विश्व के क़रीब 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने दोनों पत्रिकाओं के संपादकों को लिखे गए खुले पत्र में दोनों अध्ययनों में इस्तेमाल डेटा की गुणवत्ता में विसंगति का मुद्दा उठाया था. पत्र में डेटा की सत्यता और अध्ययन में इससे जिस तरह का विश्लेषण किया गया, उन सबको लेकर चिंता जताई गई थी.
बोस्टन/नई दिल्ली: शीर्ष एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं द लांसेट और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) में प्रकाशित दो विवादित अध्ययनों के लेखकों ने कोविड-19 पर अपना अनुसंधान वापस ले लिया है.
अपने आकलन में इस्तेमाल निजी कंपनी से लिए गए डेटा की सत्यता को प्रमाणित नहीं कर पाने के बाद उन्होंने यह दावा वापस लिया है.
दोनों अध्ययनों में लेखक रहे अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मंदीप मेहरा समेत अन्य वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान पत्र यह कहते हुए वापस ले लिए हैं कि टीम के सदस्यों को उनके अनुसंधान के लिए अंतर्निहित डेटा तक पहुंच नहीं दी गई.
दोनों अध्ययनों में अमेरिका के इलिनोइस में स्थित निजी कंपनी सर्जीस्फीयर कॉरपोरेशन से लिए डेटा को आधार बनाया गया था, जिसमें कंपनी के सीईओ सपन देसाई और मेहरा दोनों अनुसंधान पत्रों में लेखक रहे हैं.
लांसेट का अध्ययन 22 मई को प्रकाशित हुआ था जिसमें दावा किया गया था कि छह महाद्वीपों से अस्पताल में भर्ती 96,000 कोविड-19 मरीजों के डेटा का आकलन किया गया और कहा गया था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन के प्रयोग से मौत के मामले बढ़ गए हैं तथा दिल की धड़कन में परिवर्तन होने जैसे मामले देखे गए हैं.
इससे पहले ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में एक मई को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया था कि कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती मरीजों में मौत का जोखिम पहले से मौजूद हृदय की किसी बीमारी से जुड़ा हुआ है.
लांसेट के अध्ययन के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने क्लिनिकल ट्रायल में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन से मरीजों का इलाज करने पर रोक लगा दी थी. हालांकि हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने इसका का क्लिनिकल ट्रायल दोबारा शुरू किया.
विश्व के करीब 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने 31 मई को दोनों पत्रिकाओं के संपादकों को लिखे गए खुले पत्र में दोनों अध्ययनों में इस्तेमाल डेटा की गुणवत्ता में विसंगति का मुद्दा उठाया था. पत्र में डेटा की सत्यता और अध्ययन में इससे जिस तरह का विश्लेषण किया गया, उन सबको लेकर चिंता जताई गई थी.
खुले पत्रों के मुताबिक दुनिया भर की सरकारों के मामले अध्ययनों में इस्तेमाल डेटा के साथ मेल नहीं खाते. जब दोनों पत्रिकाओं ने इन चिंताओं पर गौर किया और डेटा के प्राथमिक स्रोत पर स्वतंत्र समीक्षा कराई तो उन्होंने कहा कि मेहरा और उनकी टीम संपूर्ण आकलन के लिए उनकी सूचना का मूल स्रोत उपलब्ध नहीं करा पाए.
लांसेट पत्रिका ने एक बयान में कहा, ‘अनुसंधान पत्र ‘कोविड-19 के इलाज में मैक्रोलाइड के साथ या बिना हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) या क्लोरोक्वीन लेना: एक बहुराष्ट्रीय आकलन’ के तीन लेखकों ने अपना अध्ययन वापस ले लिया है.
Today, three of the authors have retracted "Hydroxychloroquine or chloroquine with or without a macrolide for treatment of COVID-19: a multinational registry analysis" Read the Retraction notice and statement from The Lancet https://t.co/pPNCJ3nO8n pic.twitter.com/pB0FBj6EXr
— The Lancet (@TheLancet) June 4, 2020
इसके बाद एनईजेएम अध्ययन को भी वापस ले लिया गया. मेहरा समेत अध्ययन का हिस्सा रहे अन्य वैज्ञानिकों ने अनुरोध किया कि लेख वापस ले लिया जाए. साथ ही पत्रिका के संपादकों और पाठकों से माफी भी मांगी.
सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एवं इंटिग्रेटिव बायोलॉजी में फेफड़ा रोग संबंधी अनुसंधान के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने इस अध्ययन को वापस लिए जाने का महत्व बताते हुए कहा, ‘दावा वापस लेने से किसी भी तरह से यह साबित नहीं होता कि एचसीक्यू एवं क्लोरोक्वीन प्रभावी है, यह बस यह साबित करता है कि दवा से उच्च मृत्य दर की चिंताएं निराधार हैं.’
अग्रवाल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘और ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए हम परीक्षण जारी रखेंगे.’
उनके आकलन से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि कोविड-19 का इन दवाओं से इलाज करने से अस्पताल में लोगों को बचाने की संभावना घट जाएगी और दिल की धड़कन की लय में गड़बड़ी होने की आशंका बढ़ जाएगी.
ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिस चैंबर्स ने एक बयान में कहा, ‘यह सही है कि इन अध्ययनों को वापस ले लिया गया. सामान्य समीक्षा की प्रक्रिया के दौरान डेटा को लेकर ऐसी मूल चिंताओं को सुलझा पाने में विफलता लांसेट और एनईजेएम में संपादन के स्तर को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है जो कि विश्व की दो प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिकाएं हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)