झारखंड: मज़दूरों ने कहा- लॉकडाउन ने रोज़गार छीन लिया, अब खाने-पीने की भी दिक्कत है

झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा आयोजित एक वेबिनार में राज्य के विभिन्न मजदूरों ने लॉकडाउन के दौरान उन्हें हुई पीड़ा का अनुभव साझा किया. श्रमिकों की मांग है कि सरकार उनके लिए उचित राशन और पैसे की व्यवस्था करे.

Vijayawada: Migrants climb onto a truck to reach to their native place in Bihar, during the ongoing COVID-19 nationwide lockdown, in Vijayawada, Tuesday, May 19, 2020. (PTI Photo)(PTI19-05-2020 000074B)

झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा आयोजित एक वेबिनार में राज्य के विभिन्न मजदूरों ने लॉकडाउन के दौरान उन्हें हुई पीड़ा का अनुभव साझा किया. श्रमिकों की मांग है कि सरकार उनके लिए उचित राशन और पैसे की व्यवस्था करे.

Vijayawada: Migrants climb onto a truck to reach to their native place in Bihar, during the ongoing COVID-19 nationwide lockdown, in Vijayawada, Tuesday, May 19, 2020. (PTI Photo)(PTI19-05-2020 000074B)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: झारखंड के धनबाद की रहने वालीं बुधनी देवी 10 वर्ष की उम्र से ही लोगों के घरों में साफ-सफाई का काम कर रही हैं. लॉकडाउन के पहले तक वो महीने में करीब तीन हजार रुपये कमा लेती थीं. लेकिन अब पूरी तरह से बेरोजगार हैं और कहीं कोई काम नहीं मिल रहा है.

उन्होंने कहा, ‘इस समय कोई अपने घर में घुसने भी नहीं देता है. कॉलोनी के गार्ड बाहर से ही भगा देते हैं.’ देवी के घर में चार लोग हैं. पति प्राइवेट जॉब करते थे, लेकिन वे भी बेरोजगार हो गए हैं.

बुधनी देवी नाराज हैं कि सरकार उनके जैसे लोगों को उचित सहायता नहीं दे रही है. उन्होंने कहा, ‘सरकार ने खाते में 500 रुपये भेजे हैं. इतने में हम कितने दिन खाएंगे. राशन में सिर्फ चावल मिल रहा है. न तो दाल मिलती है, न नमक और न ही मसालें. क्या हम सूखा चावल चबाएं. ऐसे रहा तो भूखे मर जाएंगे हम सब.’

ये सिर्फ किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं है. झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा सोमवार को आयोजित एक वेबिनार में विभिन्न मजदूरों ने अपनी बात रखी और लॉकडाउन के दौरान पीड़ा की ऐसी अन्य कहानियां बयां कीं.

झारखंड के सरायकेला खरसावां के रहने वाले अनिरुद्ध प्रधान करीब नौ महीने से आंध्र प्रदेश में काम कर रहे थे. इस बीच देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया, जिसके बाद कॉन्ट्रैक्टर ने कहा कि उसके पास पैसे नहीं है और अब वो उन्हें सैलरी नहीं दे पाएगा.

इसके बाद प्रधान ने झारखंड कंट्रोल रूम में कॉल किया और किसी तरह उनके लिए राशन और कैश की व्यवस्था हो पाई. हालांकि गृह राज्य वापस लौटने पर क्वारंटीन सेंटर में उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा.

उन्होंने कहा, ‘हमने मुखिया से भोजन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अपने घर से खाने का इंतजाम कराओ. मेरा घर करीब 20 किमी दूर है, मैं कैसे रोज खाना मंगवा सकता था. 14 दिन तक खाने की बहुत मुश्किल हुई.’

अनिरुद्ध प्रधान ने बताया कि जिस कंपनी में वे काम कर रहे थे उसने उन्हें दो महीने का वेतन नहीं दिया है और उन्हें गांव में कोई उधारी भी नहीं दे रहा है. उन्होंने कहा, ‘सरकार के तरफ से अगर कुछ पैसा और रोजगार मिलता है तो बहुत राहत मिलती.’

इसी तरह पिछले 12 सालों से प्रवासी मजदूर के रूप में काम कर रहे राजू लोहार हाल ही में गोवा से वापस आए हैं और क्वारंटीन में हैं. उन्होंने कहा, ‘यहां कोई हेल्थ चेकअप नहीं हो रहा है. इसे लेकर मैं बहुत चिंतित हूं.’

चाईबासा की रहने वालीं 19 वर्षीय सपना 12वीं की परीक्षा पास कर अप्रैल, 2019 में मुंबई गई थीं. उन्हें उम्मीद थी कि महानगर में अच्छा काम मिल जाएगा जिससे वे अपने घरवालों का मदद कर पाएंगी, लेकिन लॉकडाउन के कारण उन्हें जिन तकलीफों का सामना करना पड़ा है, उसके बाद वे कभी भी शहर वापस नहीं लौटना चाहती हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुझे मई में अपने घर वापस आना था लेकिन लॉकडाउन के कारण टिकट कैंसिल हो गए. मैं डर रही थी कि घर जा पाऊंगी या नहीं. मैंने हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क किया, जिसके बाद मुझे फ्लाइट से यहां रांची लाया गया.’

सपना मुंबई में लोगों के घरों में काम करती थीं. उन्होंने बताया कि जहां पर उन्हें क्वारंटीन किया गया है, उसकी व्यवस्था अच्छी नहीं है. प्रशासन की ओर से बेड वगैरह नहीं दिया गया है. लोग अपना ही चटाई बिछा कर सो रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘खाने में सिर्फ चावल-दाल मिलता है. आलू, दाल, सोयाबीन एक ही में मिलाकर देते हैं. अब क्या ही बोले इन्हें. चुपचाप खा रहे हैं जो मिल रहा है.’

सपना चाहती हैं कि राज्य में ही सरकार रोजगार की व्यवस्था करे ताकि लोगों को दर-दर की ठोकरें न खानी पड़े.

केरल के शॉपिंग मॉल में काम कर चुके एतुराम टुडु ने बताया कि वे 15 अक्टूबर 2019 को वहां गए थे. उन्होंने कहा, ‘मैं 2013 से ही एक कॉन्ट्रैक्टर के साथ काम कर रहा हूं, वही मुझे केरल ले गए थे. करीब सात महीने काम किया था कि वायरस फैलने लगा. इसके कारण हमें घर बैठना पड़ा.’

बाद में टुडु को पता चला कि हैदराबाद से ट्रेन जा रही है तो उन्होंने प्रशासन से संपर्क किया और घर जाने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया.

उन्होंने कहा, ‘हमसे 870 रुपये किराया लिया गया. खाने में ब्रेड और केला दिया गया था. ट्रेन में काफी तकलीफ हुआ. फिर बोकरो आ गए और हमें घर में ही क्वारंटीन किया गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम लोग रोज काम करते हैं तो घर चलता है. वहां महीने का 16,000 मिलता था, अब लॉकडाउन में बस बैठे हैं. थोड़ा बहुत राशन है लेकिन उससे गुजारा हो पाना बहुत मुश्किल है. मनरेगा का भी काम चालू नहीं है. सरकार जल्द से जल्द लोगों को काम दे. अब कोई बाहर नहीं जाना चाहता है. मेरे पास खेती भी नहीं है.’

इसी तरह 21 वर्षीय गुड्डू कुमार ने बताया कि 10वीं पास करने बाद वे साल 2017 से ही काम कर रहे हैं. शुरुआत में चार महीने के लिए उन्होंने एनटीपीसी में काम किया था, जहां उन्हें 20-22 हजार रुपये मिलते थे. बाद में उनकी शादी हो गई तो कुछ दिनों तक वे घर पर ही रहे.

उन्होंने कहा, ‘इसके बाद मैं तमिलनाडु के तिरुनेलवेली चला गया. एक महीने भी मैंने काम नहीं किया था कि लॉकडाउन लगा दिया गया. इस बीच मैं बीमार भी हो गया, जिसमें 5-6 हजार रुपये खर्च करने पड़े. मेरे पास करीब 10,000 रुपये थे जो कि पूरा लॉकडाउन में ही खर्च हो गया.’

कुछ दिन बाद गुड्डू ट्रेन से अपने घर आए और इस समय होम क्वारंटीन हैं. उनका कहना है कि उन्हें किसी भी तरह की सरकारी मदद उन्हें नहीं मिल रही है.

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