दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक को लिखे पत्र में नर्स यूनियन ने अस्पताल के कोविड-19 क्षेत्रों में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों के साथ चार घंटे की समान पाली, कोविड-19 और ग़ैर कोविड-19 क्षेत्रों के बीच समान रोटेशन नीति लागू करने समेत कई मांगें रखी हैं.
नई दिल्ली: एम्स में कामकाज की हालत को लेकर नर्स यूनियन का प्रदर्शन लगातार जारी है. दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों में से एक एम्स में अब तक 47 नर्सों समेत 329 से अधिक कर्मचारी कोविड-19 से संक्रमित पाए जा चुके हैं.
नर्स यूनियन के सदस्य पिछले एक जून से धरना दे रहे हैं.
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया को लिखे पत्र में नर्स यूनियन ने अस्पताल के कोविड-19 क्षेत्रों में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) के साथ चार घंटे की समान पाली, कोविड-19 और गैर कोविड-19 क्षेत्रों के बीच समान रोटेशन नीति लागू करने समेत कई मांगें रखी हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक एम्स नर्स यूनियन ने यह विरोध तब तक जारी रखने का फैसला किया जब तक कि प्रशासन उनकी मांगों पर ध्यान न दे.
यूनियन ने कहा, ‘एम्स के अधिकारी हमारी मांगों को अनसुना कर रहे हैं इसलिए हमें सामूहिक तौर पर यह कदम उठाना पड़ा. अगर हमारी मांगों को नहीं सुनते हैं तो हम 10 जून को आकस्मिक अवकाश पर चले जाएंगे. उसके बाद भी नहीं माने तो 15 जून से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया है.’
यूनियन का कहना है कि वो इस कठिन दौर में हड़ताल नहीं करना चाहते लेकिन हालत ऐसे बन गए हैं कि उन्हें मजबूर होकर हड़ताल करना पड़ रहा है. इन सबके लिए एम्स प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
यूनियन के अध्यक्ष हरीश काजला ने कहा कि छह घंटे काम करने की बात कही गई थी लेकिन अक्सर सात से आठ घंटे काम करना पड़ता है. व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पहनने और उतारने से विशेषकर महिला कर्मचारियों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे कई कर्मचारी शरीर पर चकत्ते और मूत्राशय में संक्रमण जैसी स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना कर रहे हैं, जबकि कई अन्य का वजन कम हुआ है.’
काजला ने कहा, ‘महिलाओं को मासिक धर्म से संबंधित समस्याएं हो रही हैं क्योंकि वे पीपीई के साथ सेनेटरी पैड नहीं बदल सकती हैं, न ही वॉशरूम जा सकती हैं. एक बार जब आप पीपीई पहन लेते हैं तो इसे उतारना मुश्किल होता है. लिहाजा हमें ड्यूटी पर वयस्क डायपर पहनने पड़ते हैं, जोकि बहुत असहज होते हैं. सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के कारण हमें तेजी से संक्रमण की चपेट में आने का खतरा होता है.’
गौरतलब है कि एम्स में एक फरवरी से अब तक फैकल्टी सदस्यों, रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सों समेत 329 कर्मचारी कोविड-19 से संक्रमित पाए जा चुके हैं. इनमें से तीन की मौत हो चुकी है.
एम्स के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. डीके शर्मा ने कहा, ‘स्वास्थ्य कर्मचारी फरवरी से कोरोना पीड़ितों के संपर्क में रहे हैं. इनमें से कई कोराना की चपेट में आ चुके थे. इनमें से कई ठीक होने के बाद ड्यूटी भी जॉइन कर चुके हैं.’
उन्होंने कहा कि कोरोना की चपेट में आकर एक इलेक्ट्रिशियन की बीते रविवार को मौत हो गई, जबकि एक सैनिटेशन सुपरवाइजर और एक मेस वर्कर की बीते हफ्ते मौत हो चुकी है.
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— AIIMS NURSES UNION (@nsgunionaiims) June 4, 2020
बता दें कि इससे पहले भी देश के विभिन्न हिस्सों से कोविड-19 स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा विभिन्न समस्याओं को लेकर विरोध की खबरें आई थीं.
बीते मई महीने में सरकार के नए क्वारंटीन नियमों का दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टरों ने विरोध किया गया था.
सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों के क्वारंटीन नियमों में बदलाव करते हुए कहा था कि कोविड-19 ड्यूटी के बाद उन्हें तब तक क्वारंटीन में भेजने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि उन्हें या तो बहुत ज्यादा खतरा हो या फिर उनमें वायरस संक्रमण के लक्षण नजर आ रहे हों.
उसके कई अस्पतालों ने क्वारंटीन में विभिन्न होटलों में रह रहे अपने कर्मचारियों से वह जगह खाली करने को कहा था और ऐसा नहीं करने की स्थिति में तय तिथि के बाद से वहां रुकने पर आया खर्च कर्मचारी के वेतन से काट लेने की बात कही गई थी.
4 मई को ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) में 100 से अधिक नर्स व अन्य स्वास्थ्यकर्मी घटिया पीपीई किट दिए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था.
बीते अप्रैल महीने में दिल्ली स्टेट हॉस्पिटल्स नर्सेज़ यूनियन ने सरकार और प्रशासन को काम रोकने की चेतावनी देते हुए मांग की थी कि पीपीई और मास्क की कमी दूर की जाए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)