रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि कोविड-19 संक्रमण के दौरान दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पताल केवल दिल्ली के ही रहवासियों का इलाज करेंगे. उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इसे पलटते हुए प्रशासन को निर्देश दिया है कि वह सुनिश्चित करे कि रहवासी होने के आधार पर किसी भी मरीज़ को इलाज के लिए मना न किया जाए.
नई दिल्ली: मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को घोषणा की थी कि कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पताल केवल दिल्ली के ही लोगों का इलाज करेंगे.
सोमवार को मुख्यमंत्री के इस फैसले को उपराज्यलपाल अनिल बैजल ने पलट दिया है. उपराज्यपाल के कार्यालय की ओर से प्रशासन को कहा गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि किसी भी मरीज को इस आधार पर कि वह दिल्ली का नहीं है, इलाज के लिए मना न किया जाए.
Delhi LG & Chairman DDMA Anil Baijal directs authorities to ensure that medical treatment is not denied to any patient on the grounds of not being a resident of Delhi. pic.twitter.com/HI3rN3fNJE
— ANI (@ANI) June 8, 2020
इससे पहले रविवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों के लिए मरीजों के लिए यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा और अगर दूसरे राज्यों के लोग कुछ विशिष्ट ऑपरेशनों के लिए दिल्ली आते हैं तो उन्हें निजी अस्पतालों में उपचार कराना होगा.
दिल्ली में एलएनजेपी अस्पताल, जीटीबी अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल सहित लगभग 40 सरकारी अस्पताल हैं. दिल्ली में केंद्र द्वारा संचालित बड़े अस्पतालों में आरएमएल, एम्स और सफदरजंग अस्पताल शामिल हैं.
केजरीवाल ने बताया था कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में लगभग 10 हजार बिस्तर हैं और लगभग इतने ही बिस्तर दिल्ली स्थित केंद्र संचालित अस्पतालों में हैं. उनका यह भी कहना था कि इससे एक संतुलन बनेगा और दिल्ली तथा दूसरे राज्यों के लोगों के भी हित की रक्षा होगी.
इसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से एक सूची भी जारी की गई थी, जिसमें बताया गया था कि अगर दिल्ली में रहने वाला कोई व्यक्ति किसी आरक्षित अस्पताल में जाता है, तो उनके पास मौजूद कुछ दस्तावेजों के आधार पर ही इलाज की सुविधा मिलेगी.
इनमें मरीजों को दिल्ली के पते पर बना वोटर आईडी कार्ड, बैंक या पोस्ट ऑफिस की पासबुक, राशन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, इनकम टैक्स रिटर्न, मरीज या उसके माता-पिता या पति-पत्नी के नाम पर टेलीफोन या बिजली का बिल, दिल्ली के पते पर मिली डाक विभाग की कोई डाक या 7 जून 2020 से पहले जारी किया गया आधार कार्ड दिखाना होगा.
नाबलिगों को अपने अभिभावक या माता-पिता के इन्हीं दस्तावेजों को दिखाकर इलाज देने की बात कही गई थी.
मुख्यमंत्री ने पिछले सप्ताह शहर की सीमाओं को बंद करने की घोषणा करते हुए इस मुद्दे पर लोगों से राय मांगी थी जहां. करीब साढ़े सात लाख लोगों ने अपने सुझाव भेजे और 90% से अधिक का का कहना था कि जब तक कोरोना महामारी फैली हुई है, तब तक दिल्ली के अस्पताल दिल्ली वालों के लिए आरक्षित होने चाहिए.
केजरीवाल ने कहा, ‘90 प्रतिशत से अधिक लोग चाहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल्ली के अस्पताल केवल राष्ट्रीय राजधानी से ताल्लुक रखने वाले मरीजों का उपचार करें. इसलिए यह निर्णय किया गया है कि दिल्ली स्थित सरकारी और निजी अस्पताल केवल राष्ट्रीय राजधानी से ताल्लुक रखने वाले लोगों का ही इलाज करेंगे.’
उनका यह भी कहना था, ‘कोरोना फैलने से पहले तक किसी भी समय में दिल्ली के अस्पतालों में 60 से 70 प्रतिशत मरीज अन्य राज्यों के होते थे. लेकिन इस समय दिल्ली खुद बहुत बड़ी समस्या में है. कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं जिससे निपटने के लिए सरकार बेड्स का इंतकाम कर रही है. ऐसी स्थिति में दिल्ली के अस्पतालों को अगर पूरे देश के लिए खोल दिया गया तो दिल्ली के लोगों को कोरोना हुआ तो वो कहां जाएंगे?
मुख्यमंत्री की इस घोषणा से एक दिन पहले शनिवार को आप सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति ने सिफारिश की थी कि कोविड-19 संकट के मद्देनजर शहर के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल केवल दिल्ली वालों के उपचार के लिए होना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने केजरीवाल ने रविवार को कहा, ‘दिल्ली की स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को इस समय कोरोना वायरस संकट से निपटने की आवश्यकता है.’
केजरीवाल के इस फैसले की चौतरफा आलोचना हुई थी. पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने सवाल उठाया था. उन्होंने कहा था, ‘श्री केजरीवाल कहते हैं कि दिल्ली के अस्पताल केवल दिल्लीवासियों के लिए हैं. क्या वो हमें बताएंगे कि दिल्लीवासी कौन है? अगर मैं दिल्ली में रहता हूं या काम करता हूं, तो क्या मैं एक दिल्लीवासी हूं?
मुझे लगा कि अगर किसी व्यक्ति ने जन आरोग्य योजना / आयुष्मान भारत में नामांकित किया है, तो वह भारत में कहीं भी, किसी भी अस्पताल, सार्वजनिक या निजी अस्पताल में इलाज करा सकता है?
क्या केजरीवाल ने घोषणा करने से पहले कानूनी राय ली?— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) June 8, 2020
उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, ‘मुझे लगा कि अगर किसी व्यक्ति ने जन आरोग्य योजना/आयुष्मान भारत में नामांकित किया है, तो वह भारत में कहीं भी, किसी भी अस्पताल, सार्वजनिक या निजी अस्पताल में इलाज करा सकता है? क्या केजरीवाल ने घोषणा करने से पहले कानूनी राय ली?’
बसपा प्रमुख मायावती ने भी केजरीवाल के इस फैसले को गलत बताया था. दिल्ली में ही विपक्ष ने भी मुख्यमंत्री के इस निर्णय पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी थी.
दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने मुख्यमंत्री से सवाल पूछते हुए कहा कि वे पहले बता दें कि दिल्ली में बाहर वाला है कौन. एक समाचार चैनल को दिए बयान में उनका कहना था, ‘वो प्रवासी जिन्होंने इस शहर को चुना, जो यहां काम करते थे, जिनके पास अपने गांव के पते के कागज हैं, जो इस आपदा में अपने घरों की ओर निकल गए या जो बचे हुए हैं, अगर वो संक्रमित हुए तो कहां जाएंगे?’
चुनाव से पहले इंसान से इंसान का हो भाईचारा कहने वाले मुख्यमंत्री ने सारी इंसानियत को ही शर्मसार कर दिया। लाखों लोग दूसरे राज्य में रोज़गार के लिए जाते हैं। दिल्ली में भी हैं। इनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो वो कहाँ जाएगा केजरीवाल जी ? उसको अगर कुछ हुआ तो ज़िम्मेदारी किसकी होगी ? https://t.co/S5WVA7Jtk7
— Adesh Gupta (@adeshguptabjp) June 7, 2020
वहीं दिल्ली भाजपा के नेताओं ने भी मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था. दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष आदर्श कुमार गुप्ता ने कहा, ‘चुनाव से पहले इंसान से इंसान का हो भाईचारा कहने वाले मुख्यमंत्री ने सारी इंसानियत को ही शर्मसार कर दिया. लाखों लोग दूसरे राज्य में रोजगार के लिए जाते हैं, दिल्ली में भी हैं. इनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो वो कहां जाएगा, केजरीवाल जी? उसको अगर कुछ हुआ तो ज़िम्मेदारी किसकी होगी?’
अस्पतालों के मसले पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से मांगा जवाब
अस्पतालों को लेकर हो रही खींचतान के बीच सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है.
दैनिक भास्कर के अनुसार, अदालत ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के अस्पताल कोरोना संक्रमितों को भर्ती करने से इनकार कर रहे हैं.
याचिका में अपील की गई कि अदालत दिल्ली सरकार को निर्देशदे कि वह सभी कोरोना संक्रमितों के निजी और सरकारी अस्पतालों में इलाज को सुनिश्चित करे. हाईकोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के सभी सरकारी अस्पताल केवल गंभीर कोरोना संक्रमितों को ही भर्ती कर रहे हैं. निजी अस्पतालों की फीस इतनी अधिक है कि आम जनता उसे नहीं भर सकती है.