बीते 28 मार्च की शाम दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे पर लॉकडाउन के बीच विभिन्न राज्यों से आए प्रवासी मज़दूरों की भीड़ घर जाने के लिए जुट गई. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि फेक न्यूज़ के कारण यह भीड़ जुटी थी.
नई दिल्ली: बीते 5 जून को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर बताया कि नई दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे और गाजीपुर बॉर्डर पर 28 मार्च की शाम को बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के इकट्ठा होने के लिए झूठी मीडिया खबरें और अफवाहें जिम्मेदार हैं.
हालांकि, इस दौरान उसने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि खुद उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 मार्च की सुबह एक ट्वीट कर 1000 बसें उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था.
प्रवासी मजदूरों के संकट के मुख्य कारणों को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार ने पिछले नौ हफ्ते में यह दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट को मीडिया की भूमिका को लेकर गुमराह किया है.
मार्च के आखिर में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि दिल्ली और अन्य शहरों से शुरू हुआ प्रवासियों का पलायन मीडिया द्वारा फैलाए गए फेक न्यूज के कारण हुआ था. हालांकि, सरकार ने अपने दावे की पुष्टि के लिए कोई सबूत नहीं दिए थे.
मेहता की बातों को सच मानते हुए सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की खंडपीठ ने कहा था, ‘शहरों में काम करने वाले मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन इस फेक न्यूज की वजह से हुआ कि लॉकडाउन तीन महीने से अधिक समय तक जारी रहेगा.’
पीठ ने कहा था, ‘ऐसे दर्दभरे पलायन से उन लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिन्होंने ऐसी खबरों पर भरोसा किया और ऐसा कदम उठाया. वास्तव में इस दौरान कुछ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इसलिए हमारे लिए यह मुश्किल है कि हम इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या सोशल मीडिया द्वारा फैलाए गए फेक न्यूज को नजरअंदाज कर दें.’
गृह मंत्रालय ने फेक न्यूज के इन आरोपों को एक बार फिर से दोहराया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बीते पांच जून को एक हलफनामा दायर करते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) के इलाके में कुछ गलत जानकारियों के फैलाए जाने के कारण 28 मार्च को हजारों की संख्या में प्रवासी आनंद विहार बस अड्डे और गाजीपुर बॉर्डर पर जमा हो गए थे. यह भीड़ उन फर्जी मीडिया रिपोर्टों के कारण जुटी थी जिनमें कहा गया था कि फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए 1000 बसों की व्यवस्था की गई है और उक्त स्थान पर उपलब्ध होंगी.
हलफनामा में बसें उपलब्ध कराए जाने की खबरों को फर्जी बताया जाता है लेकिन इस बात पर चुप्पी साध ली जाती है कि 28 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार ने परिवहन उपलब्ध कराने के लिए एक सार्वजनिक वादा किया था. यहां तक कि योगी आदित्यनाथ के कार्यालय ने ही 1000 बसों की संख्या की जानकारी दी थी.
मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस संबंध में 28 मार्च को आधिकारिक ट्विटर पेज पर दिन में 11:51 बजे एक मैसेज किया था.
कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने हेतु लागू लॉकडाउन के कारण पलायन कर रहे कामगारों की मदद के लिए यूपी सरकार ने 1000 बसों का इंतजाम किया है जिससे लोग अपने गंतव्य स्थान तक बिना किसी परेशानी के पहुँच सकें।
CM श्री @myogiadityanath जी ने पूरी रात इस व्यवस्था की स्वयं मॉनिटरिंग की है।
— Yogi Adityanath Office (@myogioffice) March 28, 2020
उसमें कहा गया था, ‘कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने हेतु लागू लॉकडाउन के कारण पलायन कर रहे कामगारों की मदद के लिए यूपी सरकार ने 1000 बसों का इंतजाम किया है जिससे लोग अपने गंतव्य स्थान तक बिना किसी परेशानी के पहुंच सकें. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने पूरी रात इस व्यवस्था की स्वयं निगरानी की है.’
इसी तरह गृह मंत्रालय के हलफनामे में इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया गया कि प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए बसें उपलब्ध कराने के संबंध में दिल्ली सरकार ने भी एक सार्वजनिक घोषणा की थी.
28 मई को दोपहर के 12:24 बजे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा था कि प्रवासियों के परिवहन के लिए 100 बसें दिल्ली सरकार द्वारा और 200 बसें यूपी सरकार द्वारा व्यवस्थित की गई हैं.
दिल्ली सरकार की क़रीब 100 और उत्तर प्रदेश सरकार की क़रीब 200 बसें दिल्ली से पैदल जाने की कोशिश कर रहे लोगों को लेकर जा रही है. फिर भी सभी से मेरी अपील है कि लॉकडाउन का पालन करें. कोरोना का असर नियंत्रित रखने के लिए यही समाधान है. बाहर निकलने में कोरोना का पूरा ख़तरा है.
— Manish Sisodia (@msisodia) March 28, 2020
गृह मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया, ‘न केवल दिल्ली में बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी प्रवासी श्रमिक चिंता, अस्थिरता और अन्य मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण पैदल अपने शहर की यात्रा शुरू कर दी.’
गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में 29 मार्च को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लिखा गया पत्र में संलग्न किया था. उनमें लिखा था, सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों से डर और चिंताएं बढ़ गई थीं कि लॉकडाउन को तीन महीने के लिए बढ़ाया जाएगा.
बता दें कि लॉकडाउन का अब तीसरा महीना चल रहा है जिसे चार बार बढ़ाया जा चुका है.
यद्यपि अब यह बात साफ हो चुकी है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 31 मार्च को यह दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया था कि अब कोई भी सड़क पर नहीं है. हलफनामे में सरकार द्वारा किए गए दावे और उसके बाद की स्थिति रिपोर्ट में दोहराया गया है कि “कोई भी प्रवासी श्रमिक सड़क पर नहीं था.
हालांकि इससे पहले 29 अप्रैल की अपनी स्टेटस रिपोर्ट में गृह मंत्रालय ने यह बात स्वीकार की थी कि राज्य सरकारों ने खुद बसों का इंतजाम किया था.
स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया, ‘राज्यों की सीमाओं पर इकट्ठा हुए ऐसे प्रवासी कर्मचारियों की भीड़ को तितर-बितर करने के उद्देश्य से कुछ राज्य सरकारों ने बसों से उनकी यात्रा का इंतजाम किया लेकिन एक आखिरी फैसले में ऐसे प्रवासी मजदूरों के आवागमन को मंजूरी नहीं दी गई और भोजन, रहने की व्यवस्था और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराकर वे जहां पहुंचे हैं वहीं रहने पर जोर दिया गया.’
मार्च के अंत में अदालत में मोदी सरकार ने सीजेआई की पीठ से कहा था कि वह मीडिया को ‘केंद्र सरकार से सही तथ्यात्मक स्थिति का पता लगाए बिना’ महामारी के बारे में कुछ भी प्रकाशित करने से रोकने के लिए निर्देश दे.
सरकार ने कहा था कि अभूतपूर्व तरह की स्थिति में जानबूझकर या अनजाने में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया या वेब पोर्टलों पर किसी फर्जी या गलत खबर के प्रकाशन अथवा प्रसारण से समाज के एक बड़े तबके में गंभीर और अपरिहार्य रूप से दहशत फैलने जैसे हालात पैदा हो सकते हैं.
सरकार ने कहा कि संक्रामक रोग की प्रकृति को देखते हुए इस तरह की रिपोर्टिंग के आधार पर समाज के किसी तबके में दहशत भरी प्रतिक्रिया न सिर्फ स्थिति के लिए खतरनाक होगी, बल्कि इससे समूचे राष्ट्र को नुकसान पहुंचेगा.
केंद्र ने कहा कि यद्यपि दहशत पैदा करने का कृत्य आपदा प्रबंधन कानून 2005 के तहत एक आपराधिक कृत्य है, शीर्ष अदालत से उचित दिशा-निर्देश झूठी खबर से देश को किसी संभावित और अपरिहार्य परिणाम से बचाएगा.
इसके बाद हालांकि न्यायालय ने कोरोना महामारी को लेकर ‘स्वतंत्र चर्चा’ में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, लेकिन मीडिया को ये निर्देश दिया कि वे खबरें चलाने से पहले उस घटनाक्रम पर आधिकारिक बयान लें.
इसके साथ ही अदालत ने आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा घोषित आदेश की अवज्ञा) और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54 पर ध्यान आकर्षित किया जिसके तहत आपदा के दौरान बेचैनी पैदा करने वाली झूठी चेतावनी देने पर एक वर्ष की कारावास और जुर्माने का प्रावधान है.
तब से इन कानून के साथ अन्य प्रावधानों का इस्तेमाल करके पुलिस ने देशभर में अनेकों पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं. वहीं, महामारी और लॉकडाउन के दौरान प्रशासन की लापरवाही को सामने आने पर पुलिस ने दर्जनों पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं.
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