथ बढ़ाने के लिये कहा. पीठ ने कहा कि राज्य की स्थिति को संभालने में केवल खामियां निकालना और मतभेद दिखाना लोगों के मन में भय पैदा करता है.


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दरअसल जस्टिस जेबी पर्दीवाला और जस्टिस आईजे वोरा की पीठ ने इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 मई को अपने आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत ‘दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है.’

इस अस्पताल में अब तक 415 कोविड-19 मरीज दम तोड़ चुके हैं. अदालत की इस टिप्पणी को लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया था.

मालूम हो कि जस्टिस जेबी पर्दीवाला और इलेश जे. वोरा की पीठ ने कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे. हालांकि पिछले हफ्ते इस पीठ में परिवर्तन कर दिया गया.

अब पीठ में परिवर्तन किए जाने के कारण कोरोना मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायधीश विक्रम नाथ की अगुवाई वाली पीठ कर रही है, जिसमें जस्टिस जेबी पर्दीवाला बतौर जूनियर जज शामिल हैं.

इस पीठ में अचानक परिवर्तन किए जाने को लेकर विभिन्न वर्गों ने चिंता जाहिर की थी कि कहीं ये पिछली पीठ द्वारा दिए गए आदेशों को कमजोर करने के लिए तो नहीं किया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)