आंतरिक दस्तावेजों से इस बात का खुलासा हुआ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठकों में चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर सूचना और प्रतिस्पर्धा पर सख्त नियंत्रण को काफी हद तक दोष दिया गया था. हालांकि संगठन सार्वजनिक रूप से कोरोना वायरस से संबंधित जानकारी तुरंत उपलब्ध कराने के लिए चीन की लगातार सराहना करता रहा है.
जिनेवा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की आतंरिक बातचीत के खुलासे में पता चला है कि कोरोना वायरस महामारी के शुरुआती और बेहद महत्वपूर्ण दिनों में डब्ल्यूएचओ इस बात के लिए चिंतित था कि नए वायरस से उत्पन्न जोखिम का आकलन करने के लिए चीन पर्याप्त जानकारी साझा नहीं कर रहा है और दुनिया का मूल्यवान समय खर्च हो रहा है.
बता दें कि डब्ल्यूएचओ सार्वजनिक रूप से कोरोना वायरस से संबंधित जानकारी तुरंत उपलब्ध कराने के लिए चीन की लगातार सराहना करता रहा है.
समाचार एजेंसी एपी को प्राप्त आंतरिक दस्तावेज, ई-मेल और दर्जनों बातचीत संबंधी रिकार्ड में इस बात का खुलासा हुआ है कि डब्ल्यूएचओ की बैठकों में चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर सूचना और प्रतिस्पर्धा पर सख्त नियंत्रण को काफी हद तक दोष दिया गया था.
विभिन्न आंतरिक बैठकों की रिकार्डिंग के अनुसार चीन की कई सरकारी प्रयोगशालाओं में इसे पूरी तरह से डिकोड किये जाने के बावजूद चीनी अधिकारियों ने एक हफ्ते से अधिक समय तक घातक वायरस के आनुवंशिक नक्शे या जीनोम को जारी करने में देरी की थी और परीक्षण, दवाओं तथा टीकों के लिए विवरण साझा नहीं किया था.
रिकॉर्डिंग के अनुसार, 6 जनवरी की बैठक के दौरान अधिकारी शिकायत कर रहे थे कि चीन आंकड़े उपलब्ध नहीं कर रहा है जिससे वायरस से दुनियाभर में होने वाले खतरे का अनुमान लगाया जा सके. चीन ने 20 जनवरी को कोरोना वायरस को संक्रामक बताया था और इसके बाद 30 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने इस वैश्विक आपातकाल घोषित किया था.
स्वास्थ्य अधिकारियों ने 11 जनवरी को विषाणु विज्ञान की एक वेबसाइट पर एक चीनी प्रयोगशाला द्वारा इस बारे में लेख प्रसारित किए जाने के बाद वायरस के जीनोम की जानकारी सार्वजनिक की थी.
हालांकि वैश्विक स्वास्थ्य निकाय के चीन में एक अधिकारी गुआदेन गालेया ने चीन के सरकारी टीवी का जिक्र करते हुए एक बैठक में बताया था कि उन्होंने सीसीटीवी पर इस जानकारी के आने से 15 मिनट पहले इसे हमारे साथ साझा किया है.
महामारी की प्रारंभिक कहानी ऐसे समय में आई है जब संयुक्त राष्ट्र की यह स्वास्थ्य एजेंसी (डब्ल्यूएचओ) संदेह के घेरे में है और वायरस की उत्पत्ति को लेकर स्वतंत्र जांच करने के प्रयास हो रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन लगातार चीन और डब्ल्यूएचओ दोनों पर आरोप लगाते रहे हैं कि वायरस के सबसे पहले वुहान में उत्पन्न होने के बाद इससे निपटने के लिए उन्होंने उचित कदम नहीं उठाए. ट्रंप ने यह भी कहा था कि डब्ल्यूएचओ ‘चीन की जनसंपर्क एजेंसी की तरह है’.
अमेरिका ही नहीं जर्मनी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देश कोरोना के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
हालांकि, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दावा करते रहे हैं कि उनका देश हमेशा से विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं दुनिया को जानकारी मुहैया कराता रहा है.
महामारी से संबंधित जानकारी को छिपाने के लिए चीन के साथ कथित तौर पर मिलीभगत करने के लिए एजेंसी पर आरोप लगाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते शुक्रवार को डब्ल्यूएचओ के साथ सभी संबंध तोड़ लिए थे.
इससे पहले चीन का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए ट्रंप डब्ल्यूएचओ की आलोचना कर चुके हैं और उसे दी जाने वाली सालाना करीब 50 करोड़ डॉलर की अमेरिकी राशि पर रोक लगा चुके हैं.
हालांकि, ट्रंप के इस फैसले की डब्ल्यूएचओ सहित दुनियाभर के देशों, वैश्विक संस्थाओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की थी.
ट्रंप ने दावा किया था कि डब्ल्यूएचओ चीन से विषाणु के नमूने हासिल करने में नाकाम रहा और उसने इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों का विरोध करने का ‘विनाशकारी फैसला’ किया.
इसके साथ ही ट्रंप ने चीन को आगाह किया था कि अगर यह पाया गया कि वह वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को फैलाने का ‘जिम्मेदार’ है और उसे इसके बारे में जानकारी थी तो उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे.
ट्रंप ने इस संक्रामक रोग के कारण चीन में मरने वाले लोगों की आधिकारिक संख्या को लेकर भी संदेह जताते हुए दावा किया था कि वहां मरने वाले लोगों की संख्या अमेरिका से कहीं अधिक है.
वहीं, अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने चीन पर कोरोना वायरस के तथ्यों को छुपाने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उन्हें बताना होगा कि कैसे कोविड-19 इतनी तेजी से दुनिया में फैल गया.
इससे पहले पोम्पिओ ने अपने बयान में कहा था कि अमेरिका इस बात की जांच करेगा कि क्या कोरोना वायरस वुहान विषाणु विज्ञान संस्थान से उत्पन्न हुआ.
हालांकि, चीन कोविड-19 महामारी से जुड़े तथ्यों को छिपाने की बात से लगातार इनकार करता रहा है और आरोप लगाता रहा है कि अमेरिका यह कहकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है कि कोरोना वायरस वुहान स्थित एक विषाणु विज्ञान प्रयोगशाला से उत्पन्न हुआ.
अपनी बातों को जायज ठहराने के लिए चीन डब्ल्यूएचओ के बयानों का ही सहारा भी लेता रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा था, ‘मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बार-बार कहा है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि विषाणु को प्रयोगशाला में बनाया गया. कई जाने-माने चिकित्सा विशेषज्ञ भी विषाणु के प्रयोगशाला से लीक होने की बात को खारिज कर चुके हैं.’
इन सबके बाद भी इस महीने की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए चीन की प्रशंसा करते हुए कहा था कि दुनिया के देशों को वुहान से सीखना चाहिए कि किस तरह से वायरस के केंद्र बिंदु होने के बावजूद वहां पर सामान्य स्थिति बहाल की गई.
बता दें कि इस महामारी से दुनियाभर में अब तक 3.80 लाख अधिक लोगों की मौत हो गई है, जबकि 63 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं. अकेले अमेरिका में ही कोरोना से एक लाख से अधिक लोग दम तोड़ चुके हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)