उत्तराखंड: गैरसैंण होगा ग्रीष्मकालीन राजधानी, मिली राज्यपाल की मंज़ूरी

गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही शुरू हुई थी, जिसे लेकर बीते सालों में कई संगठनों द्वारा आंदोलन चलाए गए थे. मार्च में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी.

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गैरसैंण में बना विधानभवन. (फोटो साभार: फेसबुक/@egairsain)

गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से ही शुरू हुई थी, जिसे लेकर बीते सालों में कई संगठनों द्वारा आंदोलन चलाए गए थे. मार्च में बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी.

गैरसैंण में बना विधानभवन. (फोटो साभार: फेसबुक/@egairsain)
गैरसैंण में बना विधानभवन. (फोटो साभार: फेसबुक/@egairsain)

देहरादून: गैरसैंण को सोमवार को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया. उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य द्वारा इस संबंध में अपनी स्वीकृति दिए जाने के बाद मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने यहां अधिसूचना जारी कर दी.

इस अधिसूचना में कहा गया है, ‘राज्यपाल द्वारा गैरसैंण को उत्तराखंड राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किए जाने की सहर्ष अनुमति प्रदान की गयी है.’

गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने पर खुशी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसे एक ऐतिहासिक दिन बताया तथा कहा कि इसे एक आदर्श पर्वतीय राजधानी का रूप दिया जाएगा . उन्होंने कहा, ‘आने वाले समय में गैरसैंण सबसे सुंदर राजधानी के रूप में अपनी पहचान बनाएगा.’

रावत ने इस वर्ष चार मार्च को गैरसैंण में ही आयोजित बजट सत्र के दौरान इसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी.

ज्ञात हो कि देहरादून से लगभग 270 किलोमीटर दूर गैरसैंण चमोली जिले  का एक पहाड़ी शहर है, जो गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर बसा है. 90 के दशक में अलग राज्य की मांग आगे बढ़ने के बाद से ही इसे प्रस्तावित राज्य की राजधानी के रूप में देखा जाने लगा था.

जुलाई 1992 में स्थानीय उत्तराखंड क्रांति दल ने गैरसैंण को पहाड़ की राजधानी घोषित किया और ब्रिटिश काल में हुए पेशावर कांड के नायक रहे एक सैनिक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर इसका नाम ‘चंद्र नगर’ रखते हुए राजधानी क्षेत्र का शिलान्यास भी किया.

इसके बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन की परिणीति साल 2000 में अलग राज्य की स्थापना के साथ हुई, लेकिन राजधानी देहरादून को बनाया गया और फिर ‘पहाड़ की राजधानी पहाड़ में’ का नारा बुलंद हुआ.

यह मुद्दा लगातार उठते रहने के बाद साल 2001 में राज्य सरकार ने जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अगुवाई में एक सदस्यीय आयोग गठन किया और राज्य की राजधानी चुनने के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनने की जिम्मेदारी सौंपी. अगस्त 2008 में इसकी रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई.

80 पन्नों की इस रिपोर्ट में विषम भौगोलिक दशाओं, भूकंपीय आंकड़ों तथा अन्य कारकों पर विचार करते हुए कहा गया था था कि गैरसैंण स्थायी राजधानी के लिए सही स्थान नहीं है. आयोग ने रामनगर तथा ऋषिकेश को भी राजधानी के विकल्प के रूप में अनुपयुक्त बताया था.

आयोग ने राज्य के गठन के साथ अंतरिम राजधानी बनाए गए देहरादून को ही स्थायी राजधानी बनाए जाने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान बताया था. उनके द्वारा दिया गया दूसरा विकल्प उधमसिंहनगर जिले का काशीपुर था, हालांकि आयोग का मानना था कि देहरादून को स्थायी राजधानी बनाए जाने का अनुमानित खर्च काशीपुर में राजधानी बनाए जाने पर आने वाली अनुमानित लागत से कहीं कम है.

इसके बाद से ही इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच खींचतान चलती रही. 2012 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक गैरसैंण में ही की थी और कहा था कि साल भर में विधानसभा का एक सत्र गैरसैण में ही होगा.

जनवरी 2013 में उन्होंने यहां विधानसभा सदन का शिलान्यास भी किया था, जिसमें 2014 में विधानसभा का तीन दिवसीय सत्र भी आयोजित हुआ था. हालांकि इसे राजधानी का दर्जा नहीं मिला था.

2017 में भाजपा ने अपने चुनावी विज़न डॉक्यूमेंट में इसे राजधानी बनाने का वादा किया था, जिसके बाद मार्च 2020 के बजट सत्र में उन्होंने यह घोषणा की. इस बीच एक व्यक्ति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ऐसा निर्देश देने मांग की गयी थी, जिस पर शीर्ष अदालत का कहना था कि यह नीतिगत फैसला है और वे इसमें दखल नहीं दे सकते.

राज्यपाल की स्वीकृति के बाद मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि गैरसैंण का ग्रीष्मकालीन राजधानी बनना सवा करोड़ उत्तराखंडवासियों की भावनाओं का सम्मान है. उन्होंने कहा, ‘गैरसैंण उत्तराखंड की जनभावनाओं से जुड़ा है और सभी लोग बहुत खुश हैं. सबकी इच्छा आज पूर्ण हुई है. आज जब सब लोग कोरोना महामारी से किसी न किसी तरह प्रभावित हैं और चिंतित हैं, यह खबर उन्हें सुकून देगी.’

रावत ने कहा कि इसके परिणाम दीर्घकालीन होंगे और राज्य के विकास की यात्रा और राज्य के भविष्य पर इसकी छाया सदैव पड़ती रहेगी और लोग इसे महसूस करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि इसका असर बहुत व्यापक होगा और दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पहुंच बनाना थोड़ा आसान होगा.

वहीं इस मांग के अगुआ रहे उत्तराखंड क्रांति दल ने इस बात पर रोष जताया है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी नहीं बनाया गया. मार्च में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद उनका कहना था कि उत्तराखंड एक छोटा संसाधन-विहीन राज्य है, जो दो राजधानियों का बोझ नहीं उठा सकता, इसलिए एक ही स्थायी राजधानी हो, जो गैरसैंण को बनाया जाये.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी का भी यही मानना था. मैखुरी ने मार्च में कहा था, ‘ग्रीष्मकालीन-शीतकालीन का खेल गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग को हाशिए पर डालने की त्रिवेंद्र रावत सरकार की साजिश है. 50 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे हुए 13 जिलों के छोटे से प्रदेश में दो राजधानियां औचित्यहीन और जनता के धन की बर्बादी हैं. दो राजधानियां औपनिवेशिक अवधारणा है, जिसे हिंदुस्तान पर राज करने आए अंग्रेजों ने अपने ऐशो-आराम के लिए ईजाद किया था.’

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्य में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने भी इसे सियासी कदम बताया है. उन्होंने कहा, ‘गैरसैंण में इमारतें और इंफ्रास्ट्रक्चर कांग्रेस की सरकारों के समय ही तैयार करवाए गए थे, लेकिन भाजपा ने सदन में इसकी घोषणा करके इसका श्रेय ले लिया। वे सियासत कर रहे हैं क्योंकि वे ये नहीं बता रहे हैं कि स्थायी राजधानी कौन-सी है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)