बीते सप्ताह बिहार सरकार ने 15 जून के बाद से सभी प्रखंड स्तरीय क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करने का आदेश दिया है. दूसरे राज्यों से आ रहे कामगारों में कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच लिए गए सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि इन सेंटर्स की फंड संबंधी गड़बड़ियों के चलते यह निर्णय लिया गया है.
बिहार सरकार ने 15 जून तक बिहार में संचालित हो रहे सभी क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करने की घोषणा की है. बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि कंटेनमेंट जोन में जो क्वारंटीन सेंटर हैं, वे पूर्ववत ही चलेंगेे, लेकिन अन्य क्वारंटीन सेंटर बंद कर दिए जाएंगे.
इससे पहले 31 मई को बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव अमृत प्रत्यय ने सभी जिलों के डीएम को पत्र लिखकर कहा था, ‘राज्य में चल रहे आपदा राहत केंद्रों व सीमा आपदा राहत केंद्रों को 3 जून के प्रभाव से बंद किया जाएगा.’
पत्र में आगे लिखा गया है, ‘सभी राज्यों को 1 जून तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन के माध्यम से बचे हुए प्रवासी मजदूरों को भेजने का अनुरोध पत्र भेजा गया है. अतः 1 जून अथवा उसके बाद के श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आए यात्रियों को प्रखंड क्वारंटीन कैंप में रखा जाएगा, लेकिन किसी भी हालत में ये कैंप 15 जून तक ही कार्यरत रहेंगे.’
‘चूंकि 1 जून से सामान्य रूप से रेलगाड़ियों का परिचालन और सार्वजनिक परिवहन प्रारंभ रहेगा अतः श्रमिक स्पेशल ट्रेन से आ रहे यात्रियों के अलावा किसी अन्य साधन से आ रहे लोगों का प्रखंड स्तरीय पंजीकरण 1 जून के बाद नहीं होगा’, ऐसा इस पत्र में लिखा गया है.
क्वारंटीन सेंटरों को बंद करने के पीछे आधिकारिक तौर पर बहुत ठोस वजहें नहीं बताई गई हैं. अलबत्ता सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि जितने लोगों को आना था, आ चुके हैं.
लेकिन, पिछले दो-तीन दिनों के आंकड़े बताते हैं कि मजदूरों का आना बदस्तूर जारी है. 1 जून तक आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से संचालित हो रहे क्वारंटीन सेंटरों में 14,24,548 लोग पंजीकृत थे, जो 3 जून को बढ़ कर 15,93,800 हो गए, यानी कि तीन दिनों में 79,252 मजदूर-कामगार दूसरे राज्यों से बिहार लौटे हैं.
ट्रेनों के अलावा लोग सड़क मार्ग से भी बिहार लौट रहे हैं, लेकिन सीमावर्ती जिलों में आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से बनाए गए कैंप्स को हटा लिए जाने से लोगों को घर तक पहुंचने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि उन्हें गंतव्य के लिए वाहन नहीं मिल रहे हैं.
जब कैंप थे, तो स्क्रीनिंग के बाद सरकार वाहनों से उन्हें उनके गृह जिलों में भेज देती थी. ऐसे में सरकार किस आधार पर ये कह रही है कि अब लोग बिहार नहीं लौट रहे हैं?
दूसरी वजह ये बताई गई है कि स्कूल-कॉलेजों को खोलना होगा, इसलिए क्वारंटीन सेंटरों को बंद करना होगा. वहीं, दूसरी तरफ डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने कहा है कि हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि होम क्वारंटीन बेस्ट क्वारंटीन है. लेकिन, इन वजहों पर गंभीरता से सोचने पर कई अहम सवाल उठते हैं.
मसलन, अगर होम क्वारंटीन ही बेस्ट क्वारंटीन है, तो सरकार ने क्वारंटीन सेंटर खोला ही क्यों? अगर सरकार स्कूल-कॉलेज खोलना चाह रही है, तो इसको लेकर अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई अधिसूचना क्यों नहीं जारी हुई है?
अगर स्कूल-कॉलेज खोलना ही है, तो उसे सैनिटाइज करने और साफ-सफाई में अधिकतम 2 से 3 दिन ही लगेंगे, फिर इतनी जल्दी क्वारंटीन सेंटर बंद करने की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या सरकार ने क्वारंटीन सेंटरों को बंद करने से पहले स्वास्थ्य विशेषज्ञों से राय ली थी?
इन तमाम सवालों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को दो बार फोन किया गया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी. इसके अलावा कोविड-19 की नोडल अफसर व एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. रागिनी मिश्रा को भी फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. स्वास्थ्य विभाग को सवालों की सूची मेल की गई है. जवाब मिलने उसे रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
गौरतलब है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले कामगारों को ठहराने के लिए क्वारंटीन सेंटर संचालित करने का जिम्मा बिहार सरकार ने राज्य आपदा प्रबंधन विभाग को दिया है. इस विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 3 जून तक सूबे के 38 जिलों के 534 ब्लॉकों में कुल 10,739 क्वारंटीन सेंटर संचालित हो रहे हैं. इन क्वारंटीन सेंटर्स में 3 लाख 72 हजार 222 लोग ठहरे हुए हैं.
आंकड़े बताते हैं कि 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन शुरू होने से 3 जून तक कुल 15,03,800 मजदूर दूसरे राज्यों से बिहार लौटे, जिनमें से 11,31,578 लोगों की क्वारंटीन अवधि खत्म हो चुकी है और वे घर जा चुके हैं.
आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से अलग-अलग वक्त जारी आंकड़ों को ही अगर देखें, तो पता चलता है कि सरकार ने क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करना शरू भी कर दिया है, क्योंकि 29 मई को आपदा प्रबंधन विभाग ने बताया था कि राज्यभर में 12,478 क्वारंटीन सेंटर संचालित हो रहे हैं, जो 3 जून को घटकर 10,739 हो गए.
इसका मतलब है कि 6 दिनों में 1,739 क्वारंटीन सेंटर बंद हो चुके हैं. कटिहार में 3 जून तक 388 क्वारंटीन सेंटर बंद हो चुके हैं. वहीं, मुजफ्फरपुर में 242 और समस्तीपुर में 240 क्वारंटीन सेंटर्स में ताला लगा दिया गया है. सारण में अब तक 286 जबकि अररिया में 113 क्वारंटीन सेंटर बंद हो चुके हैं.
क्वारंटीन सेंटर बंद किए जाने से बड़े स्तर पर कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा है, क्योंकि क्वारंटीन सेंटर नहीं होने की सूरत में बाहर से आने वाले मजदूर-कामगार सीधे अपने घर जाएंगे और परिवार के साथ रहेंगे. इस संबंध में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बाहर से आने वाले लोगों पर आशा व आंगनबाड़ी वर्करों के जरिये नजर रखी जाएगी.
नीतीश कुमार ये भी कहा है कि बाहर से आने वाले लोगों को होम क्वारंटीन किया जाएगा यानी वे 14 दिनों तक घर पर ही एकांत में रहेंगे. लेकिन, इन सबको लेकर पंचायत स्तर पर अब तक किसी तरह का कोई निर्देश जारी नहीं हुआ है, जिससे क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करने की आधिकारिक वजहों को लेकर संदेह हो रहा है.
सरकार के इस फैसले से ग्रामीण स्तर के जनप्रतिनिधियों को समझ नहीं आ रहा है कि बाहर से आने वाले लोगों के साथ आखिर करना क्या है.
मधुबनी जिले के मधवापुर प्रखंड के पिरोखर पंचायत की मुखिया मंदाकिनी चौधरी ने द वायर को बताया, ‘क्वारंटीन सेंटर नहीं होने से दिक्कत आएगी, क्योंकि बड़ी आबादी ऐसी है, जिनके पास रहने के लिए एक ही कमरा है. ऐसे लोगों के घर में बाहर से लोग आएंगे, तो उन्हें अलग-थलग रखना संभव नहीं हो पाएगा, जिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा ज्यादा रहेगा.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास अब तक किसी तरह का निर्देश नहीं आया है कि क्वारंटीन सेंटर खत्म हो जाने के बाद अगर बाहर से लोग लौट लौटेंगे, तो उनके साथ क्या करना है. एहतियात बरतते हुए हमारा सारा जोर लोगों को जागरूक करने पर है. हम लोग यही कर रहे हैं और आगे भी यही करेंगे.’
हालांकि कुछ जगहों पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को कहा गया है कि बाहर से आने वाले लोगों का मुखिया के पास पंजीयन कराना है और उन्हें होम क्वारंटीन में रखना है.
सुपौल जिले के कुनौली में 1 जून के बाद से अब तक लगभग 300 लोग बाहर से आ चुके हैं. वे लोग सीधे अपने घर चले गए थे. बाद में उन्हें कहा गया कि वे मुखिया से मिल लें और होम क्वारंटीन में रहें.
कुनौली के उप प्रमुख हरे राम मेहता कहते हैं, ‘ब्लॉक स्तरीय अफसरों ने हमें कहा है कि जो भी लोग बाहर से आते हैं, मुखिया के यहां उनका पंजीयन करा दें. हम समझते हैं कि अब सरकार ने कोरोना का सारा जिम्मा आम लोगों पर छोड़ दिया है.’
6 जून तक बिहार में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 4,745 दर्ज की गई है. इनमें दूसरे राज्यों से लौटे मजदूरों-कामगारों की संख्या 70 प्रतिशत से ज्यादा है. सबसे ज्यादा संक्रमण महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात से लौट रहे कामगारों में मिल रहा है.
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जाने-माने चिकित्सक डॉ. अरुण शाह मानते हैं कि अगर क्वारंटीन सेंटर बंद कर भी दिया जाता है, तो बहुत फर्क नहीं पड़ेगा बशर्ते कि बाहर से आने वाले लोगों की शिनाख्त और उनकी जांच में तेजी आए. उन्होंने कहा, ‘क्वारंटीन सेंटर बंद होने के बाद सरकार पर जिम्मेदारी बढ़ेगी और उसे पहले की अपेक्षा ज्यादा तेजी से संदिग्धों की शिनाख्त और उनकी जांच करनी होगी.’
जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि नीतीश कुमार ने कहा कि बाहर से लौटने वाले कामगारों पर आशा व आंगनबाड़ी वर्कर नजर रखेंगी और वे घर-घर जाकर निगरानी करेंगी. लेकिन, पिछले दिनों खत्म हुए डोर-टू-डोर सर्वे को लेकर खुलासा हुआ कि आशा वर्कर व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की तरफ से सर्वेक्षण में लापरवाही बरती गई और कई घरों को छोड़ दिया गया.
जबकि डोर-टू-डोर सर्वे एक कारगर उपाय हो सकता था, क्योंकि डोर-टू-डोर सर्वे का काम जब शुरू हुआ था, तो सर्वेक्षण में 25 अप्रैल को लखीसराय और नवादा में कोरोना वायरस संक्रमण के दो मामले मिले थे.
पटना के तिरपौलिया इलाके में रहने वाले अब्दुल्ला हेजाजी ने बताया, ‘उनके घर पर सर्वे टीम आई ही नहीं थी. अलबत्ता पड़ोस में आई थी और उन लोगों का भी केवल नाम पता पूछकर ही चले गए जबकि सर्वे में पूछा जाना चाहिए था कि लोगों के घरों में कोई बाहर से तो नहीं आया और जो लोग रह रहे हैं उनमें खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ आदि लक्षण है कि नहीं.’
ऐसे में समझा जा सकता है कि आशा व आंगनबाड़ी वर्करों का सर्वेक्षण कितना कारगर होगा.
क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करने के पीछे सबसे बड़ी वजह कथित तौर पर इनके नाम पर हो रही वित्तीय गड़बड़ीको माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि इन सेंटर्स के पीछे सरकार का बहुत पैसा खर्च हो रहा था, लेकिन सेंटर्स में खाने-पीने की दिक्कत, सुविधाओं की कमी जैसी खबरें लगातार सुर्खियां बन रही थीं, इसलिए सरकार ने इन्हें बंद करने का निर्णय लिया.
लेकिन, आधिकारिक तौर पर सरकार ये मान नहीं रही है. पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट में क्वारंटीन सेंटर्स में ठहरने वाले कामगारों की तादाद को लेकर जमा की गई रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ है, जो क्वारंटीन सेंटर्स के नाम फर्जीवाड़ा के संदेह को मजबूती दे रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, जमूई जिले के ढोबघाट के एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर कामता प्रसाद को 21 मई को बीडीओ का एक पत्र मिला था जिसमें उनके स्कूल को क्वारंटीन सेंटर बनाने के लिए अधिसूचित किया गया था. इस पर उन्होंने बीडीओ को 22 मई को जवाबी पत्र लिखा कि उन्हें कामगारों के ठहराने के लिए जरूरी सामान खरीदने को पैसा चाहिए.
इस पत्र का कोई जवाब नहीं आया, तो उन्हें लगा कि शायद उनके स्कूल को क्वारंटीन सेंटर नहीं बनाया जाएगा. लेकिन उनके हाथ 28 मई को तैयार की गई दैनिक रिपोर्ट की प्रति लग गई, जिसे गिद्धौर के सीओ ने तैयार किया था.
इस रिपोर्ट में लिखा गया था कि कामता प्रसाद के स्कूल में 20 लोगों को ठहराया गया था और क्वारंटीन अवधि समाप्त होने पर उन्हें वहां से छुट्टी दे दी गई. कामता प्रसाद ने इसको लेकर सीओ को पत्र लिखा और बताया कि उनके स्कूल में कोई नहीं ठहरा था.
कामता प्रसाद की तरह ही एक अन्य सरकारी स्कूल के हेडमास्टर भागीरथ कुमार ने भी ऐसा ही पत्र सीओ को भेजा और बताया कि उनके स्कूल में कोई क्वारंटीन सेंटर नहीं बना था. वहीं तीसरे सरकारी स्कूल के हेडमास्टर विनय पांडेय ने कहा कि उनके स्कूल में 5 लोग ठहरे थे, लेकिन दैनिक रिपोर्ट में 25 लोगों के नाम दर्ज हैं.
गौरतलब हो कि क्वारंटीन सेंटर में आने वाले हर व्यक्ति को गंजी, लुंगी, जांघिया, बाल्टी, साबुन, बिस्तर और मच्छरदानी देने का नियम बनाया गया था. इसके अलावा दो वक्त पौष्टिक आहार व सुबह-शाम नियमित नाश्ता देने की भी बात थी.
क्वारंटीन सेंटर्स के लिए आवंटित फंड के खर्च का जिम्मा सर्किल ऑफिसर (सीओ) पर है. कुछ जिलों में खर्च का हिसाब-किताब सीधे बीडीओ और डीएम देखते हैं.
सीएम नीतीश कुमार ने कहा है कि क्वारंटीन सेंटर में 14 दिन बिताने वाले हर व्यक्ति पर 5,300 रुपये खर्च किए गए. 3 जून तक 15,93,800 मजदूर-कामगार बिहार लौटे हैं, तो इसका मतलब है कि बिहार सरकार ने क्वारंटीन सेंटर्स पर 8 अरब 44 करोड़ 71 लाख 40 हजार रुपये खर्च किया है.
खर्च के इस दावे को लेकर क्वारंटीन सेंटर्स में 14 दिन बिताकर निकले कई लोगों से द वायर ने बात की और उनसे जाना कि उन्हें क्या सुविधाएं व किस तरह का खाना मिला. इनके जवाब में उन्होंने बताया कि उन्हें बेहद औसत खाना मिलता था. कई लोगों ने बताया कि उन्हें सोने के लिए बिस्तर और मच्छरदानी तक नहीं दिया गया था.
छपरा जिले के एकारी गांव के रहने वाले बालेंदर राम श्रमिक स्पेशल ट्रेन से गुजरात से लौटे थे और 14 दिनों की क्वारंटीन अवधि एक स्कूल में बिताने के बाद फिलहाल अपने गांव में हैं.
उन्होंने बताया, ‘सेंटर में जाने पर एक बाल्टी, लुंगी, गंजी, जांघिया और साबुन दिया गया था. बिस्तर नहीं दिया गया था. खाने में दोपहर और रात को चावल, दाल, सब्जी और दो रोटी मिलता था. सब्जी में ज्यादातर आलू ही रहता था. सुबह नाश्ते में चार पूड़ी और सब्जी.’
बालेंदर कहते हैं, ‘हम लोग शहर में रह चुके हैं तो पता है कि एक आदमी के खाने पर कितना खर्च आता है. जैसा खाना हम लोगों को दिया गया था, उसके हिसाब से एक आदमी पर 14 दिनों में 1,500 रुपये से ज्यादा खर्च नहीं हुआ होगा.’
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गोपालगंज जिले के रामपुर के रहने वाले 23 वर्षीय अर्जुन कुमार भी गुजरात से लौटे हैं. उनकी भी क्वारंटीन अवधि समाप्त हो चुकी है. उन्होंने बताया, ‘ हमारे सेंटर में सुबह नाश्ते में चना और गुड़ मिलता था, दोपहर और रात के खाने में दाल-भात-सब्जी. सब्जी में आलू सोयाबीन ही दिया जाता था, कभी-कभार रोटियां मिल जाती थीं.’
इस दौरान खराब और गुणवत्ताहीन खाने व अव्यवस्था की शिकायतें राज्य के अलग-अलग क्वारंटीन सेंटर्स से भी खूब मिली थीं.
समस्तीपुर जिले के गंगसारा के अहमदपुर गांव के निवासी व पंचायत समिति के सदस्य संजीव कुमार इन्कलाबी ने सोशल मीडिया पर 9 मई को एक वीडियो जारी किया था, जिसमें क्वारंटीन सेंटर बने सरायरंजन के एक कॉलेज में रह रहे कामगारों ने अव्यवस्था की शिकायत की थी.
इस वीडियो के सार्वजनिक किए जाने के दो दिन बाद ही 11 मई को सरायरंजन के सीओ ने संजीव के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करा दी थी. सीओ ने अपने आवेदन में संजीव कुमार पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करते हुए धरना-प्रदर्शन करने, 9 मई को क्वारंटीन सेंटर में जबरदस्ती घुसकर वीडियो बनाने व उसे वायरल करने का आरोप लगाया है.
संजीव को पुलिस ने 21 मई को गिरफ्तार कर लिया. वह फिलहाल जेल में हैं. संजीव की बहन ने द वायर को बताया कि उसे झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है क्योंकि वह क्वारंटीन सेंटर में अव्यवस्था का खुलासा कर रहे थे.
पूर्णिया जिले के धमदाहा ब्लॉक के आदर्श मध्य विद्यालय चंपावती में भी क्वारंटीन सेंटर बनाया गया था. स्कूल के प्रधानाध्यापक ब्रह्मदेव पासवान को इंचार्ज नियुक्त किया गया था.
वे बताते हैं, ‘सीओ साहब की तरफ से हमें कहा गया था कि प्रति व्यक्ति खाने-पीने के इंतजाम पर 41 रुपये ही खर्च करना है. बाद में जब क्वांरटीन सेंटर्स में लोगों की संख्या बढ़ने लगी और लोग अच्छा खाना देने की मांग करने लगे, तो उन्होंने कहा कि वे जैसा खाना चाहते हैं, वैसा दिया जाए.’
यहां ये भी बता दें कि एक-एक क्वारंटीन सेंटर की देखभाल में 7 से 10 लोगों की ड्यूटी लगी थी. चूंकि, लॉकडाउन में खाने-पीने की दुकानें बंद थीं, तो बिहार के वित्त विभाग ने राज्यपाल के आदेश के बाद तय किया था कि हर व्यक्ति को अल्पाहार और भोजन के लिए 350 रुपये तत्काल नकद भुगतान किया जाएगा.
वित्त विभाग के सचिव (व्यय) राहुल सिंह ने इस आशय का पत्र 8 अप्रैल को जारी किया था. लेकिन, ड्यूटी पर लगे लोगों का कहना है कि ये राशि उन्हें नहीं मिल रही है.
धमदाहा ब्लॉक के ही एक स्कूल में क्वारंटीन सेंटर पर ड्यूटी में लगे एक शिक्षक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर द वायर को बताया कि उन्हें अब तक एक रुपया नहीं मिला है. उन्होंने कहा, ‘हमने सीओ से जब रुपये देने की बात कही, तो उन्होंने कहा कि डीएम की तरफ से आदेश नहीं आया है.’
उनके क्वारंटीन सेंटर में 23 मई के बाद कोई नहीं आया है, लेकिन उनकी ड्यूटी लग रही है. उन्होंने कहा कि 9 मई को जो लोग आए थे उनकी 14 दिनों की क्वारंटीन अवधि 23 मई को पूरी हुई, लेकिन बाद में 14, 15 और 16 मई को करीब 100 से ज्यादा लोग आए थे, उन्हें भी 23 मई को ही छोड़ दिया गया.
क्वारंटीन सेंटर्स पर खर्च को लेकर द वायर ने एक सीओ को फोन किया, तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘आपदा प्रबंधन की तरफ से फंड आवंटित हुआ है, जिसका भुगतान क्वारंटीन सेंटर्स के प्रभारियों की तरफ से खर्च का वाउचर देने पर किया जा रहा है. फंड की कमी होने पर आपदा प्रबंधन विभाग दोबारा फंड निर्गत करता है.’
क्वारंटीन सेंटर में 14 दिन बिताने वाले हर व्यक्ति पर 5,300 रुपये खर्च होने के सीएम नीतीश कुमार के बयान पर उक्त सीओ ने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि किस आधार पर ये खर्च बताया गया है. उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि उसमें स्टेशन से क्वारंटीन सेंटर तक बस से ले जाने, वहां रहने-खाने, साफ-सफाई आदि जोड़कर ये राशि बताई गई हो.’
इस बीच अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि क्वारंटीन सेंटर्स के नाम पर फंड की लूट चल रही है और इन्हें देखने वाला कोई नहीं है. उन्होंने कहा, ‘सरकार को चाहिए था कि क्वारंटीन सेंटर्स पर निगरानी बढ़ाती, ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाती, लेकिन सरकार उन्हें बंद करने जा रही है.’
क्वारंटीन सेंटर्स पर होने वाले खर्च को लेकर द वायर ने वित्त विभाग के सचिव (व्यय) राहुल सिंह से बात की, तो उन्होंने कहा कि वित्त विभाग केवल बजट बनाता है. उन्होंने बताया, ‘हम लोग केवल बजट बनाते हैं. खर्च हर विभाग अपने नियम-कानून से खर्च करता है इसलिए खर्च के बारे में वित्त विभाग कुछ नहीं बता सकता.’
वित्त विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘क्वारंटीन सेंटर्स का जिम्मा पूरी तरह से आपदा प्रबंधन विभाग पर है, इसलिए इन पर खर्च भी आपदा प्रबंधन विभाग ही कर रहा है.’
आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री लक्ष्मेश्वर रॉय को कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. आपदा प्रबंधन विभाग को ईमेल पर सवालों की सूची भेजी गई है, जिसका जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)