स्वास्थ्य मंत्रालय कोरोना अस्पतालों के बारे में सभी जानकारी 15 दिन के भीतर अपलोड करे: सीआईसी

सीआईसी ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा आयोग के सामने पेश किए गए जवाबों से पता चलता है कि कोरोना महामारी से संबंधित बेहद जरूरी जानकारी को मंत्रालय के किसी भी विभाग द्वारा मुहैया नहीं कराया जा सका है.

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सीआईसी ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा आयोग के सामने पेश किए गए जवाबों से पता चलता है कि कोरोना महामारी से संबंधित बेहद जरूरी जानकारी को मंत्रालय के किसी भी विभाग द्वारा मुहैया नहीं कराया जा सका है.

Ministry of Health PIB
(फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्ली: देश भर में तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामले और मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते परिजनों की खबरों के बीच केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने इस बात पर चिंता जाहिर की है कि कोविड-19 से इलाज के लिए अस्पतालों की पूरी जानकारी कहीं भी एक जगह पर उपलब्ध नहीं है.

आयोग ने मामले को अत्यंत आवश्यक की श्रेणी में रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वे 15 दिन के भी देश भर के सभी कोविड-19 इलाज केंद्रों, अस्पतालों इत्यादि की जानकारी अपने वेबसाइट पर अपलोड करें.

आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव को सलाह दी कि वे उचित रैंक के एक नोडल अधिकारी नियुक्त करें जिसका काम इन मामलों को देखना होगा और मंत्रालय की वेबसाइट पर ऐसी सभी जानकारी अपलोड की जाए.

मालूम हो कि हाल में ऐसी कई खबरें आई हैं जहां उचित जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण कोरोना मरीज के परिजनों को कई जगहों का चक्कर काटना पड़ा. कुछ मामलों में तो अस्पतालों की तलाश करने के दौरान ही मरीज की मौत हो गई.

आरटीआई कार्यकर्ता और कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के एक्सेस टू इन्फॉर्मेशन प्रोग्राम के प्रमुख वेंकटेश नायक ने एक सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन दायर कर कोरोना से इलाज के लिए बनाए गए जिला-वार अस्पतालों या सेंटरों की संख्या, उनका पता और अस्पताल या सेंटरों के टेलीफोन नंबर की जानकारी मांगी थी.

उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से यह भी पूछा था कि किस आधार पर इन अस्पतालों को कोरोना मरीजों की जांच के लिए सूचीबद्ध किया गया है. इसके अलावा नायक ने जिला-वार ऐसे अस्पतालों का नाम बताने को कहा कि जिनसे कोरोना मरीजों की जांच करने की इजाजत को वापस ले ली गई है.

चूंकि मांगी गई जानकारी व्यक्तियों के जीवन एवं स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है इसलिए ये सूचना 48 घंटे के भीतर दी जानी चाहिए थी.

हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसा नहीं किया और इसके केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने इस आरटीआई आवेदन को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) को ट्रांसफर कर दिया.

नायक ने करीब एक हफ्ते इंतजार किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. चूंकि ये सूचना अति-आवश्यक थी इसलिए नायक ने प्रथम अपील दायर करने के बजाय सीआईसी में स्वास्थ्य मंत्रालय के खिलाफ शिकायत दायर की और मांगी गई जानकारी जल्द मुहैया कराने की मांग की.

इस मामले को लेकर मुख्य सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने एक जून को सुनवाई की और मौजूदा स्थिति को लेकर गहरी चिंता जाहिर की.

आयोग ने कहा, ‘ये बिल्कुल स्पष्ट है कि कोविड-19 महामारी का प्रभाव बहुत दूर तक है और सभी स्टेकहोल्डर्स को इस बात से अवगत होना चाहिए कि ऐसे समय में उचित आंकड़े और रिकॉर्ड मैनेजमेंट की जरूरत है.’

जुल्का ने कहा, ‘ये रिकॉर्ड्स बीमारी का पता लगाने और वैक्सीन बनाने में शामिल रिसर्च और शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं. कोविड-19 महामारी को देखते हुए पहले से कहीं ज्यादा सरकारी रिकॉर्ड का सही तरीके से मैनेजमेंट जरूरी है.’

मुख्य सूचना आयुक्त ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा आयोग के सामने पेश किए गए जवाबों से पता चलता है कि कोरोना महामारी से संबंधित बेहद जरूरी जानकारी को मंत्रालय के किसी भी विभाग द्वारा मुहैया नहीं कराया जा सका है. हकीकत ये है कि आरटीआई आवेदन को मंत्रालय के एक विभाग से दूसरे विभाग में टरकाया गया.

बिमल जुल्का ने कहा, ‘इसलिए आरटीआई आवेदन में मांगी गईं सूचनाओं को संकलित करने, समेटने और समेकित करने तथा सार्वजनिक प्राधिकरण की वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय/स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय में एक नोडल अथॉरिटी नियुक्त करने की बहुत ही जरूरत है.’

आयोग ने कहा कि एक मजबूत, जबरदस्त और प्रभावी डॉक्यूमेंटेशन तंत्र बनाने और इसे अपडेट करने की अत्यधिक आवश्यकता है, जो न केवल सरकार के लिए बल्कि वैज्ञानिक, शोधकर्ता, शिक्षाविद, इतिहासकार, कानून निर्माता आदि के लिए भी फायदेमंद होगा.

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