छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाए जाने पर आदिवासी कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई थी.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले हफ्ते वन अधिकार कानून, 2006 के अंतर्गत सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों (सीएफआरआर) के क्रियान्वयन के लिए वन विभाग को नोडल एजेंसी बना दिया था. इसे लेकर आदिवासी कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जाहिर की थी.
इसके चलते अब राज्य सरकार ने अपने इस आदेश में संशोधन किया है और वन विभाग की भूमिका स्पष्ट की है. एक जून को छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि वन अधिकार कानून के तहत केवल ‘सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों’ की मान्यता के लिए वन विभाग को समन्वय (को-ऑर्डिनेशन) का कार्य सौंपा गया है.
इससे पहले विभाग में अपने पिछले आदेश में कहा था कि सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को लागू करने के लिए वन विभाग नोडल एजेंसी है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा, ‘राज्य सरकार ने इस आदेश के माध्यम से वन अधिकार कानून की मूल भावना का सम्मान करते हुए इसके क्रियान्वयन में वन विभाग की भूमिका को न केवल स्पष्ट किया है बल्कि उसकी जिम्मेदारी भी अधिक स्पष्टता के साथ तय कर दी है.’
मालूम हो कि साल 2006 में वन अधिकार कानून लागू किया गया था. इसे यूपीए-1 सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक के रूप में देखा जाता है. इस कानून का प्रभावी क्रियान्यवन करने के लिए केंद्रीय स्तर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राज्य स्तर पर आदिवासी विकास विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है.
हालांकि बीते 28 मई को अचानक राज्य सरकार द्वारा वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया था.